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जगराओं का इतिहासः मिट गए निशान.. बस नाम ही बाकी, सात दरवाजों में से बचे हैं बस तीन

शहर के सात दरवाजों में अब मात्र तीन दरवाजे ही अस्तित्व में हैं। इनमें एक फिलीगेट कमेटी गेट और मंडी में एक दरवाजा।

By Edited By: Published: Tue, 10 Mar 2020 05:30 AM (IST)Updated: Thu, 12 Mar 2020 11:24 AM (IST)
जगराओं का इतिहासः मिट गए निशान.. बस नाम ही बाकी, सात दरवाजों में से बचे हैं बस तीन

जगराओं [हरविंदर सिंह सग्गू]। ऐतिहासिक शहर जगराओं की पुरातात्विक धरोहर सात दरवाजे अब खत्म होने की कगार पर हैं। भले ही नगर कौंसिल की बैठक में इनमें से एक कमेटी गेट को संभालने के लिए प्रस्ताव पारित किया है। लेकिन, शहर की धरोहर माने जाने वाले सातों दरवाजों का संरक्षण भी जरूरी है। ताकि हम नई पीढ़ी को शहर के इतिहास से रू-ब-रू करवा सकें।

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वयोवृद्ध वैद्य नसीब चंद का कहना है जगराओं कभी वाल्ड सिटी के तौर पर जाना जाता था। शहर के चारों तरफ सात गेट हुआ करते थे। इनमें फिलीगेट, भंगड गेट, मोरी गेट, सुभाष गेट, कमेटी दरवाजा, एंडरसव गंज गेट और मंडी के दूसरी तरफ शहर वाला दरवाजा हुआ करता था।

सभी गेटों पर होती थी एक-एक खिड़कियां

शहर के सातों गेटों में एक-एक खिड़कियां होती थी। जब रात के समय किसी ने बाहर आना या जाना होता था उसे खोला जाता था। इसके अलावा कमेटी गेट पर एक बडा टल्ल लगा होता था। जब यह दरवाजे रात के समय बंद होते थे और सुबह खोले जाते थे तो इस टल्ल को बजाकर सूचित किया जाता था। या कभी कोई मुश्किल सामने आती थी तो भी यह टल्ल बजाया जाता था। सभी दरवाजों पर एक-एक चौकीदार होता था। वह टल्ल भी कुछ वर्ष पहले कोई चुरा कर ले गया। यही नहीं ये गेट जंग-ए-आजादी का गवाह भी रहा है।

यह है जगराओं का इतिहास

जगराओं के मशहूर लेखक और शोधकर्ता अजीत प्यासा ने अपनी पुस्तक 'जगरावा ठंडीयां छावां' शहर का इतिहास की जानकारी दी है। उनके अनुसार यह शहरी पहली बार दूसरी सदी में गांव काउंके कलां को जाने वाली सडक से अगवाड़ लोपो चौक के रास्ते में बसा था। उसके बाद ईसवी 350 में चंद्र गुप्त द्वितीय के शासनकाल में गुज्जरों ने अड्डा रायकोट के नजदीक (अब मुहल्ला माई जीना) खालसा हाई स्कूल वाली जगह पर शहर बसाया। जो पूरा क्षेत्र अब भी अगवाड़ गुज्जररां के नाम से जाना जाता है। इसके बाद शहर का विस्तर होता गया। जब हराय अहमद ने 1639 में रायकोट शहर बसाया तो उसने अपने भतीजे राय कल्ला को रायकोट का हाकम बना दिया। राय कल्ला ने जगराओं में साईं पीर बाबा लपे शाह ( उनकी मजार आज भी मौजूद है ) के आदेश अनुसार जगराओं शहर के चारों तरफ यह सात दरवाजे बनवाकर इसे एक मजबूत दुर्ग का रूप दे दिया।

राय कल्ला ने की गुरु गोबिंद सिंह जी की सेवा

यह राय कल्ला वही हाकम था जिसने सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी की 1705 में सेवा की थी। जब वह उच्च का पीर वाले रूप में आए थे। जब छोटे साहिबजादों को सरहिंद की दीवारों में चिनवा दिया था तो राय कल्ला ने अपने चरवाहे नूरा माही से सरहिंद भेज कर साहिबजादों की खबर मंगवाई थी। गुरु साहिब ने राय कल्ला को उस समय एक खडग ( कृपाण ) एक पोथी रखने वाली रिहल और एक गंगा सागर भेंट की थी जोकि उनके वंशजों के पास आज भी पाकिस्तान में मौजूद है।

महाराजा रणजीत सिंह के अधीन भी रहा जगराओं

किताब के मुताबिक 1806 से 1808 के समय दौरान महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब में तीन बार हमले करके इसे विभिन्न हिस्सों में अपने कब्जे में लिया और अपने साथियों में जीते हुए गांव शहर बांट दिए। उसमें से जगराओं, सिधवांबेट और तिहाडा फतेह सिंह आहलूवालिया के हिस्से आया। समय के अनुसार यहां बहुत कुछ बदला और शहर की यह विरासत इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गई।

बचे हैं तीन दरवाजे

शहर के सात दरवाजों में अब मात्र तीन दरवाजे ही अस्तित्व में हैं। इनमें एक फिलीगेट, कमेटी गेट और मंडी में एक दरवाजा। बाकियों के निशान मिट गए हैं बाकी नाम ही बचे हैं। शहर की इस बड़ी धरोहर को बचाने के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को आगे आने की जरूरत है।


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