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    आज तक कोई नहीं जान सका पद्मनाभस्वामी मंदिर के पूरे खजाने का राज, जानिए क्या कहती है पौराणिक कथा

    Updated: Wed, 14 May 2025 01:35 PM (IST)

    देशभर में कई ऐसे मंदिर हैं जो अपनी सुंदरता के साथ-साथ रहस्यों को लेकर भी खासा लोकप्रिय हैं। ऐसे में आज हम आपको रहस्यों से भरपूर केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताने जा रहे हैं। इस मंदिर की गिनती प्राचीन होने के साथ-साथ अमीर मंदिरों में भी की जाती है।

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    Padmanabhaswamy Temple Mystery पद्मनाभस्वामी मंदिर से जुड़ी खास बातें।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। श्री पद्मनाभस्वामी (Padmanabhaswamy Temple secrets) मंदिर भगवान पद्मनाभस्वामी को समर्पित है, जो भगवान विष्णु के ही अवतार माने जाते हैं। पद्मनाभस्वामी का अर्थ है जिनकी नाभि (नभ) में कमल (पद्म) है। माना जाता है कि भगवान विष्णु की इस स्थान पर प्रतिमा प्राप्त हुई थी, जिसके चलते यहां मंदिर का निर्माण करवाया गया। दूर-दूर से भक्त इस मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

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    मिला था अपार खजाना (Padmanabhaswamy Temple hidden wealth)

    2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जब मंदिर के तहखानों की जांच की गई तो इसमें 1 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित कीमती धातुओं से बनी मूर्तियां और सिंहासन मिले। खजाने की जांच के दौरान 6 तहखाने मिले जिन्हें ए, बी, सी, डी, ई, और एफ वॉल्ट का नाम दिया जाता है। लेकिन सभी वॉल्ट की जांच करना संभव नहीं हो सका, जिसे लेकर एक पौराणिक मान्यता भी चली आ रही है।

    क्या है पौराणिक मान्यता (Padmanabhaswamy Temple Mystery)

    पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मंदिर में मौजूद खजाने की रक्षा नागों और अलौकिक देवताओं द्वारा की जाती है। ऐसे में जो भी व्यक्ति इन्हें खोलने की कोशिश करेगा उसे कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इसके बाद ऐसी कई घटनाएं भी सामने आईं, जिसमें लोगों द्वारा इस खजाने को खोलने की कोशिश नाकाम रही।

    इसलिए प्राचीन काल से चली आ रही इस मान्यता पर लोगों का विश्वास और भी गहरा हो गया। यह भी माना जाता है कि एक ऐसा पुजारी ही गरुड़ मंत्र के जप द्वारा इस तहखाने के दरवाजे को खोल सकता है, जिसे इसकी सटीक समझ हो।

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    (Picture Credit: Freepik)

    कितना पुराना है इतिहास

    मंदिर का इतिहास 8वीं शताब्दी पुराना माना जाता है। यह मंदिर कला की भव्यता का प्रतीक भी है, जो केरल और द्रविड़ शैलियों के मिश्रण वाली स्थापत्य शैली को दर्शाता है। मंदिर का आज जो स्वरूप देखने को मिलता है, उसका निर्माण 18वीं शताब्दी में त्रावणकोर महाराजा मार्तंड वर्मा ने करवाया था।

    इसी के साथ पीठासीन देवता की मूर्ति भी रचना की दृष्टि से बहुत ही अद्भुत है, जिसे 12008 शालिग्राम से बनाया गया है। यह शालिग्राम नेपाल की गंडकी नदी के किनारों से लाया गया है। भगवान विष्णु प्रतिमा 18 फीट लंबी है, जो शेषनाग पर शयन मुद्रा में हैं। खास बात यह है क इस प्रतिमा को मंदिर के कई दरवाजों से देखा जा सकता है। 

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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