जानें गुजरात के प्रसिद्ध आशापुरा माता मंदिर की कहानी
गुजरात के कच्छ में स्थित आशापुरा माता का मंदिर काफी प्रसिद्ध है जानें उनकी कहानी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी रैली की शुरूआत यहीं से की है।
कई समुदायों की कुल देवी
मुख्य रूप से कच्छ में यहां की कुल देवी माता आशापुरा की पीठ है। आशापुरा माता को कई समुदाय अपनी कुलदेवी के रूप में मानते हैं। इनमें से मुख्य रूप से नवानगर, राजकोट, मोरवी, गोंडल बारिया राज्य के शासक वंश, चौहान, और जडेजा राजपूत शामिल हैं। गुजरात मे आशापुरा माता का मुख्य मंदिर कच्छ मे, 'माता नो मढ़' , जो भुज में है, से लगभग 95 किलोमीटर दूर पर स्थित है। कच्छ के गोसर और पोलादिया समुदाय के लोग भी आशापुरा माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं।
आशापुरा माता की कहानी है ऐतिहासिक
बताते हैं कि चौहान राजवंश की स्थापना के बाद में शुरू से शाकम्भरी देवी को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता रहा है। चौहान वंश का राज्य शाकम्भर यानि सांभर में स्थापित हुआ तब से ही चौहानों ने मां आद्याशक्ति को शाकम्भरी के रूप में स्वीकार करके शक्ति की पूजा अर्चना शुरू कर दी थी। इसके बाद नाडोल में भी राव लक्ष्मण ने शाकम्भरी माता के रूप में ही माता की आराधना की प्रारंभ थी, लेकिन जब देवी के आशीर्वाद फलस्वरूप उनकी सभी आशाएं पूर्ण होने लगीं तो उन्होंने माता को आशापुरा मतलब आशा पूरी करने वाली कह कर संबोधित करना प्रारंभ किया। इस तरह से माता शाकम्भरी ही एक और नाम आशापुरा से विख्यात हुई और कालांतर में चौहान वंश के लोग माता शाकम्भरी को ही आशापुरा माता के नाम से कुलदेवी मानने लगे।
मंदिर कैसे पहुंचें
माता आशापुरा के दर्शन के लिए अजमेर-अहमदाबाद रेल मार्ग पर पड़ने वाले रानी रेल स्टेशन पर उतरकर बस व टैक्सी से नाडोल जाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त आप कच्छ पहुंच कर भी सड़क मार्ग से आशापुरा माता के मंदिर जा सकते हैं।