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    Bajarang Baan: मंगलवार या शनिवार को करें बजरंग बाण का पाठ, लेकिन इन बातों का रखें विशेष ध्यान

    By Kartikey TiwariEdited By:
    Updated: Tue, 14 Apr 2020 07:44 AM (IST)

    Bajarang Baan आज मंगलवार का दिन है जो रामभक्त हनुमान जी की पूजा अर्चना के लिए समर्पित है। आज हम बात कर रहे हैं बजरंग बाण के महत्व के बारे में।

    Bajarang Baan: मंगलवार या शनिवार को करें बजरंग बाण का पाठ, लेकिन इन बातों का रखें विशेष ध्यान

    Bajarang Baan: आज मंगलवार का दिन है, जो रामभक्त हनुमान जी की पूजा अर्चना के लिए समर्पित है। मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा शनिवार और हनुमान जयंती के दिन ​विधि विधान से किया जाता है। आज हम बात कर रहे हैं बजरंग बाण के महत्व के बारे में। जब आप विकट संकट में फंसे हों, सभी परिस्थितियों आपके विरुद्ध हों, उनसे निकलने का कोई भी मार्ग नहीं सूझ रहा हो, मनोबल टूट रहा हो, मन में डर और भय हो, तो ऐसे समय में मंगलवार या शनिवार के दिन संकटमोचन हनुमान जी को याद करें और बजरंग बाण का पाठ करें।

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    ध्यान रखें कि बजरंग बाण का पाठ हर किसी को, किसी भी समय नहीं करना चाहिए। विपदा की घड़ी में ही बजरंग बाण का पाठ किसी एकांत जगह या हनुमान मंदिर में करें। या फिर जब आपको कोई ऐसा काम करना है, जो आपके जीवन में विशेष है तब ही बजरंग बाण का पाठ करें। साधारण उद्देश्यों आदि के लिए बजरंग बाण के पाठ की मनाही है अन्यथा उसमें होने वाली गलतियों को पवनपुत्र हनुमान जी माफ नहीं करते हैं।

    बजरंग बाण का पाठ करते समय आप मन, कर्म और वचन से शुद्ध रहें। बजरंग बाण का पाठ करते समय शुद्ध उच्चारण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। इस बात का खास ध्यान रखें कि बजरंग बाण का पाठ एक बार में पूर्ण कर लें, बीच बीच में कोई व्यवधान न हों।

    जब आप किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए बजरंग बाण का पाठ करें और वह कार्य सफल हो जाए तो इस बात का प्रण लें कि आप हनुमान जी की सेवा के लिए नियमित कुछ न कुछ अवश्य ही करेंगे।

    बजरंग बाण/Bajarang Baan

    दोहा

    निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।

    तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

    चौपाई

    जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।

    जनके काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।

    जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा।

    आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका।

    जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।

    बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर यमकातर तोरा।

    अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।

    लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर मह भई।

    अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी।

    जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दुख करहु निपाता।

    जय गिरिधर जय जय सुखसागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर।

    ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले।

    गदा बज्र लै बैरिहि मारो। महारज प्रभु दास उबारो।

    ओंकार हुंकार महाबीर धावो। वज्र गदा हनु बिलम्ब न लावो।

    ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।

    सत्य होहु हरि शपथ पायके। राम दूत धरु मारु जायके।

    जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा।

    पूजा जप त​प नेम अचारा। नहिं जानत हौं दा तुम्हारा।

    वन उपवन मग ​गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।

    पांय परौं कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।

    जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकर सुवन वीर हनुमंता।

    बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रति पालक।

    भूत प्रेत पिशाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मारीमर।

    इन्हें मारु तोहिं सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।

    जनक सुता हरिदास कहावो। ताकी सपथ विलंब न लावो।

    जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुख नाशा।

    चरण-शरण कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।

    उठु-उठु चलु तोहिं राम दोहाई। पांय परौं कर जोरि मनाई।

    ओम चं चं चं चं चपल चलंता। ओम हनु हनु हनु हनु हनुमंता।

    ओम हं हं हांक देत कपि चंचल। ओम सं सं सहमि पराने खल दल।

    अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होत आनंद हमारो।

    यहि बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहो फिर कौन उबारे।

    पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करैं प्राण की।

    यह बजरंग बाण जो जापै। तेहि ते भूत प्रेत सब कांपै।

    धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तनु नहिं रहे कलेशा।

    दोहा

    प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।

    तेहि के कारज शकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।