Saphala Ekadashi 2024: भगवान विष्णु की पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप, चमक उठेगा किस्मत का सितारा
धार्मिक मत है कि एकादशी के दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु एवं धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा (Saphala Ekadashi 2024 Mantra) करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही यश कीर्ति सुख और संपत्ति में वृद्धि होती है। इस शुभ अवसर पर सुकर्मा एवं शिववास योग का निर्माण हो रहा है। इन योग में विष्णु जी की पूजा-भक्ति करने से सौभाग्य में वृद्धि होगी।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। पौष माह के कृष्ण पक्ष की सफला एकादशी 26 दिसंबर को है। यह पर्व जगत के नाथ भगवान विष्णु को समर्पित होता है। अतः सफला एकादशी के दिन भक्ति भाव से लक्ष्मी नारायण जी की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि एकादशी का व्रत करने से साधक को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। साधक श्रद्धा भाव से लक्ष्मी नारायण जी की उपासना करते हैं। अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो सफला एकादशी के दिन स्नान-ध्यान के बाद भक्ति भाव से श्रीहरि और धनश्री की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।
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पूजा मंत्र
1. ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥
2. ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
3. शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
4. ॐ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:
5. ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
6. तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया ।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया ।।
7. ऊँ श्री त्रिपुराय विद्महे तुलसी पत्राय धीमहि तन्नो: तुलसी प्रचोदयात।।
वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |
पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ।।
एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |
य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत।।
8. ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यद्दीदयच्दवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्”।।
9. ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरु कांचन संन्निभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।
10. ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात्।।
11. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
12. ॐ नमो भगवते धनवंतराय
अमृताकर्षणाय धन्वन्तराय
वेधासे सुराराधिताय धन्वंतराय
सर्व सिद्धि प्रदेय धन्वंतराय
सर्व रक्षा कारिणेय धन्वंतराय
सर्व रोग निवारिणी धन्वंतराय
सर्व देवानां हिताय धन्वंतराय
सर्व मनुष्यानाम हिताय धन्वन्तराय
सर्व भूतानाम हिताय धन्वन्तराय
सर्व लोकानाम हिताय धन्वन्तराय
सर्व सिद्धि मंत्र स्वरूपिणी
धन्वन्तराय नमः।
13. ध्याये न्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्।
अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्।।
14. महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी ।
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते ।
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः !
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
15. कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा । बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।।
करोमि यद्यत्सकलं परस्मै । नारायणयेति समर्पयामि ॥
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा। बुद्ध्यात्मना वानुसृतस्वभावात् ।
करोति यद्यत्सकलं परस्मै। नारायणयेति समर्पयेत्तत् ॥
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