Asaram Cae: दुष्कर्म के आरोपी आसाराम की दूसरी बार पैरोल की मांग, खटखटाया राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा
आसाराम ने पैरोल के लिए राजस्थान हाई कोर्ट का एक बार फिर से रुख किया। हाईकोर्ट ने अर्जी मंजूर करते हुए 15 सितंबर को राज्य सरकार को नोटिज जारी कर दो हफ्ते में जवाब मांगा है। आसाराम के वकील ने शनिवार को जानकारी दी। एक किशोर छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोप में आसाराम आजीवन कारावास की सजा काट रहे है। वह 25 अप्रैल 2018 को दोषी ठहराए गए थे।

जोधपुर, एजेंसी। Asaram Cae: दुष्कर्म मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आसाराम ने दूसरी बार पैरोल के लिए राजस्थान उच्च न्यायालय का रुख किया है। उनके वकील ने शनिवार को कहा कि हाईकोर्ट ने उनकी अर्जी मंजूर करते हुए शुक्रवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब मांगा है।
अपने आश्रम की एक किशोर छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोप में 25 अप्रैल, 2018 को आसाराम दोषी ठहराए गए थे। आसाराम के वकील कालू राम भाटी ने कहा कि जिला पैरोल समिति ने उनके पैरोल आवेदन को इस आधार पर दूसरी बार खारिज कर दिया कि पैरोल पर उनकी रिहाई से कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है।
20 दिनों की पैरोल की मांग
वकील ने बताया कि आसाराम ने 20 दिनों की पैरोल की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया था, लेकिन समिति ने पुलिस की नकारात्मक रिपोर्ट का हवाला देते हुए इसे खारिज कर दिया था। अदालत में भाटी ने दलील दी कि आसाराम 11 साल से जेल की सजा काट रहे हैं और यहां तक कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने भी उनके लिए पैरोल की सिफारिश की थी।
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आसाराम के वकील ने क्या दिया तर्क?
आसाराम के वकील ने तर्क दिया कि जेल में इस पूरी अवधि के दौरान उनका व्यवहार संतोषजनक रहा है और वह अपनी वृद्धावस्था और स्वास्थ्य के कारण पैरोल के हकदार हैं। हालांकि, अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल जोशी ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय मांगा, जिसके बाद न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई और न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रकाश सोनी की खंडपीठ ने उन्हें दो सप्ताह के समय में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
आसाराम ने जुलाई में उच्च न्यायालय का रुख किया था। समिति ने आसाराम की पैरोल इसलिए खारिज कर दी थी क्योंकि, वह राजस्थान कैदियों की पैरोल रिहाई पर नियम, 2021 (2021 के नियम) के प्रावधानों के तहत इसके हकदार नहीं थे।
यह नियम आसाराम पर नहीं होता लागू...
आसाराम के वकील ने तब तर्क दिया था कि यह नियम आसाराम पर लागू नहीं होता क्योंकि इसके लागू होने से पहले ही उन्हें दोषी ठहराया गया था और सजा सुनाई गई थी। तब उच्च न्यायालय ने उनके आवेदन का निपटारा करते हुए समिति को 1958 के पुराने नियमों के आलोक में आसाराम के पैरोल आवेदन पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था।
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