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    बंटवारे के बाद चार भाइयों ने मिलकर खड़ा किया लुधियाना में साइकिल उद्योग का बड़ा साम्राज्य, ‘हीरो’ नाम रखने की है रोचक कहानी

    By DeepikaEdited By:
    Updated: Sat, 13 Aug 2022 10:03 AM (IST)

    वर्ष 1944 में ही देश के बंटवारे की सुगबुगाहट मिलने के साथ पाकिस्तान के कई शहरों में दंगे शुरू हो गए थे। लायलपुर के कस्बे कमलिया में आढ़ती का काम करने वाले बहादुर चंद मुंजाल ने हालात अच्छे न देख परिवार के साथ अमृतसर का पहले ही रुख कर लिया।

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    लुधियाना में साइकिल उद्योग का बड़ा साम्राज्य खड़ा करने वाले चारों भाई । (जागरण)

    राजीव शर्मा, लुधियाना। पाकिस्तान स्थित लायलपुर में जन्मे चार मुंजाल भाइयों सत्यानंद मुंजाल, ओमप्रकाश मुंजाल, बृजमोहन लाल मुंजाल और दयानंद मुंजाल ने देश के बंटवारे के बाद लुधियाना में साइकिल उद्योग का बड़ा साम्राज्य खड़ा किया। यह आज अन्य उद्योगपति के लिए मिसाल है।

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    बंटवारे से कुछ वर्ष पहले ही मुंजाल परिवार लाहौर से आकर अमृतसर में बसा और साइकिल के पुर्जे का व्यापार शुरू किया। चारों भाई कुछ अलग करने की तमन्ना के साथ लुधियाना आ गए और यहां साइकिल पुर्जे बनाने के साथ साइकिल इंडस्ट्री की ऐसी नींव रखी कि आज देश ही नहीं, विश्व में हीरो (हीरो साइकिल) का डंका बज रहा है। वर्ष 2005 में भारत सरकार ने उद्योग जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए बृजमोहन लाल मुंजाल को प्रतिष्ठित पद्म भूषण अवार्ड से सम्मानित किया।

    50 हजार रुपये लोन लेकर शुरू किया काम

    वर्ष 1944 में ही देश के बंटवारे की सुगबुगाहट मिलने के साथ पाकिस्तान के कई शहरों में दंगे शुरू हो गए थे। लायलपुर (अब पाकिस्तान) के कस्बे कमलिया में आढ़ती का काम करने वाले बहादुर चंद मुंजाल ने हालात अच्छे न देख परिवार के साथ अमृतसर का पहले ही रुख कर लिया। अमृतसर में साइकिल पार्ट्स सप्लाई का काम शुरू किया। जिंदगी फिर अपना रंग दिखाने लगी और अमृतसर में भी सुकून नहीं मिला।

    देश का बंटवारा हो जाने से दंगे भड़क गए। जिस गली में मुंजाल परिवार रहता था, वहां दंगाइयों ने आग लगा दी। परिवार सहित चारों भाइयों सत्यानंद मुंजाल, ओमप्रकाश मुंजाल, बृजमोहन लाल मुंजाल और दयानंद मुंजाल ने लुधियाना का रुख कर लिया। उन्होंने 50 हजार रुपये का लोन लेकर साइकिल के पुर्जे बनाने शुरू किए। इसी दौरान ब्रिजमोहन लाल मुंजाल ने भाइयों के समक्ष पुर्जे के बजाय साइकिल बनाने का प्रस्ताव रखा। काफी मंथन के बाद सभी भाई सहमत हो गए और साइकिल बनाने की पहली यूनिट स्थापित की।

    ‘हीरो’ नाम रखने की रोचक कहानी

    साइकिल का नाम ‘हीरो’ रखने की भी एक रोचक कहानी है। एकबार स्व. ओमप्रकाश मुंजाल ने बातचीत में इसका उल्लेख करते हुए बताया था कि एक मुस्लिम करीमदीन साइकिल के सैडल्स बनाने का काम करता था। वह बंटवारे के समय पाकिस्तान जा रहा था और उनसे मिलने के लिए पहुंचा। करीमदीन अपने उत्पाद के लिए हीरो ब्रांड के नाम का इस्तेमाल करता था। उन्हें यह नाम काफी पसंद आया और उसे इसका नाम इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी। करीम ने बिना झिझक उन्हें इसकी अनुमति दे दी और फिर चार भाई मुंजाल से हीरो बन गए।

    शुरू में प्रतिदिन बनती थीं 25 साइकिलें

    हीरो साइकिल की यूनिट में आरंभिक दिनों में रोजाना लगभग 25 साइकिलें बनती थी। उसके बाद-प्रतिदिन उत्पादन बढ़ता गया और वर्ष 1966 में कंपनी साल में एक लाख साइकिल का निर्माण करने लगी। अगले 20 वर्षों में गति बढ़ती गई। वर्ष 1984 में एक साल में रिकार्ड 22 लाख साइकिल बनाकर बेच डाले।

    इस रिकार्ड ने इतिहास रचा और हीरो का नाम गिनीज वल्र्ड बुक में आ गया। अब वह रोजाना 20 हजार से ज्यादा साइकिलें बनने लगे थे। इतना ही नहीं, विदेशों से आयात होने वाले पुर्जे महंगे होने के कारण उनका उत्पादन भी लुधियाना में ही शुरू कर दिया।

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