लघुकथा: बीरबल की खिचड़ी
एक गरीब धोबी ने अपनी गरीबी दूर करने की खातिर नदी में घुटने तक डूबे रहकर पानी में ठिठुरते हुए सारी रात बिता दी।
एक बार बादशाह अकबर ने घोषणा की कि जो आदमी सर्दी के मौसम में नदी के ठंडे पानी में रात भर खड़ा रहेगा, उसे भारी भरकम तोहफे से पुरस्कृत किया जाएगा।
एक गरीब धोबी ने अपनी गरीबी दूर करने की खातिर नदी में घुटने तक डूबे रहकर पानी में ठिठुरते हुए सारी रात बिता दी। बाद में वह बादशाह के दरबार में अपना इनाम लेने पहुँचा।
बादशाह अकबर ने उससे पूछा - 'तुमने कैसे सारी रात बिना सोए, खड़े-खड़े ही नदी में रात बिताई? तुम्हारे पास क्या सबूत है?'
धोबी ने उत्तर दिया - 'जहाँपनाह, मैं सारी रात नदी किनारे के महल के कमरे में जल रहे चिराग को देखता रहा और इस तरह जागते हुए सारी रात नदी के ठंडे जल में गुजारी।'
'चिराग की गरमी लेकर सारी रात पानी में खड़े रहे और इनाम चाहते हो? सिपाहियों इसे जेल में बन्द कर दो। बादशाह ने क्रोधित होकर आदेश दिया।
बीरबल भी दरबार में था। उसे यह देख बुरा लगा कि बादशाह नाहक ही उस गरीब पर जुल्म कर रहे हैं। बीरबल दूसरे दिन दरबार में नहीं आए, जबकि उस दिन दरबार की एक आवश्यक बैठक थी। बादशाह ने एक खादिम को बीरबल को बुलाने भेजा। खादिम ने लौटकर जवाब दिया, बीरबल खिचड़ी पका रहे हैं और वह खिचड़ी पकते ही उसे खाकर आएंगे।
जब बीरबल बहुत देर बाद भी नहीं आए तो बादशाह को कुछ सन्देह हुआ। वे खुद तफतीश करने पहुँचे। बादशाह ने देखा कि एक बहुत लंबे से डंडे पर एक घड़ा बाँध कर उसे बहुत ऊँचा लटका दिया गया है और नीचे जरा सी आग जल रही है। पास में बीरबल आराम से खटिए पर लेटे हुए हैं।
बादशाह ने तमककर पूछा - यह क्या तमाशा है? क्या ऐसी भी खिचड़ी पकती है?
बीरबल ने कहा - माफ करें, जहाँपनाह, जरूर पकेगी। वैसी ही पकेगी जैसी कि धोबी को महल के दीये की गरमी मिली थी।
बादशाह को बात समझ में आ गई। उन्होंने बीरबल को गले लगाया और धोबी को रिहा करने और उसे इनाम देने का हुक्म दिया।
(साभार: साहित्यदर्शन.कॉम)
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