Jaisamand Lake: रोक के बावजूद जयसमंद झील में डीजल की नावें चलाने की अनुमति, आधा उदयपुर पी रहा डीजल वाला पानी
Jaisamand Lake यसमंद झील में डीजल बोटों के संचालन की अनुमति दे दी गई जबकि इसी झील से उदयपुर की आधी आबादी पानी पी रही है। यह ना केवल जलीय पारिस्थितिकी ...और पढ़ें

उदयपुर, सुभाष शर्मा। Jaisamand Lake: एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित मीठे पानी की जयसमंद झील (Jaisamand Lake) में डीजल बोटों के संचालन की अनुमति दे दी गई, जबकि इसी झील से उदयपुर (Udaipur) की आधी आबादी पानी पी रही है। यह ना केवल जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है, बल्कि इसे पेयजल के रूप में उपयोग में ले रहे लोगों के लिए भी। झील प्रेमियों ने भी इसे खतरनाक बताया है।
इन्होंने कराया था इस झील का निर्माण
उदयपुर जिला मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर सलूम्बर मार्ग स्थित जयसमंद झील एशिया की ऐसी दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है, जिसका निर्माण मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा जय सिंह ने कराया था। 90 वर्ग किलोमीटर एरिया में फैली इस झील से पानी लिफ्ट कर उदयपुर के लिए पेयजल आपूर्ति में लिया जा रहा है और उदयपुर की आधी आबादी इस पानी को पी रहा है। हाल ही खुलासा हुआ कि परिवहन विभाग ने इस झील में रोक के बावजूद डीजल की नावों का संचालन की अनुमति प्रदान कर दी। इस मामले में परिवहन विभाग के अधिकारियों से बात करनी चाहिए, लेकिन इस संबंध में बोलने से सभी ने इनकार कर दिया।
ऐसी बोट को ही संचालन की थी अनुमति
उदयपुर जिला कलक्टर की अध्यक्षता में 22 नवंबर 21 को झीलों में बोट संचालन को लेकर नीति तय की गई थी। जिसमें परिवहन विभाग के अधिकारी भी शामिल हुए थे। उसमें यह तय किया गया था कि जयसमंद सहित उदयपुर जिले की झीलों में यूरो छह मानकों वाली पेट्रोल इंजन की बोट ही चलाई जा सकेगी। इस आदेश में इसका भी उल्लेख किया गया था कि इसकी समयबद्ध पालना नहीं किए जाने पर बोटिंग लाइसेंस तथा नाव की फिटनेस निरस्त कर दी जाएगी। इसके विपरीत 22 जुलाई, 2022 को जिला परिवहन अधिकारी कार्यालय से डीजल से संचालित बोट्स जयसमंद झील में चलाने की अनुमति प्रदान कर दी गईं।
कई जगह झीलों में चलाई जा रही सोलर और बैटरी वाली नावें
उदयपुर संभाग के डूंगरपुर स्थित गैप सागर झील, उदयपुर की पीछोला झील के अलावा केरल, वाराणसी सहित कई झीलों में सोलर और बैटरी से संचालित नावें चलाई जा रही हैं। उदयपुर की झीलों में पेट्रोल नावों के संचालन को भी लेकर हाईकोर्ट के नगर निगम व नगर विकास प्रन्यास को नीतिगत निर्णय लिए जाने के आदेश दे रखे हैं।
जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा
पूर्व मत्स्यकी निदेशक इस्माइल अली दुर्गा बताते हैं कि झीलों में तेज गति की नावों का संचालन नहीं किया जाना चाहिए। सत्तर के दशक के मुकाबले अब बीस फीसदी ही जलीय जीव सुरक्षित बचे हैं। डीजल की नावों के संचालन के जलीय जीवों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाएगा। मत्स्य विज्ञानी दिनेश शर्मा का कहना है कि झीलों में डीजल की नावों झील में रहने वाले जलीय जीवों को खतरा है। अगर जलीय जीव और मछलियां झील में नहीं होंगी, तो झीलें प्रदूषित होगी। इससे बचना है तो झीलों में डीजल से नावों का संचालन बंद किया जाना चाहिए।
तीन लाख की आबादी पी रही है जयसमंद झील का पानी
