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    Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्र में मां दुर्गा को ऐसे करें प्रसन्न, जीवन में होगा खुशियों का आगमन

    Updated: Mon, 08 Apr 2024 08:00 PM (IST)

    पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्र की शुरुआत होती है जो नवमी तिथि के साथ समाप्त होते हैं।चैत्र नवरात्र के दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही शुभ फल की प्राप्ति के लिए व्रत किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से साधक के जीवन में खुशियों का आगमन होता है।

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    Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्र में मां दुर्गा को ऐसे करें प्रसन्न, जीवन में होगा खुशियों का आगमन

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Siddha Kunjika Stotram ka path: सनातन धर्म में चैत्र नवरात्र के पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्र की शुरुआत होती है, जो नवमी तिथि के साथ समाप्त होते हैं। इस बार चैत्र नवरात्र की शुरुआत 09 अप्रैल से हो रही है और समापन 17 अप्रैल को होंगे। चैत्र नवरात्र के दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही शुभ फल की प्राप्ति के लिए व्रत किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से साधक के जीवन में खुशियों का आगमन होता है। अगर आप भी मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो चैत्र नवरात्र में पूजा के दौरान सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए, जो इस प्रकार है -

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    सिद्ध कुंजिका स्तोत्र

    शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।

    येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥

    न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।

    न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥

    कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।

    अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥

    गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।

    मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।

    पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥

    ॥अथ मन्त्रः॥

    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:

    ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

    ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''

    ॥इति मन्त्रः॥

    नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

    नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥

    नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥

    जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।

    ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥

    क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।

    चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥

    विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥

    धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।

    क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥

    हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।

    भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥

    अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं

    धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥

    पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥

    सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥

    इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।

    अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥

    यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।

    न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

    इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।

    ॥ॐ तत्सत्॥

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