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Parkash Singh Badal: प्रकाश सिंह बादल का राजनीति करियर, 75 साल का सियासी सफर और 17 साल काटी जेल

Parkash Singh Badal आजादी के बाद से शायद ही ऐसा कोई चुनाव पंजाब में हुआ जिसमें प्रकाश सिंह बादल ने हिस्सा न लिया हो। उन्होंने हमेशा पंजाब की सियासत को अहमियत दी। केवल एक बार जब देश में आपातकाल लगा तो उन्होंने केन्द्र की सियासत का रूख किया।

By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaPublished: Wed, 26 Apr 2023 05:00 AM (IST)Updated: Wed, 26 Apr 2023 05:00 AM (IST)
Parkash Singh Badal: प्रकाश सिंह बादल का राजनीति करियर, 75 साल का सियासी सफर और 17 साल काटी जेल

श्री मुक्तसर साहिब, जागरण संवाददाता। पंजाब के साथ-साथ देश ने भी अपना सबसे उम्रदराज सियासी नेता खो दिया है। 1927 में जन्मे प्रकाश सिंह बादल ने अपनी सियासी पारी उसी साल शुरू की थी जब देश आजाद हुआ था। प्रकाश सिंह बादल अपने राजनीतिक कैरियर के 75 साल तक सक्रिय रहे।

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वह 2012 से 2017 तक जब मुख्यमंत्री रहे तो तब वह 85-90 साल के थे तो तब भी पूरे सक्रिय थे। पूरे पंजाब में संगत दर्शन के माध्यम से लोगों की मुश्किलें सुनने के लिए जाते थे। 2017 के बाद जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार बन गई तो तब भी वह कांग्रेस सरकार की कारगुजारी पर सवालिया निशान खड़े करते रहे हैं। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में तो शरीरिक पक्ष से काफी बीमार थे। 2022 के चुनाव में उनके चेहरे पर वो सक्रियता नहीं दिखी,जो पिछले चुनावों में होती थी।

आजादी के बाद शायद ही कोई चुनाव हो, जिसमें बादल ने ना लिया हो हिस्सा

एक समय ऐसा भी आया कि जब भी पंजाब की सियासत की बात हो तो जो पहला चेहरा किसी के सामने आता वो प्रकाश सिंह बादल का ही होता। हो भी क्यों न वे अकेली ऐसी शख्सियत थे जो पंजाब के पांच बार मुख्यमंत्री रहे। वे एक ऐसे जननेता थे जिन्होंने 1969 से 1992 तक किसी भी विधानसभा चुनाव में हार का मुंह नहीं देखा।

1992 में तो उन्होंने खुद ही चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया था। दरअसल आजादी के बाद से शायद ही ऐसा कोई चुनाव पंजाब में हुआ जिसमें प्रकाश सिंह बादल ने हिस्सा न लिया हो। उन्होंने हमेशा पंजाब की सियासत को अहमियत दी। केवल एक बार जब देश में आपातकाल लगा तो उन्होंने केन्द्र की सियासत का रूख किया।

मोराजी देसाई के वक्त उन्होंने कृषि मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। पंजाब में अपनी सियासी पारी के दौरान उन्हें करीब 17 साल जेल में भी बिताने पड़े थे। बहरहाल सच्चाई ये है कि पंजाब ने अपनी सियासत के पितामह को खो दिया है।


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