Kalashtami 2023: कालाष्टमी के दिन पूजा के समय करें भैरव स्तुति, सभी संकटों से मिलेगी मुक्ति
Kalashtami July 2023 कालाष्टमी के दिन काल भैरव देव की पूजा-उपासना की जाती है। तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक काल भैरव के निमित्त व्रत उपवास रखते हैं। साथ ही सिद्धि प्राप्ति हेतु रात्रि में अनुष्ठान करते हैं। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर काल भैरव देव साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से काल भैरव देव की पूजा-उपासना करते हैं।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Kalashtami 2023: हिन्दू पंचांग के अनुसार, आज कालाष्टमी है। यह पर्व हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन काल भैरव देव की पूजा-उपासना की जाती है। तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक काल भैरव के निमित्त व्रत उपवास रखते हैं। साथ ही सिद्धि प्राप्ति हेतु रात्रि में अनुष्ठान करते हैं। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर काल भैरव देव साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से काल भैरव देव की पूजा-उपासना करते हैं। अगर आप भी काल भैरव देव की कृपा-दृष्टि पाना चाहते हैं, तो कालाष्टमी तिथि पर पूजा के समय भैरव स्तुति का पाठ अवशय करें। आइए, काल भैरव स्तुति का पाठ करें-
काल भैरव स्तुति
यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं।
सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटाशेखरं चन्द्रबिम्बम्।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनखमुखं चोर्ध्वरोमं करालं।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
रं रं रं रक्तवर्णं कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं।
घं घं घं घोषघोषं घ घ घ घ घटितं घर्घरं घोरनादम्।।
कं कं कं कालपाशं धृकधृकधृकितं ज्वालितं कामदेहं।
तं तं तं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
लं लं लं लं वदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घजिह्वाकरालं।
धुं धुं धुं धूम्रवर्णं स्फुटविकटमुखं भास्करं भीमरूपम्।।
रुं रुं रुं रुण्डमालं रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालं।
नं नं नं नग्नभूषं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
वं वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मपारं परं तं।
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करं भीमरूपम्।।
चं चं चं चं चलित्वा चलचलचलितं चालितं भूमिचक्रं।
मं मं मं मायिरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
शं शं शं शङ्खहस्तं शशिकरधवलं मोक्षसंपूर्णतेजं।
मं मं मं मं महान्तं कुलमकुलकुलं मन्त्रगुप्तं सुनित्यम्।।
यं यं यं भूतनाथं किलिकिलिकिलितं बालकेलिप्रधानं।
अं अं अं अन्तरिक्षं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं कालकालं करालं।
क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं दहदहदहनं तप्तसन्दीप्यमानम्।।
हौं हौं हौंकारनादं प्रकटितगहनं गर्जितैर्भूमिकम्पं।
बं बं बं बाललीलं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
सं सं सं सिद्धियोगं सकलगुणमखं देवदेवं प्रसन्नं।
पं पं पं पद्मनाभं हरिहरमयनं चन्द्रसूर्याग्निनेत्रम्।।
ऐं ऐं ऐश्वर्यनाथं सततभयहरं पूर्वदेवस्वरूपं।
रौं रौं रौं रौद्ररूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
हं हं हं हंसयानं हपितकलहकं मुक्तयोगाट्टहासं।
धं धं धं नेत्ररूपं शिरमुकुटजटाबन्धबन्धाग्रहस्तम्।।
टं टं टं टङ्कारनादं त्रिदशलटलटं कामवर्गापहारं।
भृं भृं भृं भूतनाथं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
इत्येवं कामयुक्तं प्रपठति नियतं भैरवस्याष्टकं यो।
निर्विघ्नं दुःखनाशं सुरभयहरणं डाकिनीशाकिनीनाम्।।
नश्येद्धिव्याघ्रसर्पौ हुतवहसलिले राज्यशंसस्य शून्यं।
सर्वा नश्यन्ति दूरं विपद इति भृशं चिन्तनात्सर्वसिद्धिम् ।।
भैरवस्याष्टकमिदं षण्मासं यः पठेन्नरः।।
स याति परमं स्थानं यत्र देवो महेश्वरः ।।
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