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    कब और कहां देवों के देव महादेव और मां पार्वती ने लिए थे सात फेरे? विष्णु जी ने निभाई थी अहम भूमिका

    Updated: Tue, 04 Mar 2025 02:03 PM (IST)

    माता पार्वती की कड़ी तपस्या के बाद भगवान शिव हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। जहां पार्वती और शिव जी का विवाह हुआ था वह स्थान आज लोगों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हम बात कर रहे हैं त्रियुगी नारायण मंदिर (Triyuginarayan Temple) की जो मुख्य रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है।

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    Triyuginarayan Temple कहां हुआ था शिव-पार्वती का विवाह?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह को महाशिवरात्रि पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह विवाह इसलिए भी खास है, क्योंकि इसके साथ ही महादेव ने वैराग्य जीवन छोड़ गृहस्त जीवन में कदम रखा था। इस विवाह में शिव जी के गणों समेत देवी-देवताओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था।

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    कहां हुआ था विवाह

    शिव-पार्वती का विवाह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गांव में हुआ था, जहां आज त्रियुगीनारायण मंदिर स्थापित है। यह मंदिर गंगा और मंदाकिनी सोन नदी के संगम पर बना है। यह खूबसूरत गांव लगभग 1,900 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पूरा क्षेत्र पहाड़ों से घिरा हुआ है, जिससे इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। सर्दियों में बर्फ पड़ने पर इस स्थान की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है।

    क्या हैं मान्यताएं

    इस मंदिर के आस-पास का प्राकृतिक दृश्य तो मन मोह ही लेता है, लेकिन यहां से जुड़ी मान्यताएं भी व्यक्ति को यहां आने पर मजबूर कर देती हैं। मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर में आज भी वह पवित्र अग्नि जल रही है, जिसे साक्षी मानकर भगवान शिव और माता पार्वती ने विवाह किया था। तीन युगों से अग्नि जलने के कारण ही इस मंदिर को त्रिजुगी नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

    साथ ही यह भी माना जाता है कि जो भी व्यक्ति अखंड ज्योत की भभूत अपने साथ ले जाता है, उसका वैवाहिक जीवन सदा खुशहाल बना रहता है। इस मंदिर की मान्यता इतनी अधिक है कि लोग आज भी यहां विवाह करने के लिए पहुंचते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां विवाह करने वाले जोड़े को शिव-पार्वती का आशीर्वाद मिलता है।

    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

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    ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने निभाई अहम भूमिका

    शिव-शक्ति के इस मिलन में विष्णु जी ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रस्में निभाई थीं। वहीं ब्रह्मा जी विवाह यज्ञ के आचार्य की भूमिका निभाई थी। मंदिर के ठीक सामने जो विवाह स्थल है उसे ब्रह्म शिला के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान का महात्म्य पुराणों में भी मिलता है। कहा जाता है कि विवाह सम्पन्न कराने से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया था, इसलिए यहां रुद्र, विष्णु और ब्रह्म नामक तीन कुंड भी बने हुए हैं।

    Source: Triyuginarayan Temple की वेबसाइड https://triyuginarayantemple.com/

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।