बलबीर सिंह सीनियर ने मोगा से किया था गोलकीपर के रूप में हॉकी का सफर शुरू, आज भी जिंदा हैं यादें
ओलंपियन बलबीर सिंह सीनियर ने मोगी से गोलकीपर के रूप में अपना करियर शुरू किया था। स्कूल के चप्पे-चप्पे पर उनकी यादें आज भी मौजूद हैं।
मोगा [सत्येन ओझा]। ध्यानचंद के बाद मॉडर्न हाकी के दूसरे जादूगर कहे जाने वाले ओलंपियन बलबीर सिंह सीनियर ने मोगा की धरती से गोलकीपर के रूप में हॉकी में अपना करियर शुरू किया था। मैट्रिक तक वे यहां के देव समाज सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़े। साल 1940 में वे मैट्रिक पास करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए दूसरे शहर में चले गए थे। उनके पिता सरदार दिलीप सिंह इसी स्कूल में अध्यापक थे। जिसके चलते बलबीर सिंह मैट्रिक तक इसी स्कूल के हॉस्टल में रहे, यहीं के मैदान पर हाकी की बारीकियां सीखीं, संयोगवश अपने उनके समकक्ष खिलाड़ी भी कोई नहीं है, हालांकि स्कूल के चप्पे-चप्पे पर उनकी यादें आज भी मौजूद हैं।
भारतीय हॉकी को स्वर्णिम दिनों में पहुंचाने वाले व तीन बार ओलंपिक में पदक दिलाने वाले ओलंपियन बलबीर सिंह सीनियर अंतिम बार तीन साल पहले यहां डीएम कॉलेज के खेल मैदान में हुए हॉकी टूर्नामेंट में मुख्य अतिथि के रूप में आए थे। हॉकी टूर्नामेंट में भाग लेने के बाद वे अपने पुराने स्कूल की अनदेखी नहीं कर सके। टूर्नामेंट से वे सीधे देव समाज स्कूल पहुंचे। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए उन कक्षाओं में गए थे जहां आम बच्चों की तरह बैठकर वे पढ़ा करते थे। उस खेल मैदान को उन्होंने नमन किया, जहां से शुरूआत तक भारतीय हॉकी को बुलंदियों पर पहुंचाया था।
तीन बार दिलाया ओलंपिक में स्वर्ण पदक
तीन बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता बलबीर सिंह सीनियर का 95 साल की उम्र में निधन होने की सूचना मोगा पहुंची तो स्कूल के प्रिंसिपल अनुराग धूरिया के लिए ये पल बेहद भावुक कर देने वाला था। वे स्कूल पहुंचे और कुछ पल उन्होंने ओम्पियन बलबीर सिंह की यादों के साथ बिताए। प्रिंसिपल अनुराग धूरिया ने बताया ओलंपियन बलबीर सिंह सीनियर के पिता सरदार दलीप सिंह इसी स्कूल में अध्यापक रहे थे।
1940 में उन्होंने यहां से मैट्रिक पास आउट किया था। बलबीर सिंह पढ़ाई के दिनों में स्कूल हॉस्टल में ही रहे थे। उस समय ईश्वर सिंह व अजमेर सिंह उनके अध्यापक रहे थे, संयोग से वे अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन इन दोनों अध्यापकों ने जीते जी ही अपने शिष्य के हॉकी के स्वर्णिम दिनों को देख लिया था। शतरंज के कोच विनोद शर्मा ने बताया कि तीन साल पहले जब देव समाज स्कूल में ओलंपियन बलबीर सिंह से मिले थे, तब भी वे उसी तरह सहज और सरल थे। भारत को हॉकी का स्वर्णिम इतिहास देने वाले बलबीर सिंह निजी जीवन में बेहद मिलनसार व मृदुभाषी थे।
कौन थे बलबीर सिंह
देश के महानतम एथलीटों में से एक बलबीर सीनियर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा चुने गए आधुनिक ओलंपिक इतिहास के 16 महानतम ओलंपियनों में शामिल थे। हेलसिंकी ओलंपिक फाइनल में नीदरलैंड के खिलाफ पांच गोल का उनका रिकॉर्ड आज भी कायम है। उन्हें 1957 में पद्मश्री से नवाजा गया था। बलबीर सिंह लंदन ओलंपिक-1948, हेलसिंकी ओलंपिक-1952 और मेलबर्न ओलंपिक-1956 में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे। 1952 ओलंपिक खेलों के स्वर्ण पदक के मैच में बलबीर ने नीदरलैंड्स के खिलाफ पांच गोल किए थे और भारत को 6-1 से जीत दिलाई थी। बलबीर विश्व कप-1971 में कांस्य और विश्व कप-1975 जीतने वाली भारतीय टीम के मुख्य कोच थे।