Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    युद्घ का मैदान छोड़ कर भागने पर कृष्ण कहलाये रणछोड़ उसी का प्रतीक है ये मंदिर

    By Molly SethEdited By:
    Updated: Tue, 28 Aug 2018 12:00 PM (IST)

    पौराणिक कथाआें के अनुसार जरासंध से युद्घ को टाल कर भागे श्री कृष्ण इसी स्थान पर पहुंचे थे आैर मैदान छोड़ने के लिए उन्हें रणछोड़ कहा गया।

    युद्घ का मैदान छोड़ कर भागने पर कृष्ण कहलाये रणछोड़ उसी का प्रतीक है ये मंदिर

    एेसा है रणछोड़ जी मंदिर 

    द्वारका में द्वारिकाधीश मंदिर के अतिरिक्त श्री कृष्ण जी का एक आैर भी भव्य मंदिर है जो उनसे जुड़ी एक रोचक कथा का प्रतीक है जिसके चलते इस मंदिर को रणछोड़ जी महराज के मंदिर के नाम से पुकारा जाता है। यहां गोमती के दक्षिण में पांच कुंए है। निष्पाप कुण्ड में नहाने के बाद यहां आने वाले श्रद्घालु इन पांच कुंओं के पानी से कुल्ले करते है आैर तब रणछोड़जी के मन्दिर में प्रवेश करते है। रणछोड़जी का मन्दिर द्वारका का सबसे बड़ा और सबसे सुंदर मन्दिर माना जाता है। रण का मैदान छोड़ने के कारण यहां भगवान कृष्ण को रणछोड़जी कहते हैं। मंदिर में प्रवेश करने पर सामने ही कृष्ण जी की चार फुट ऊंची भव्य मूर्ति है, जो चांदी के सिंहासन पर विराजमान है। यह मूर्ति काले पत्थर से निर्मित है जिसमें हीरे-मोती से भगवान की आंखे बनी हैं आैर पूरा श्रंगार किया गया है। मूर्ति ने सोने की ग्यारह मालाएं गले में पहनी हुर्इ हैं आैर भगवान को कीमती पीले वस्त्र पहनाये गए है। इसके चार हाथ है, जिनमें से एक में शंख, दूसरे में सुदर्शन चक्र, तीसरे में गदा और चौथे में कमल का फूल शोभायमान है। मुर्ति में रणछोड़ जी के सिर पर सोने का मुकुट सजा है। मंदिर में आने वाले भगवान की परिक्रमा करते है और उन पर फूल और तुलसी दल अर्पित करते हैं। मंदिर की चौखटों पर चांदी के पत्तर मढ़े हुए है, आैर छत से कीमती झाड़-फानूस लटक रहे हैं। एक तरफ ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए सीढ़ियां है। सात मंजिल के इस मंदिर की पहली मंजिल पर अम्बादेवी की मूर्ति स्थापित है। कुल मिलाकर यह मन्दिर एक सौ चालीस फुट ऊंचा है। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    परिक्रमा करना है अनिवार्य 

    रणछोड़जी के दर्शन के बाद मन्दिर की परिक्रमा की जाती है। मान्यता है कि बिना इसके भगवान के दर्शन का पूरा फल प्राप्त नहीं होता। ये मन्दिर दोहरी दीवारों से बना है। दोनों दीवारों के बीच एक पतला सा रास्ता या गलियारा छोड़ा गया है। इसी रास्ते से परिक्रमा की जाती है। रणछोड़जी के मन्दिर के सामने एक बहुत लम्बा-चौड़ा 100 फुट ऊंचा जगमोहन है, जिसकी पांच मंजिलें है और उसमें 60 खम्बे हैं। इसकी भी दो दीवारों के बीच गलियारा है जहां से रणछोड़जी के बाद इसकी परिक्रमा की जाती है।

    क्यों कहलाते हैं श्री कृष्ण रणछोड़जी

    अब आपको बताते हें कि यहां कृष्ण का एक नाम है रणछोड़ क्यों है। आप सुनकर हैरान होंगे कि हर प्रकार से सक्षम भगवान कृष्ण अपने शत्रु का मुकाबला ना कर मैदान छोड़ कर भाग गए। दरसल जब मगध के शासक जरासंध ने कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा तो कृष्ण जानते थे कि मथुरा में उसका मुकाबला करने में समझदारी नहीं है! इसीलिए उन्होंने ना सिर्फ स्वयं बल्कि भाई बलराम आैर समस्त प्रजाजनों सहित उसे छोड़ देने का निर्णय किया। इसके बाद वे सब द्वारका की आेर बढ़ने लगे। मैदान से भागते हुए कृष्ण को देख कर जरासंध ने उन्हें रणछोड़ नाम दिया, जो रण यानि युद्ध का मैदान छोड़कर भाग रहे हैं। बहुत दूर तक चलने के बाद कृष्ण आैर बलराम आराम करने के लिए  प्रवर्शत पर्वत, जिसपर हमेशा वर्षा होती रहती थी, पर रुक गए। जरासंध ने तब अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे इस पर्वत को आग लगा दें। तब 44 फुट ऊंचे स्थान से कूद कर भगवान ने द्वारका में प्रवेश कर नर्इ नगरी बनार्इ आैर उसी के पहले का उनका स्थान रणछोड़ जी महाराज के स्थान के नाम से जाना गया जहां इस मंदिर का निर्माण हुआ।