जल अभियांत्रिकी विभाग जयसमंद से पेयजल सप्लाई करता है। इससे उदयपुर की आधी आबादी यानी लगभग तीन लाख लोग इसी झील का पानी पेयजल के उपयोग में लेते हैं। जयसमंद के आसपास के सौ गांवों को भी पेयजल की सप्लाई दैनिक रूप से इसी झील से की जा रही है। जल अभियांत्रिकी विभाग के कनिष्ठ अभियंता छगनलाल सुथार का कहना है कि जिस झील या तालाब से पेयजल की सप्लाई की जा रही हो, उसमें डीजल से संचालित नावों का संचालन नहीं किया जाना चाहिए। इस संबंध में वह विभाग की ओर से उच्चाधिकारियों को पत्र लिख चुके हैं, किन्तु इस पर रोक नहीं लग पाई।
झील प्रेमियों में रोष, कहा-डीजल संचालित नावों पर लगे रोक
जयसमंद झील में डीजल से संचालित नावों के चलाने को लेकर झील प्रेमियों, पर्यावरणविदों में रोष है। उनका कहना है कि यह जलीय जीवन ही नहीं, मानव जीवन के लिए भी खतरनाक है। इस पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी नावों का संचालन करना चाहिए ताकि जलीय जीव सुरक्षित रहें।
झीलों में नाव संचालन को बनाई थी नीति
राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के बाद जिला कलक्टर ने झील संरक्षण समिति के सदस्यों, झील प्रेमियों और चुनिंदा पर्यावरणविदों से झीलों में नाव संचालन को लेकर नीति तैयार करने के लिए सुझाव आमंत्रित किए थे। इसमें तेज शंकर पालीवाल, डा. तेज राजदान, डा. अनिल मेहता, महेश चन्द्र शर्मा, अनंत गणेश त्रिवेदी, मोहमद नासिर खान, नन्द किशोर शर्मा, कुशल रावल के अलावा द्रुपद सिंह शामिल थे। इन विशेषज्ञों ने सुझाव दिए थे कि झीलों ही नहीं, जलीय जीवों तथा पारिस्थिति तंत्र को बचाए रखने के लिए किस तरह की नावों का संचालन किया जाना चाहिए। उनका कहना था कि पेयजल की व पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील झीलों में केवल चप्पू वाली नावें ही चलाई जानी चाहिए, इसके लिए लकड़ी की नावें सर्वाधिक उपयुक्त होती हैं। झील के दस फीसदी क्षेत्र पर नावें संचालित की जाएं। झील के क्षेत्रफल के अनुसार नावों की संख्या भी तय की जानी चाहिए। प्रति नाव 15 एकड़ अनुमत की जाए। इन वैज्ञानिकों ने बोट एक्ट में पर्यावरणीय व मानव रक्षा, जीव रक्षा के प्रावधान डाले जाने की अनुशंसा की थी।
डीजल इंजन इस तरह पहुंचाता है जलीय जीवन को नुकसान
पर्यावरणविद डा. अनिल मेहता बताते हैं कि डीजल इंजन ना केवल जल की सतही तौर पर नुकसान पहुंचता है, बल्कि यह अत्यधिक कार्बन का उत्सर्जन करती हैं, जो जलीय जीवन के लिए खतरनाक है। डीजल इंजन की तेज आवाज से कंपन होता है, जिससे इंसान के साथ ही जलीय जीव-जंतुओं पर बुरा असर पड़ता है और ईको सिस्टम को भी खराब करता है। इसके साथ इससे झीलों के घाटों पर सालों पुराने खड़े ऐतिहासिक धरोहरों को भी नुकसान पहुंच रहा था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गंगा नदी में चल रही सभी डीजल इंजन वाली बोट्स की जगह सीएनजी बोट्स चलाने की पैरवी कर चुके हैं और अगले तीन महीने में गंगा नदी से सभी डीजल बोट हटा ली जाएंगी।
कलेक्टर ने कहा, तो कार्रवाई होगी
इस मामले में उदयपुर के जिला कलक्टर ताराचंद मीणा का कहना है कि जयसमंद झील में डीजल बोटों के संचालन को लेकर जानकारी ली जाएगी। यदि ऐसा पाया जाता है तो इन पर रोक सुनिश्चित किए जाने के लिए कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
ऐसी है जयसमंद झील
उदयपुर से करीब 55 किलोमीटर दूर सलूम्बर रोड पर स्थित जयसमंद झील जिसे पहले ढेबर झील भी कहा जाता था। इसका निर्माण अरावली पहाड़ी के बीच मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा जय सिंह ने 1685 से लेकर 1691 के बीच कराया था। 14 हजार 400 मीटर लंबाई व नौ हजार 500 मीटर चौडाई में गोमती नदी पर निर्मित यह कृत्रिम झील लगभग 90 किलोमीटर वर्ग में फैली है। इस झील में नौ नदियां और 99 नाले गिरते हैं। इस झील के बीच सात टापू हैं, जिनमें से तीन निर्जन हैं, जबकि तीन पर आदिवासी रहते हैं। एक टापू पर निजी होटल बने हुए हैं।

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