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    Chaitra Navratri 2024 7 Day: मां कालरात्रि की पूजा में इस कथा का करें पाठ, सभी प्रकार के भय होंगे खत्म

    Updated: Mon, 15 Apr 2024 06:15 AM (IST)

    चैत्र नवरात्र के पर्व को देशभर में अधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की विधिपूर्वक पूजा करने का विधान है। साथ ही जीवन में सुख और शांति के लिए व्रत किया जाता है। चैत्र नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि (Maa Kalratri) की पूजा की जाती है। आइए पढ़ते हैं मां कालरात्रि की व्रत कथा।

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    Chaitra Navratri 2024 7 Day: मां कालरात्रि की पूजा में इस कथा का करें पाठ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chaitra Navratri 2024 7th Day Maa Kalratri Katha: सनातन धर्म में नवरात्र के पर्व का विशेष महत्व है। हर साल दो बार नवरात्र मनाए जाते हैं। एक चैत्र मास में और दूसरा आश्विन मास में। चैत्र नवरात्र की शुरुआत 09 अप्रैल से हुई है और इसका समापन 17 अप्रैल को होगा। नवरात्र के दौरान माता रानी के नौ रूपों की पूजा और व्रत अलग-अलग दिन करने का विधान है। चैत्र नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा करने का विधान है। चैत्र नवरात्र का सातवां दिन आज यानी 15 अप्रैल को है। धार्मिक मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से साधक के सभी प्रकार का भय खत्म होते हैं। ऐसा माना जाता है कि चैत्र नवरात्र के सातवें दिन पूजा के दौरान मां कालरात्रि की कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। चलिए पढ़ते हैं मां कालरात्रि व्रत कथा।

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    मां कालरात्रि की कथा (Maa Kalratri Katha)

    पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नाम के राक्षस थे। इन राक्षसों ने लोकों में आतंक मचा रखा था। इनके आतंक से सभी देवी-देवता परेशान हो गए। ऐसे में देवी-देवता भगवान शिव के पास गए और समस्या से बचाव के लिए कोई उपाय मांगा। जब महादेव ने मां पार्वती से इन राक्षसों का वध करने के लिए कहा, तो मां पार्वती ने मां दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया।

    लेकिन जब वध के लिए रक्तबीज की बारी आई, तो उसके शरीर के रक्त से लाखों की संख्या में रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। क्योंकि रक्तबीज को वरदान मिला हुआ था कि अगर उनके रक्त की बूंद धरती पर गिरती है, तो उसके जैसा एक और दानव उत्पन्न हो जाएगा। ऐसे में दुर्गा ने अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके पश्चात मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया कर मां कालरात्रि ने उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह रक्तबीज का अंत हुआ।

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    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'