Surya Antardasha: कितने समय तक चलती है सूर्य की अंतर्दशा और कैसे करें आत्मा के कारक को प्रसन्न?
वर्तमान समय में सूर्य देव मिथुन राशि में विराजमान हैं। इस राशि में सूर्य देव 15 जुलाई तक रहेंगे। इसके अगले दिन सूर्य देव सूर्य देव मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में गोचर करेंगे। सूर्य देव के राशि परिवर्तन से कई राशि के जातकों को लाभ मिलेगा।

Surya Antardasha: सूर्य देव को ऐसे प्रसन्न करें
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य देव को आत्मा का कारक माना जाता है। सूर्य देव सिंह राशि के स्वामी हैं। वहीं, मेष राशि के जातकों पर सूर्य देव की विशेष कृपा रहती है। कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होने से जातक को करियर में मनमुताबिक सफलता मिलती है। ज्योतिष सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए रोजाना सूर्य देव को जल अर्पित करने की सलाह देते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि सूर्य की अंतर्दशा कितने समय तक चलती है और कैसे सूर्य देव को प्रसन्न करें? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
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सूर्य की अंतर्दशा
ज्योतिषियों की मानें तो सूर्य की महादशा 6 साल तक रहती है। वहीं, सूर्य की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा साढ़े तीन महीने तक चलती है। इस दौरान सभी शुभ और अशुभ ग्रहों की प्रत्यंतर दशना चलती है। सूर्य महादशा में सबसे पहले सूर्य की अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा चलती है। इसके बाद चंद्र की अंतर्दशा चलती है। चंद्र की अंतर्दशा 6 महीने की होती है। वहीं, चंद्र के बाद मंगल की अंतर्दशा चलती है। मंगल की अंतर्दशा चार महीने की होती है। सूर्य की महादशा में सबसे अधिक शनि की अंतर्दशा चलती है। शुभ ग्रहों की अंतर्दशा में जातक को शुभ फल मिलता है। वहीं, राहु या केतु की अंतर्दशा में जातक को शुभ काम करने से बचना चाहिए।
सूर्य देव को कैसे प्रसन्न करें?
रविवार का दिन आत्मा के कारक सूर्य देव को समर्पित माना जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है। साथ ही आरोगय जीवन और परिवार की सुख और सलामती के लिए व्रत रखते हैं। ज्योतिष भी करियर में सफलता पाने के लिए सूर्य देव की पूजा करने की सलाह देते हैं। इसके लिए रोजाना स्नान-ध्यान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें। इसके बाद विधिवत भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा करें। पूजा के बाद चावल, गेहूं, आटा, चीनी, नमक, गुड़, और वस्त्र का दान करें। पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।
सूर्य मंत्र
1. जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।
तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम ।।
2. ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।
हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।
3. ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात ।।
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