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    Jaladhari Mahadev Temple: प्रकृति स्वयं करती है महादेव का अभिषेक, पूरी होती है हर मुराद

    Updated: Tue, 13 May 2025 02:11 PM (IST)

    देशभर में महादेव को समर्पित कई छोटे-बड़े मंदिर स्थित हैं जिन्हें लेकर अलग-अलग मान्यताएं मौजूद हैं। आज हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे अद्भुत मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें प्रकृति स्वयं शिव जी का जलाभिषेक करती है। न केवल स्थानीय लोगों में बल्कि दूर-दूर से आने वाले लोगों में भी मंदिर को लेकर काफी आस्था है।

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    क्या है जलाधारी महादेव मंदिर का रहस्य?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश, जिसे देवभूमि भी कहा जाता है, में ऐसे कई मंदिर स्थापित हैं, जिन्हें लेकर लोगों में बड़ी आस्था है। आज हम आपको हिमाचल प्रदेश में स्थित भोलेनाथ के एक ऐसे ही अद्भुत मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे लेकर कई स्थानीय मान्यता प्रचलित हैं। साथ ही मंदिर के आस-पास की प्राकृतिक सुंदरता भी आपका मन मोह लेगी।

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    कहां स्थित है मंदिर

    जलाधारी महादेव मंदिर, देवभूमि यानी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के पालमपुर से लगभग 35 किलोमीटर की दूर क्यारवा में स्थित है। असल में जलाधारी महादेव शिवलिंग एक प्राकृतिक रूप से बनी गुफा के अंदर स्थित है। यहां शिवलिंग पर प्राकृतिक रूप से पानी टपकता रहता है, जो किसी चमत्कार से कम नहीं लगता।

    (प्रतीकात्मक इमेज)

    क्या है खासियत

    सावन और महाशिवरात्रि के पर्व पर जलाधारी महादेव के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त यहां पहुंचते हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, मंदिर की रक्षा सर्प देवता शेषनाग और इच्छा पूरी करने वाली गाय कामधेनु और दो दिव्य कौवे द्वारा की जाती है। लोगों का यह भी मानना है कि इस मंदिर में आकर सच्चे दिल से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।

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    (प्रतीकात्मक इमेज)

    क्या है मान्यताएं

    इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि आज हो जलधारा आपको यहां देखने को मिलती है, पहले वह दूध की धारा हुआ करती थी। लेकिन एक बार कुछ चरवाहों ने इस दूध की धारा से दूध लेकर उसकी खीर बना ली और फिर दो-तीन दिन बिना शुद्धता के ही दूध का इस्तेमाल करने लगे। उसके बाद से ही यह धारा, जल की धारा में परिवर्तित हो गई।

    ये भी है कथा

    साथ ही इस गुफा को लेकर एक और कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार, एक बार एक श्यामू नाम का चरवाहा गायों को चराते-चराते इस गुफा में पहुंच गया। गुफा के अंदर जाकर श्यामू रास्ता भटक गया। जब वह कई दिनों तक वापस नहीं लौटा, तो गांववालों ने उसे मृत समझ लिया।

    चार साल बाद श्यामू अपने गांव वापस लौट आया, जिसे देखकर सभी हैरान रह गए। तब उसने सभी को इस दिव्य गुफा के बारे में बताया और उसके बाद से ही लोगों में इस गुफा में स्थित शिवलिंग के प्रति आस्था बढ़ गई।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।