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    निर्जला एकादशी पर बंद मंदिरों के कारण प्रभावित मिट्टी के घड़े, सुराही का दान

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 01 Jun 2020 11:51 PM (IST)

    पटियाला बिना जल और आहार के व्रत करते हुए जरूरतमंदों को जल और फल दान करने का सिलसिला इस निर्जला एकादशी को जारी तो रहेगा लेकिन इसका स्वरूप बदल जाएगा। आज निर्जला एकादशी पर परंपरागत सुराही घड़ा और हाथ की पंखी जरूरतमंदों को देने वालों की संख्या काफी कम होगी।

    निर्जला एकादशी पर बंद मंदिरों के कारण प्रभावित मिट्टी के घड़े, सुराही का दान

    जागरण संवाददाता, पटियाला : बिना जल और आहार के व्रत करते हुए जरूरतमंदों को जल और फल दान करने का सिलसिला इस निर्जला एकादशी को जारी तो रहेगा, लेकिन इसका स्वरूप बदल जाएगा। आज निर्जला एकादशी पर परंपरागत सुराही, घड़ा और हाथ की पंखी जरूरतमंदों को देने वालों की संख्या काफी कम होगी। मिट्टूी से बने बर्तनों की बिक्री की उम्मीद मे बैठे कुम्हार निराश हैं। कुम्हारों के मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस बार महज पचीस फीसदी ग्राहक ही उनके पास आए। मुख्य मंदिर बंद होने के कारण निर्जला एकादशी का व्रत तो होगा, लेकिन उत्साह पहले जैसा नहीं रहेगा।

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    संस्थाओं की ओर से छबीलें नहीं लगाई जाएंगी और कोरोना के डर से सीमित दायरे में रह कर लोग गली मोहल्ले के मंदिरों में माथा टेक सकेंगे। पंडित हरिदर शास्त्री ने कहा कि वैसे तो हर माह आने वाली एकादशी का महत्व है, लेकिन भगवान विष्णु को निर्जला एकादशी से जोड़ कर देखा जाता है और व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। दान का सदैव महत्व रहा है निर्जला एकादशी पर जल और फल दान देने से कष्ट दूर होते हैं और सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे में दान देने का सिलसिला रूकना नहीं चाहिए, हां हालातों को देखते हुए सावधानी जरूरी है।

    अचार बाजार में शरबत बेचने वाले अशोक छाबड़ा ने कहा कि हर साल निर्जला एकादशी पर सैकड़ों बोतल शरबत की बिक जाया करती थी। कोरोना के कारण फिजिकल डिस्टेंस और ठंडा पीने से परहेज के कारण लोग कम शरबत ले रहे हैं जो ले रहे हैं, वो दान के लिए। ऐसे में जाहिर है गली मोहल्ले के मंदिरों में दान तो जरूर किया जाएगा। कोरोना के कारण पिछले साल के मुकाबले इस बार काम काफी कम रहा।

    जुरूरतमंद की मदद से बड़ा पुण्य नहीं

    शरबत, पानी से भरे सुराही-घड़े, हाथ वाली पंखियां, खरबूजा आदि लोग खरीदकर दान देने के लिए रखेंगे। किसी जरूरतमंद की मदद करने से बड़ा पुण्य कुछ नहीं हो सकता। निर्जला एकादशी पर दान का महत्व पौराणिक कथाओं में भी है। मंदिर श्रद्धा का केंद्र हैं, लेकिन सड़क पर असहाय घूम रहे लोगों की मदद सबसे बड़ा पुण्य है। कोरोना की इस घड़ी में निर्जला एकादशी के दान सामाजिक उपयोगिता के साथ जोड़ कर देखना होगा। एक तरफ लोग घरों से निकलने को कतरा रहे हैं तो जरूरतमंद सहायता की इंतजार में है। मंदिर बंद है तो गरीबों को शरबत और फल देकर पुण्य कमाना चाहिए।

    सुराही व घड़े खरीदने से कुम्हारों की होती है मदद

    पेशे से डॉक्टर रमन ग्रोवर, सेवानिवृत्त काका राम वर्मा ने कहा कि मंदिर में हो या जरूरतमंदों को दिया दान हो विशेष महत्व रखते हैं। जरूरतमंद आपके दान को दिल से ग्रहण करते हैं और उनकी आत्मा संतुष्ट होती है। जो ईश्वर की इच्छा है। दान देने की परंपरा से मिट्टी के बर्तन, सुराही या घड़े दान करने से कुम्हारों की भी मदद होती है जो भीख न मांग कर मेहनत से परिवार पाल रहे हैं। (बॉक्स)

    कोल्डड्रिक और शरबत, नहीं बिके घड़े और सुराही

    निर्जला एकादशी पर हर साल 400 से 500 पंखे बिक जाते थे। इस बार केवल 100 हाथ की पंखी बिकी है। इसी तरह मिट्टी के बर्तन सुराही, घड़े छोटे बड़े मिला कर 300 से 400 तक बिक जाते थे, लेकिन कोरोना के कारण इस बार केवल 50 बर्तनों की बिक्री हुई है। रेडीमेड कोल्डड्रिक और शरबत का दान दिया जा रहा है। मंदिर बंद होने कारण भी उनकी बिक्री प्रभावित हुई है।

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