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पंजाब में निराश किसानों व मजदूरों के परिवारों के लिए आशा की ‘किरण’, यूं लड़ रही है हक हकूक की लड़ाई

नारी सशक्तीकरण को लेकर कानून बन रहे हैं। बावजूद इसके महिलाओं को कदम-कदम पर संघर्ष करना पड़ रहा है। फिर भी कुछ ऐसी हैं जिन्होंने अपनी कमजोर व्यवस्था पर सवाल खड़े करने के बजाय घर की ड्योढ़ी पार कर खुद मैदान में उतरकर इस चुनौती को स्वीकारा।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 22 Apr 2021 01:40 PM (IST)Updated: Thu, 22 Apr 2021 01:40 PM (IST)
पंजाब में निराश किसानों व मजदूरों के परिवारों के लिए आशा की ‘किरण’, यूं लड़ रही है हक हकूक की लड़ाई
मानसा के गांव झुनीर में किरणजीत महिलाओं से बात करती हुईं। जागरण

मानसा [इन्द्रप्रीत सिंह]। किसान, मजदूर, कर्ज और आत्महत्याएं...। पिछले करीब एक दशक से पंजाब की यही कहानी रही है। किसान और मजदूर अपनी जरूरतों के लिए कर्ज लेते हैं, समय पर अदायगी नहीं पाती और कर्ज में डूबे इन लोगों का जब अपने भी साथ छोड़ देते हैं तो यह लोग आत्महत्या करने लगते हैं। उनके दुनिया छोड़ देने के बाद उनके परिवारों के हिस्से आता है वह दर्द जो वह किसी के साथ बांट भी नहीं पाते और घुट-घुट कर जिन्दगी जीने को मजबूर हो जाते हैं।

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आत्महत्या कर चुके एक किसान की बेटी ने अब ऐसे लोगों को की जिंदगी बदलने के लिए नई पहल की है, जिससे यह परिवार अपनों के दुनिया छोड़ जाने और अपनो के रिश्ते तोड़ जाने के दर्द से बाहर निकलने लगे हैं। इसी बहादुर बेटी से मिलने आइए ले चलते हैं पंजाब के मानसा जिले के झुनीर गांव।

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यहां डेरा बाबा ध्यान दास जी से करीब एक सौ मीटर की दूरी पर गांव के सीवरेज के पानी को साफ करके उसे सिंचाई के लिए प्रयोग करने वाले प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। तपती दोपहर में गांव की रानी कौर ने अपनी सहयोगी महिलाओं के साथ काम से खाना खाने के बाद विराम लिया है। वह डेरे के लंगर में भोजन करने के लिए पहुंचीं तो पता चला कि किरणजीत आज गांव आई हुई है। रानी कौर भोजन की परवाह किए बिना डेरे के तलाब के किनारे बरगद के पेड़ के नीचे बैठी किरणजीत के पास पहुंचती है।

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किरणजीत दिल्ली से आई मीडिया टीम के साथ बात करने में व्यस्त है, लेकिन रानी से रुका नहीं गया। वह किरणजीत के पास पहुंची और एक ऐसे मजदूर परिवार के बारे में बताया जिसके मुखिया ने आत्महत्या कर ली। अब इस परिवार के बच्चों की पढ़ाई को लेकर मृतक की पत्नी परेशान है। रानी कौर, किरणजीत से इस परिवार से मिल लेने के बारे में कहकर अपने परिवार की कुछ समस्याएं भी बताती है और काम पर लौट जाती है।

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दरअसल, किरणजीत को यह सारी जानकारी देने के पीछे रानी कौर का मकसद मृतक मजदूर के परिवार को मदद दिलवाना है। क्योंकि जिन घरों के चिराग बुझ गए हैं उनके लिए किरणजीत ‘आशा की किरण’ बनी हुई हैं। आत्महत्या करने वाले किसानों और मजदूरों के परिवारों को सहारा और सहयोग देने के इरादे से ‘पिंड बचाओ, पंजाब बचाओ’ नाम से एक संगठन खड़ा हो चुका है जो आत्महत्या करने वाले किसानों और मजदूरों के परिवारों की बेसहारा महिलाओं की मदद और उनके बच्चों की पढ़ाई न छूट जाए, इसके लिए प्रयास कर रहा है। आर्थिक मदद दे रहा है।

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किरणजीत बताती हैं कि असल में रानी कौर केवल मजदूर परिवार के बारे में बताने नहीं आई थी, बल्कि वह अपनी समस्या बताकर अपने मन का बोझ हलका करने आई थी। इनकी बात को सुनना जरूरी है। क्योंकि यही बोझ है जो किसी को अपनी जीवन लीला समाप्त करने के लिए उकसाता है, कर्ज तो सिर्फ बहाना है।

