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साहित्य और पत्रकारिता दोनों ही दुनिया का यथार्थ रचते हैं: ओम थानवी

राजस्थान साहित्य अकादमी की ओर से श्रमजीवी महाविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में ओम थानवी ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता दोनों दुनिया का यथार्थ रचते हैं।

By Babita kashyapEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 11:33 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 11:33 AM (IST)
साहित्य और पत्रकारिता दोनों ही दुनिया का यथार्थ रचते हैं: ओम थानवी
साहित्य और पत्रकारिता दोनों ही दुनिया का यथार्थ रचते हैं: ओम थानवी

अजमेर, जेएनएन। साहित्य और पत्रकारिता अलग राहें जरूर हैं किंतु वे दोनों ही दुनिया का यथार्थ रचते  हैं। दोनो में भेद यही है कि साहित्य में कल्पना का समावेश होता है तो पत्रकारिता तथ्यों पर आधारित होती है। ये विचार हरिदेव जोशी पत्रकारिता व जन संचार विश्वविद्यालय के कुलपति ओम थानवी ने व्यक्त किये।

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राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर की ओर से विजयसिंह पथिक श्रमजीवी महाविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए थानवी ने कहा कि साहित्यकार व पत्रकार ही मुखर होकर लोकतंत्र की रक्षा कर सकते हैं। वर्तमान समय की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि  नागरिकता संशोधन कानून द्वारा संविधान को ठेंगा दिखाया जा रहा है। पत्रकारो का धर्म है कि वे लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए आवाज उठाएं।

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता बीबीसी के पूर्व संवाददाता व वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ ने अपने प्रखर वक्तव्य में कहा कि प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का चहुंमुखी विस्तार हुआ है  किंतु सामाजिक सोच गायब है। किसान, मजदूर, गरीब, आदिवासी केंद्र तो क्या हाशिये पर भी दिखाई नहीं देता।  

भारतीय पत्रकारिता की बुनियाद पीड़ित के पक्ष में खड़े होकर रची गयी थी। आज वह गायब है। मीडिया पूंजीपतियों के गुलाम है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता जिसे चौथा खम्बा कहा जाता था, चोखा धंधा बन गया है। बारेठ ने कहा कि साहित्य हमारी संवेदना को जगाता है इसलिए पत्रकारिता के लिए आवश्यक है।

उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार अनिल लोढ़ा  ने कहा कि लोकतंत्र के लिए साहित्य व पत्रकारिता प्राण वायु हैं। आपातकाल के दौर में प्रकाश जैन द्वारा रची कविता  को उद्धृत करते हुए लोढ़ा ने कहा कि  आज का दौर भयावह है और इसमें साहित्य ही मशाल जला सकता है। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ हेतु भारद्वाज  ने कहा कि साहित्य का महत्व सर्वकालिक होता है जबकि पत्रकारिता तात्कालिक प्रभाव छोड़ती है।

साहित्य का काम हृदय के भीतर घुसकर विस्फोट करना होता है।उन्होंने अखबारों की भाषा में गिरावट पर चिंता व्यक्त  की उद्घाटन सत्र में  डॉ अनन्त भटनागर की पुस्तक 'सत्य सेवा संकल्प का विमोचन भी किया गया। उमेश चौरसिया ने पुस्तक की जानकारी देते हुए इसे बच्चों में मूल्य चेतना की वाहक बतलाया। सत्र का संचालन डॉ विमलेश शर्मा ने किया।

इसके पश्चात आयोजीत  सत्र की अध्यक्षता करते हुए पूर्व कॉलेज शिक्षा निदेशक डॉ दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने कहा कि  स्वाधीनता आंदोलन में साहित्य व पत्रकारिता में दूरियां नही थी और उनके मकसद देश प्रेम व अन्याय का विरोध था। आज व्यावसायिकता बढ़ने से दोनों में दूरी बढ़ी है। मुख्य वक्ता राजस्थान विश्वविद्यालय की डॉ रेणु  व्यास ने  पत्रकारिता के अवदान पर महत्वपूर्ण आलेख प्रस्तुत किया। डॉ बीना शर्मा, डॉ हरप्रकाश गौड़, डॉ मेघना ज़हरम, डॉ एस डी मिश्रा, मो आदिल, शेफाली मार्टिन्स ने इस सत्र में  अपने विचार रखे। 

संचालन पूंनम पांडे ने किया।अंतिम सत्र आकाशवाणी के पूर्व महानिदेशक हरीश करमचंदानी की अधयक्षता में आयोजित हुआ। इस सत्र में मुख्य वक्ता हिन्दू कॉलेज ,नई दिल्ली  के डॉ पल्लव ने कहा कि विचार से सत्ता को सदैव डर लगता है। इसलिए चाहे वह पत्रकारिता से उपजे या साहित्य से उसका दमन किया जाता है। इस  सत्र में डॉ विमलेश शर्मा, डॉ पूंनम पांडे, डॉ सुरेश अग्रवाल व डॉ आशुतोष पारीक ने विचार व्यक्त किये।संचालन कलिंदनंदिनी शर्मा ने किया।

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