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    लुधियाना में दर्दनाक हादसाः पैसेंजर की चपेट में आने से 3 मजदूरों की मौत, बात करते-करते नहीं सुनाई दी ट्रेन की आवाज

    By DeepikaEdited By:
    Updated: Mon, 05 Sep 2022 08:18 AM (IST)

    जीआरपी के एसएचओ जसकरण सिंह ने बताया कि ये तीनों मजदूर लुधियाना में ही किसी फैक्ट्री में काम करते थे। रविवार को वे तीनों आपस में बात करते जा रहे थे जिस कारण इन्हें ट्रेन आने का पता ही नहीं चला।

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    लुधियाना में तीन मजदूरों की दर्दनाक मौत। (सांकेतिक)

    जागरण संवाददाता, लुधियाना: लुधियाना से अंबाला जा रही पैसेंजर ट्रेन की चपेट में आने से तीन लोगों की मौत हो गई। तीनों युवक मजदूरी करते थे और ग्यासपुरा के पास लगने वाली एक मार्केट में जाने के लिए रेल लाइन पार कर रहे थे। रविवार शाम साढ़े चार बजे के करीब हुई इस घटना के बाद लाइन के पास लगने वाली मार्केट में भी अफरा-तफरी मच गई। मृतकों में से सिर्फ एक की ही पहचान हुई है, जोकि उत्तर प्रदेश निवासी चंद लाल था।

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    अन्य दो मृतकों की शिनाख्त के प्रयास किए जाए रहे हैं। जीआरपी के एसएचओ जसकरण सिंह ने बताया कि ये तीनों मजदूर लुधियाना में ही किसी फैक्ट्री में काम करते थे। रविवार को वे तीनों आपस में बात करते जा रहे थे, जिस कारण इन्हें ट्रेन आने का पता ही नहीं चला। हादसे की सूचना मिलने पर जीआरपी और आरपीएफ के कर्मचारी मौके पर पहुंचे और शवों को लाइनों से हटवाया गया।

    आरपीएफ के अधिकारी नहीं हैं सजग

    घटनास्थल पर हालात यह हैं कि यहां पर लाइन के साथ ही बाजार लगता है और इन्हें रोकने वाला कोई नहीं होता। आरपीएफ के अधिकारी अगर सजग होते तो इतना बड़ा हादसा नहीं होता। घटनास्थल पर मौजूद लोगों ने बताया कि हर रविवार को रेलवे ट्रैक पर बाजार सज जाता है और आसपास के लोग यहां लाइनें पार कर खरीदारी करने पहुंच जाते हैं।

    फिल्लौर से ढंडारी तक है अतिक्रमण

    आरपीएफ और जीआरपी की अनदेखी के कारण जगह-जगह रेलवे ट्रैक पर बाजार सज रहे हैं। लुधियाना में फिल्लौर से लेकर ढंडारी तक रेल लाइन के किनारे अतिक्रमण आम देखा जा रहा है। लोग दबी आवाज में ये भी कह रहे हैं कि विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से ही ये बाजार सजे रहते हैं। यही कारण है कि इतना बड़ा हादसा होने के बावजूद कोई भी अधिकारी बाजार बंद करवाने नहीं पहुंचा।

    अमृतसर में हुए हादसे से भी नहीं लिया सबक

    करीब 4 साल पहले अमृतसर में रेलवे लाइन के किनारे ही दशहरे का मेला लगाया गया था। इस दौरान वहां ट्रेन आ गई थी, जिसकी चपेट में आने से 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद भी रेलवे प्रशासन नहीं जागा। अगर प्रशासन जागा होता तो अब तक रेल ट्रैक के किनारे सजने वाले बाजार सजने बंद हो जाते।

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