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    Dussehra: जोधपुर के इस मंदिर में होती है दशानन की पूजा, शोक दिवस के रूप में दशहरा को मनाते हैं उनके वंशज

    By Sachin Kumar MishraEdited By:
    Updated: Sat, 24 Oct 2020 04:58 PM (IST)

    Dussehra जोधपुर में श्रीमाली समाज के गोधा गौत्र के लोग रावण दहन पर शोक मनाते हैं। ये लोग स्वयं को रावण का वंशज मानते हैं और इन्होंने जोधपुर के मेहरानगढ़ किला रोड पर रावण और कुलदेवी खरानना का मंदिर भी बना रखा है जहां उसकी पूजा की जाती है।

    राजस्थान के जोघपुर में रावण का मंदिर है।

    जोधपुर, रंजन दवे।। देशभर में जहां दशहरे पर रावण दहन पर खुशी मनाई जाएगी, वहीं जोधपुर में श्रीमाली समाज के गोधा गौत्र के लोग रावण दहन पर शोक मनाते हैं। ये लोग स्वयं को रावण का वंशज मानते हैं और इन्होंने जोधपुर के मेहरानगढ़ किला रोड पर रावण और कुलदेवी खरानना का मंदिर भी बना रखा है, जहां उसकी पूजा की जाती है। जोधपुर के ऐतिहासिक मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी का मंदिर बना हुआ हैं। जहां हर रोज रावण और रावण की कुलदेवी खरानना देवी जो गदर्भ रूप में है, उसकी पूजा की जाती है। श्रीमाली ब्राह्मण समाज के गोधा गौत्र के लोगों ने यह मंदिर बनवाया है। इस मंदिर में रावण व मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमाएं स्थापित हैं। दोनों को शिव पूजन करते हुए दर्शाया गया है।

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    पुजारी कमलेश कुमार दवे ने बताया कि उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां आकर बस गए थे। कुछ समाज के विद्वान पंडित श्राद पक्ष में दशमी के दिन अपने सैकड़ों साल पुराने बुजुर्ग वंशज रावण को श्रद्धा से याद करते हैं। इस दौरान समाज के लोग उनकी आत्मा की शांति के लिए सरोवर पर तर्पण कर पिण्डदान की रस्म अदा करते हैं। ये वंशज विभिन्न मंत्र उच्चरणों से तर्पण करते हैं। हर साल रावण दहन के बाद गोधा परिवार के लोग लोकाचार स्नान करते हैं।

    ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि ये पहला रावण का मंदिर है, जहां रावण के परिजनों व रावण की पूजा-अर्चना की जाती है और लंकाधिपति को अपना वंशज मानते हुए पंडितों को भोज कराया जाता है। अपने आप को रावण का परिजन बताने वाले ये लोग खुशी महसूस करते हैं कि हम लंकाधिपति रावण के वंशज हैं। रावण को उसके कर्मों और ज्ञान से स्वर्ग मिला होगा। ज्योतिष विद अनीष व्यास के अनुसार, किदवंती है ये गोधा गोत्री श्रीमाली लोग रावण की बारात में आए और यहीं पर बस गए।

    पुजारी कमलेश कुमार दवे के अनुसार, पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे, लेकिन वर्ष 2008 में इस मंदिर का निर्माण कराया गया। दशहरा पर रावण दहन के दिन ये लोग यहां शोक रखते हैं। शोक में डूबे ये लोग रावण दहन देखने नहीं जाते हैं। इन सब के द्वारा शोक मनाते हुए शाम को स्नान कर जनेऊ को बदला जाता है और रावण के दर्शन करने के बाद ही भोजन आदि करते हैं। दशहरे के दिन में बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में हर वर्ष प्रकांड पंडित रावण का दहन किया जाता है, वही जोधपुर में रह रहे रावण के वंशज हर धार्मिक रस्म निभा कर रावण की अच्छाइयों को भी अनदेखा नहीं होने देते हैं।

    वेदों का ज्ञाता और संज्ञीतज्ञ के साथ वास्तुविद भी था दशानन

    कुंडली विश्ल़ेषक ज्योतिष शास्त्री अनीष व्यास का कहना है कि रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेद ज्ञाता भी था। रावण ज्योतिष का प्रकांड विद्वान था। अपने पुत्र को अजेय बनाने के लिए नवग्रहों को आदेश दिया था कि वह उनके पुत्र मेघनाद की कुंडली में सही तरह से बैठें। शनि महाराज ने बात नहीं मानी तो उन्हें बंदी बना लिया। ऐसे में कई संगीतज्ञ और वेद का अध्ययन करने वाले छात्र रावण का आशीर्वाद लेने मंदिर में आते हैं। रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्म ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था।