Chaitra Navratri 2019: जानें कैसे हुआ है सप्तशती के मंत्रों में देवी के स्वरूप का वर्णन
दुर्गा सप्तशती में माता के विभिन्न रूपों का वर्णन बड़े विस्तार से किया गया है। जानें कि कैसे करें इस नवरात्रि उनके नवरूप की पूजा।
दुर्गा सप्तशती में माता के विभिन्न रूपों का वर्णन बड़े विस्तार से किया गया है। जानें कि कैसे करें इस नवरात्रि उनके नवरूप की पूजा।
जानें क्या है सप्तशती में
दुर्गा सप्तशती में काव्य रूप में बताया गया है कि कैसे मां दुर्गा का अवतरण हुआ और किस तरह उन्होंने बार बार पृथ्वी पर दैत्यों के अत्याचार को ख़त्म किया। कहते हैं दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से आपको, भय, शोक और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही ये तांत्रिक साधना , गुप्त साधना मन्त्र साधना और अन्य प्रकार के आराधना के पथ को सुचारू रूप से बताती है। पंडितों के अनुसार इस काव्य का पाठ विशेष रूप से नवरात्रों में किया जाता है और ये अचूक फल देने वाला होता है। दुर्गा सप्तशती पाठ में 13 अध्याय है। इसमे मां दुर्गा के द्वारा लिए गये अवतारों की भी जानकारी दी गई है।
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हर अध्याय में है अलग कथा
सप्तशती के हर अध्याय में देवी के विभिन्न अवतारों की अलग अलग कथाओं का वर्णन किया गया है। जैसे पहले अध्याय में दैत्य मधु कैटभ के वध के बारे में बताया गया है। दूसरे अध्याय में देवताओं के तेज से मां दुर्गा के अवतरण और महिषासुर सेना के वध की कहानी है और तीसरे अध्याय में महिषासुर और उसके सेनापति के वध की जानकारी दी गई है। चौथा अध्याय इन्द्र आदि देवताओं के द्वारा मां की स्तुति के बारे में है। पांचवे अध्याय में चंड मुंड द्वारा राक्षस शुम्भ के सामने देवी की सुन्दरता का वर्णन करने की कथा है। छठे अध्याय में धुम्रलोचन वध के बारे में बताया गया है। सातवें अध्याय में चंड मुंड वध और आठवें में रक्तबीज के वध के बारे में बताया गया है। जबकि अध्याय नौ और दस में निशुम्भ शुम्भ वध की कहानी है। ग्यारहवें अध्याय में
देव और देवी की स्तुति करके वरदान प्राप्त किया है। बारहवें और तेरहवें अध्याय में देवी के चरित्र की महिमा और वैश्य सुरथ की कथा बताई गई है जिसे देवी का वरदान प्राप्त हुआ था।
नौ रूपों का वर्णन
दुर्गा के सभी को पापों का विनाश करने वाला कहा जाता है, हर देवी रूप के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं। दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अंतर्गत देवी कवच स्तोत्र में एक श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
ऐसे करें दुर्गा सप्तशती पाठ
सबसे पहले साधक को स्नान कर शुद्ध हो जाना चाहिए। उसके बाद शुद्धि की क्रिया कर आसन पर बैठ जायें। माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें। शिखा बांध कर पूर्वाभिमुख होकर चार बार आचमन करें। अब प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर देवी को अर्पित करें तथा मंत्रों से संकल्प लें।
देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार विधि से पुस्तक की पूजा करें। मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए, फिर उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है। इसके जप के बाद मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए। इस प्रकार पूरे ध्यान के साथ माता दुर्गा का स्मरण करते हुए दुर्गा सप्तशती पाठ करने से सभी प्रकार की मनोकामनायें पूरी होती हैं।