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Kedarnath Dham: पांडवों को पापों से मुक्त करने के लिए भोलेनाथ ने लिया था नंदी का रूप, जानें इस धाम की रोचक कथा

Kedarnath Dham Jyotirlinga देवभूमि में उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ धाम से सभी परिचित हैं। यहां महदेव के दर्शन के लिए हर साल लाखों की संख्या में भक्त आते हैं और इस स्थान की अलौकिकता से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। आइए जानते हैं बाबा केदारनाथ से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारी और रहस्य।

By Shantanoo MishraEdited By: Published: Sun, 27 Nov 2022 02:15 PM (IST)Updated: Sun, 27 Nov 2022 02:15 PM (IST)
Kedarnath Dham: जानिए केदारनाथ धाम से जुड़ी कुछ अनोखी जानकारियां।

नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Kedarnath Dham Jyotirlinga, History and Mystery: देवभूमि उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालयी सीमा पर स्थित केदारनाथ धाम से सभी शिवभक्त परिचित हैं। बाबा केदारनाथ के इस धाम की गणना 12 ज्योतिर्लिंगों में भी की जाती हैं। इस धाम की विशेषता यह है कि यहां साल के 6 महीने मंदिर के कपाट खुलते हैं और बाकि के दिन भक्तों के लिए यह कपाट बंद कर दिए जाते हैं। लेकिन मंदिर में उपस्थित सभी देवताओं को उमीखट लाया जाता है और वहां उनकी पूजा की जाती हैं। हिमालय की गोद में स्थित इस धाम के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु लाखों की संख्या में यहां आते हैं। साथ इस स्थान की अलौकिकता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

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मान्यता है कि बाबा केदारनाथ के दर्शन के बाद ही बाबा बद्रीनाथ के दर्शन करने की मान्यता है, अन्यथा यहां की गई पूजा निष्फल हो जाती है। इसके साथ धार्मिक ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि यहां बाबा केदारनाथ सहित नर-नारायण के दर्शन करने से सभी पाप मुक्त हो जाते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं केदारनाथ धाम से जुड़ी रोचक कथा और रहस्यों के विषय में।

केदारनाथ धाम से जुड़ी रोचक कथा (Kedarnath Dham Katha)

किवदंतियों में बताया गया है कि जब महाभारत युद्ध के बाद पांडवों पर अपने भाइयों और सगे-सम्बन्धियों की हत्या का दोष लग गया था। तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें भगवान शिव से क्षमा मांगने का सुझाव दिया था। लेकिन शिव जी पांडवों को क्षमा नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने पांचो की नजर में न आने के लिए बैल यानि नंदी का रूप धारण कर लिया था और पहाड़ों में मौजूद मवेशियों में छिप गए थे। लेकिन गदाधारी भीम ने उन्हें देखते ही पहचान लिया और शिव जी का यह भेद सबके सामने आ गया। लेकिन जब भोलेनाथ ने वहां से भी किसी अन्य स्थान पर जाने की कोशिश की तब भीम ने उन्हें रोक लिया और शिव जी को उन्हें क्षमा करना पड़ा।

बता दें कि जिस स्थान पर पांडव शंकर जी से मिले थे उस स्थान को गुप्त काशी के रूप में जाना जाता है। लेकिन कुछ ही समय बाद गुप्तकाशी से भी भोलेनाथ अदृश्य हो गए और 5 सिद्ध रूपों में प्रकट हुए। वह पांच रूप हैं- केदारनाथ में उनके कूल्हे हैं, रुद्रनाथ में उनका मुख मौजूद है, तुंगनाथ में हाथ और मध्यमहेश्वर में उनका पेट मौजूद है। महादेव की जटाएं कल्पेश्वर में मौजूद हैं। इन पांच सिद्ध स्थानों को पंच केदार के नाम से भी जाना जाता है।

मंदिर से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारी और रहस्य (Kedarnath History and Mystery)

भगवान शिव का यह भव्य मंदिर मंदाकिनी नदी के घाट पर स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में हर समय अंधकार रहता है और दीपक के माध्यम से भोलेनाथ के दर्शन किए जाते हैं। यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, जिस वजह से इस स्थान का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि केदारनाथ धाम में सबसे पहले मन्दिर का निर्माण पांचों पांडवों ने किया था। लेकिन वह समय के साथ विलुप्त हो गई। फिर अदिगुरु शंकराचार्य जी ने इस मंदिर का पुनः निर्माण किया था। खास बात यह है कि उनकी समाधि भी इस मन्दिर के पीछे ही उपस्थित है।

इस आलौकिक मन्दिर के कपाट मई महीने में भक्तों के लिए खोले जाते हैं और कड़ाके की सर्दियों से पहले यानि नवम्बर में 6 महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां की ठंड को सहन करना साधारण व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं है। इसके साथ इस मन्दिर के सन्दर्भ में पुराणों में यह भविष्यवाणी भी की गई थी कि एक समय ऐसा आएगा जब केदारनाथ धाम का समूचा क्षेत्र और तीर्थ स्थल लुप्त हो जाएंगे। यह तब होगा जब दिन नर व नारायण पर्वत एक दूसरे से मिलेंगे, तब इस धाम का मार्ग बंध हो जाएगा। इस घटना के कई वर्षों बाद 'भविश्यबद्री' नाम के तीर्थ का उत्थान होगा।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।


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