Kanwar Yatra 2024: परशुराम ने इस मंदिर में किया था अभिषेक, तभी से शुरू हुई कांवड़ यात्रा की परंपरा
शिव भक्तों के लिए सावन का महीना बेहद खास होता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार सावन पांचवा महीना होता है। इसी माह से कांवड़ यात्रा की भी शुरुआत होती है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका सावन में होने वाली कांवड़ यात्रा से गहरा संबंध हैं। आइए जानते हैं इस मंदिर के विषय में।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कावड़ यात्रा, शिव के भक्तों के लिए किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं है। हर साल लाखों कांवड़ियां हरिद्वार से पवित्र गंगा नदी से पैदल चलकर जल लाते हैं और सावन शिवरात्रि पर अपने क्षेत्र के शिवालयों में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।
यह एक कठिन यात्रा होती है। उत्तर प्रदेश में एक ऐसा मंदिर स्थापित है, जहां सावन में कांवड़ियों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस मंदिर का संबंध भगवान परशुराम से माना गया है। तो चलिए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ मान्यताएं
पहुंचते हैं लाखों कांवड़िए
धार्मिक शास्त्रों में ऐसा माना गया है कि भगवान परशुराम ने ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। इसलिए उन्हें पहला कांवड़िया भी कहा जाता है। इस दौरान परशुराम जी ने गढ़मुक्तेश्वर धाम से कांवड़ द्वारा पवित्र गंगाजल लाकर उत्तर प्रदेश के बागपत में स्थित 'पुरा महादेव' का अभिषेक किया था।
तभी कांवड़ यात्रा करने की परंपरा चली आ रही है। वर्तमान में गढ़मुक्तेश्वर को ब्रजघाट के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की महिमा इतनी अधिक है कि हर साल सावन में पुरा महादेव मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए लाखों कांवड़िए पहुंचते हैं।
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इसलिए भी है प्रसिद्ध
गढ़मुक्तेश्वर धाम, जहां से परशुराम जी कांवड़ द्वारा गंगाजल लेकर आए थे, इस स्थान को लेकर भी एक पौराणिक कथा लोकप्रिय है। शिवपुराण में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा मंदराचल पर्वत पर तपस्या कर रहे थे। तभी भगवान शिव के गण घूमते हुए वहां पहुंचे और महर्षि दुर्वासा का उपहास करने लगे।
इससे महर्षि क्रोधित हो गए और उन्होंने गणों को पिशाच बनने का श्राप दे दिया। तब भगवान शिव के दर्शन करने से शिवगणों को पिशाच योनि से मुक्ति मिली। इसलिए इस मंदिर को 'गढ़मुक्तेश्वर' अर्थात गणों की मुक्ति करने वाले ईश्वर के नाम से जाना जाता है।
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