Muktsar Tourist places: सर्दियाें में मुक्तसर के इन दर्शनीय स्थलाें की करें सैर, मन काे मिलेगा सुकून
Muktsar Tourist places पंजाब में सर्दियाें के माैसम में आप सैर कर सकते हैं। श्री मुक्तसर साहिब में घूमने के लिए खई स्थान है। दशमेश पातशाह श्री गुरु गाेबिंद सिंह जी ने मुगल सल्तनत के खिलाफ 1705 में अपनी आखिरी जंग यहीं लड़ी थी।

आनलाइन डेस्क, लुधियाना। Muktsar Tourist places: सर्दियाें में सैर सपाटे के लिए पंजाब बेहतर है। यहां देश-विदेश से राेजाना हजाराें की संख्या में पर्यटक आते हैं। आप भी यदि घूमने का प्लान बना रहे हैं ताे यह समय सबसे बेहतर है। पंजाब में वैसे ताे कई दर्शनीय स्थल है, लेकिन अगर मालवा के शहर श्री मुक्तसर साहिब की बात ही कुछ और है। यहां के धार्मिक स्थल और खान-पान के आप मुरीद हाे जाएंगे।
बताया जाता है कि दशमेश पातशाह श्री गुरु गाेबिंद सिंह जी ने मुगल सल्तनत के खिलाफ 1705 में अपनी आखिरी जंग यहीं लड़ी थी। इतिहास में इसे खिदराणे की जंग भी कहा जाता है। चमकाैर की लड़ाई के बाद खई स्थानाें से हाेकर गुरु जी यहां पहुंचे थे। वजीर खान की फौज गुरु जी का पीछा कर रही थी। आइये जानते हैं श्री मुक्तसर साहिब के 5 धार्मिक स्थलाें के बारे मेंः
गुरुद्वारा तंबू साहिब
मुगलों के साथ खिदराने के युद्ध के समय जिस स्थान पर सिखों द्वारा तंबू लगाए गए थे, वहां आज गुरुद्वारा तंबू साहिब सुशोभित है। माता भाग कौर की याद में भी इसके पास गुरुद्वारा भाग कौर बना है। यहां हर राेज बड़ी संख्या में संगत अरदास करती है बताया जाता है कि 40 सिंह माई भागो के नेतृत्व में वापस गुरु जी की खोज में निकल पड़े थे। गुरु जी का पीछा करते-करते जब मुगल सेना भी खिदराने आ पहुंची थी। मुगल सेना ने 40 सिंहों पर आक्रमण कर दिया था। 40 सिंह योद्धा भी चारों और से मुगलों पर भूखे शेर की भांति टूट पड़े। इस युद्ध में 39 सिंह शहीद हो गए।
गुरुद्वारा शहीद गंज साहिब
इस स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने क्षेत्र के सिखों की सहायता से मुगलों के साथ युद्ध करते समय शहीद हुए 40 मुक्तों का अंतिम संस्कार किया था। जिस कारण यहां पर गुरुद्वारा शहीद गंज साहिब सुशोभित है। यहां देश-विदेश से संगत भी अरदास करने के लिए आती है।
गुरुद्वारा रकाबसर साहिब
इस गुरुद्वारे का भी अपना इतिहास है। यह वह स्थान है, जहां दशमेश पिता श्री गुरु गाेबिंद सिंह जी के घोड़े की रकाब टूट गई थी। जब गुरू साहिब टिब्बी साहिब से उतर कर खिदराने की रणभूमि की ओर चले तो घोड़े की रकाब पर पांव रखते ही वह टूट गई थी। अब तक वह टूटी हुई रकाब उसी प्रकार सुरक्षित रखी हुई है तथा वहां गुरुद्वारा रकाबसर बना हुआ है।
गुरुद्वारा श्री टिब्बी साहिब
यहां बैशाखी पर हर साल मेला लगता है। यहां मेले में बड़ी संख्या में निहंग सिंह आते हैं। संगत लोहड़ी की रात से ही गुरुद्वारा साहिब में स्नान के लिए आनी शरू हाे जाती है।
शहीदी पार्क
शहर का शहीदी पार्क किसी भी मायने में कम नहीं है। यहां एक मीनार स्थापित है। इस मीनार का निर्माण धातु के चालीस छल्लों से किया गया है, जो उन 40 वीर शहीदों की शहदात का प्रतीक हैं। मीनार पर खिदराने की ढाब का तमाम इतिहास अंकित है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।