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    Putrada Ekadashi 2025: इस व्रत कथा के बिना अधूरी है भगवान विष्णु की पूजा, मिलेगा संतान सुख का वरदान

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Tue, 05 Aug 2025 09:33 AM (IST)

    यह पर्व (Putrada Ekadashi Vrat Katha) जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है। इस शुभ अवसर पर लक्ष्मी नारायण जी की पूजा की जाती है। साथ ही संतान या पुत्र प्राप्ति के लिए एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से व्रती (दंपती) को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

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    Putrada Ekadashi 2025: पुत्रदा एकादशी का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, आज यानी मंगलवार 05 अगस्त को पुत्रदा एकादशी और मंगला गौरी व्रत है। पुत्रदा एकादशी पर्व हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की भक्ति भाव से पूजा की जा रही है। साथ ही उनके निमित्त एकादशी का व्रत रखा जाता है।

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    इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। इसके साथ ही निसंतान दंपति को संतान सुख का वरदान मिलता है। सनातन शास्त्रों में पुत्रदा एकादशी (ekadashi vrat katha) की महिमा का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। अतः साधक सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर विधिवत लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करते हैं।

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    अगर आप भी मनचाही मुराद पाना चाहते हैं, तो पुत्रदा एकादशी के शुभ अवसर पर भक्ति भाव से लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा का पाठ अवश्य करें। इस व्रत कथा के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है।

    पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha)

    सनातन शास्त्रों में निहित है कि द्वापर युग के दौरान एक नगर में महीजित नामक महान प्रतापी राजा था। प्रतापी राजा महीजित की चर्चा तीनों लोक में थी। हालांकि, राजा महीजित की कोई संतान नहीं थी। इसके लिए महीजित हमेशा चिंतित रहते थे। एक बार की बात है। राजा महीजित ने प्रजा की भलाई और उत्तराधिकारी की चिंता कर सभा बुलाई। इस सभा में सभी वरिष्ठ मंत्री और प्रजा के लोग उपस्थित हुए। उस समय राजा महीजित ने अपनी व्यथा उनको सुनाई।

    राजा महीजित ने कहा कि आज तक मैंने कोई अपराध नहीं किया और न ही किसी का दिल दुखाया। वहीं, न ही किसी के साथ अन्याय किया। प्रजा के हित के लिए दिन-रात मेहनत की। प्रजा का प्यार मिला, तो आज साम्राज्य खड़ा हुआ। हालांकि, मुझे अब यह चिंता हो रही है कि अगर कोई योग्य उत्तराधिकारी नहीं मिला, तो प्रजा के साथ न्याय कौन करेगा और इस राज्य की रक्षा कौन करेगा?

    यह सुन मंत्रीगण और प्रजाजनों ने कहा- हे राजन! आप चिंता न करें। इस जटिल समस्या का हल अवश्य हमलोग निकाल लेंगे। इसके लिए महान ऋषि-मुनि का सहारा लिया जाएगा। उनकी राय सुनी जाएगी। उनके कहे वचनों का पालन किया जाएगा। मंत्रीगण की यह बात सुन राजा महीजित थोड़े प्रसन्न हुए।

    इसके अगले दिन मंत्रीगण और प्रजाजन वन की ओर कूच कर गए। वहां, उनकी भेंट महान ऋषि लोमेश से हुई। ऋषि लोमेश बड़ी मंडली को देख समझ गए कि निकटतम राज्य में कोई बड़ी विपदा आन पड़ी है। तभी सभी लोग वन की ओर कूच कर गए हैं।

    उस समय ऋषि लोमश ने मंत्रीगण से आने का औचित्य पूछा। मंत्रीगण ने राजा महीजित के निसंतान होने की सूचना दी। यह जान ऋषि लोमश ने कहा कि राजा महीजित दंपति और आप सभी सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत को करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इस शुभ तिथि पर भगवान हरि की पूजा एवं भक्ति करें। साथ ही रात के समय जागरण कर भगवान विष्णु का कीर्तन और भजन करें।

    ऋषि लोमश के वचनों का पालन कर प्रजाजनों के साथ राजा महीजित और उनकी धर्म पत्नी ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से कालांतर में राजा महीजित को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। अतः सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।