किरणजीत ने कहा कि जब भी वह यूनिवर्सिटी से घर आती है तो सारा दिन इन्हीं लोगों की व्यथा को सुनने में निकल जाता है। कई बार तो अपनी मां के साथ भी बैठने का समय भी नहीं मिलता। वह कहती हैं, ‘जब मेरे पिता ने आत्महत्या की तो मैं इतनी निराश हो गई कि एक साल तक न घर से बाहर निकली और न किसी से बात की।’ तीन एकड़ की छोटी किसानी के मालिक किरण के पिता ने अप्रैल, 2016 में कर्ज के बोझ के कारण आत्महत्या कर ली थी। लगातार दो साल कपास की फसल बर्बाद हुई तो वह कर्ज नहीं उतार पाए और आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया।

किरणजीत ने कहा कि अक्सर किसानों की आत्महत्याओं के बारे में अखबारों में पढ़ती थी, लेकिन यकीन नहीं होता था कि कोई कर्ज के कारण अपनी जान दे सकता है। परंतु जब अपने पिता को अपने ही खेत में पेड़ से लटका पाया, तब लगा कि नहीं, कर्ज का बोझ बहुत भारी होता है। मेरी व्यथा जानने के लिए चंडीगढ़ से मीडिया की टीम आई तो मुझे उस पर गुस्सा आया कि उन्हें सिर्फ अपनी खबर बनानी है, परिवार पर क्या बीत रही है इससे उन्हें कोई मतलब नहीं। जाते समय वह अपना नंबर मुझे दे गए।

बकौल किरणजीत, ‘मैंने उनसे कोई संपर्क नहीं किया लेकिन एक साल बाद वह फिर हमारे घर आए और उन्होंने कहा कि इस तरह निराश बैठे रहने से कुछ नहीं होगा। मुझे ऐसे परिवार वालों से संपर्क करना चाहिए जिन्होंने अपनों को गंवा दिया है। यह जानना होगा कि वह आज किस हालत में जी रहे हैं’ किरण एक ही सांस में सब बोल गई। इसके बाद मुझे लगा कि इस दर्द से बाहर निकलना होगा। मुझे अपने गांव में मजदूर परिवार के मुखिया की आत्महत्या के बारे में पता चला। उसकी पत्नी बच्चों को कैसे पाल रही है, यह सब जाना।

उस महिला ने कहा, ‘जब कर्ज चढ़ जाता है तो सब साथ छोड़ देते हैं। सभी को लगता है कि ये पैसे मांगने आए हैं।’ तब समझ में आया कि कर्ज नहीं, अपनों के साथ छोड़ देने पर लोग आत्महत्या कर लेते हैं। क्योंकि उसकी बातें सुनकर ऐसा लगा कि हमारे साथ भी तो ऐसा ही हुआ था। क्या यह सबके साथ ऐसा ही होता है, मजदूर परिवारों की हालत तो बहुत ही खराब है। उनके पास न तो अपनी गुजर बसर करने के लिए जमीन है, न ही कोई और स्रोत।

इसके बाद किरणजीत ने अपने गांव से जिला मानसा समेत सात जिलों में आत्महत्या करने वाले किसानों और मजदूरों के परिवारों से संपर्क किया। उनकी हालत जानी और यह पता किया कि क्या सरकार से इन परिवारों को सहायता राशि मिली या नहीं मिली। सरकार ने मजदूरों का कर्ज भी माफ करने का एलान किया था, उसका क्या हुआ? आत्महत्या करने वाले किसानों और मजदूरों की पत्नियां आज किस स्थिति में हैं। उनके बच्चों की पढ़ाई कैसे चल रही है?

ऐसे कई सवालों के जवाब ढूंढ लेने के बाद समाधान की तरफ कदम बढ़ाने की जरूरत थी। इसके लिए किरणजीत ने समाजसेवियों, पत्रकारों, डाक्टरों आदि के साथ मिलकर सेमिनार किए। लोकसभा चुनाव में सभी दलों के नेताओं के सामने यह सवाल रखे। प्रयासों में सफलता मिली तो ‘पिंड बचाओ, पंजाब बचाओ’ नाम से संगठन खड़ा हुआ जो अब आत्महत्या करने वाले किसानों और मजदूरों के परिवारों की महिलाओं की मदद के साथ ही उनके बच्चों की पढ़ाई के लिए मदद कर रहा है। करीब तीन सौ बच्चों की फीस समाज सेवियों से जुटाई जा रही है।


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