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    Devshayani Ekadashi 2024: देवशयनी एकादशी पर पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप, आर्थिक तंगी से जरूर मिलेगी निजात

    देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi Importance) तिथि से जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाते हैं। इस दिन से चातुमार्स शुरू हो जाता है। चातुमार्स का समापन देवउठनी एकादशी को होता है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु जागृत होते हैं। इस तिथि पर जगत के नाथ भगवान विष्णु एवं मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 15 Jul 2024 06:14 PM (IST)
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    Devshayani Ekadashi 2024: कब मनाई जाएगी देवशयनी एकादशी?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Devshayani Ekadashi 2024: ज्योतिषीय गणना के अनुसार, 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी है। यह दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साधक मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए एकादशी का व्रत रखते हैं। सनातन शास्त्रों में निहित है कि देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाते हैं। इस दिन से ही चातुर्मास शुरू होता है। भगवान विष्णु के क्षीर सागर में विश्राम करने के दौरान मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। इस अवधि में भक्ति भाव से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो देवशयनी एकादशी तिथि पर विधि-विधान से लक्ष्मी नारायण की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।

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    एकादशी मंत्र

    1. ऊँ श्री त्रिपुराय विद्महे तुलसी पत्राय धीमहि तन्नो: तुलसी प्रचोदयात।

    2. ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।।

    3. तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।

    धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया ।।

    लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।

    तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया ।।

    4. वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |

    पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ||

    एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |

    य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत ||

    5. जीवश्चाङ्गिर-गोत्रतोत्तरमुखो दीर्घोत्तरा संस्थित: पीतोश्वत्थ-समिद्ध-सिन्धुजनिश्चापो थ मीनाधिप:।

    सूर्येन्दु-क्षितिज-प्रियो बुध-सितौ शत्रूसमाश्चापरे सप्ताङ्कद्विभव: शुभ: सुरुगुरु: कुर्यात् सदा मङ्गलम्।।

    6. दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।

    धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।

    शांताकारम भुजङ्गशयनम पद्मनाभं सुरेशम।

    विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।

    लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।

    वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।

    ॐ नमोः नारायणाय नमः।

    ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः।

    7. ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।

    ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

    8. मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।

    मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥

    9. ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥

    10. कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा ।

    बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।

    करोमि यद्यत्सकलं परस्मै ।

    नारायणयेति समर्पयामि ॥

    कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा

    बुद्ध्यात्मना वानुसृतस्वभावात् ।

    करोति यद्यत्सकलं परस्मै

    नारायणयेति समर्पयेत्तत् ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।