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    GST Scam: साल 2023 में हुआ था 48 करोड़ का घोटाला, अब तक 12 लोग बनाए गए आरोपित; क्या है मामला?

    Updated: Sat, 08 Feb 2025 03:17 PM (IST)

    जालंधर में 48 करोड़ रुपये के जीएसटी घोटाले में छह और लोगों को आरोपित बनाया गया है। राज्य जीएसटी विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय जालंधर-2 ने शुक्रवार को चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की अदालत में सप्लीमेंट्री चालान पेश किया। इस मामले में अब आरोपितों की संख्या 12 हो गई है। जांच से पता चला कि इस घोटाले का का दायरा बड़ा है।

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    48 करोड़ के जीएसटी घोटाले में छह और लोग बनाए गए आरोपित (File Photo)

    जागरण संवाददाता, जालंधर। दो साल पुराने 48 करोड़ रुपये के जीएसटी घोटाले (GST Scam) में राज्य जीएसटी विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय जालंधर-2 ने छह और लोगों को आरोपित बनाया है। शुक्रवार को चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की अदालत में सप्लीमेंट्री चालान पेश किया गया।

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    इसमें टीना आनंद (मैसर्स गगन ट्रेडिंग कंपनी), रितु बाला (मैसर्स कपूर ट्रेडिंग कंपनी), प्रवेश आनंद (मैसर्स अंबे ट्रेडिंग कंपनी), हरजिंदर सिंह जौरा (मैसर्स रायल ट्रेडिंग कंपनी), मोहित अरोड़ा (मैसर्स एसआर ट्रेडिंग कंपनी) और गौरव जवाली (मैसर्स जय बाबा सोढ़ल ट्रेडिंग कंपनी) को भी आरोपित बनाया गया है। इस मामले में अब आरोपितों की संख्या 12 हो गई है।

    साल 2023 में जीएसटी विभाग ने 6 लोगों को बनाया था आरोपी 

    उल्लेखनीय है कि करीब दो साल पहले 30 जनवरी, 2023 को पंजाब जीएसटी विभाग की छह टीमों ने छापामारी कर फर्जी बिलों के जरिये सरकार से टैक्स रिफंड हड़पने के आरोप में चार लोगों को गिरफ्तार किया था।

    इसका चालान मार्च 2023 में अदालत में पेश कर उस समय छह लोगों पंकज कुमार/ पंकज आनंद, रविंदर सिंह, गुरविंदर सिंह, अमृतपाल सिंह, अजय कुमार और परवीन कुमार को आरोपित बनाया था। इस मामले में अब आरोपितों की संख्या 12 हो गई है।

    जब्त किए गए दस्तावेजों और इसमें शामिल लोगों के बयानों की जांच से पता चला कि इस घोटाले का का दायरा बड़ा है। घोटाले में और भी फर्म शामिल हैं और इससे जुड़ी हैं।

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    बिना सामान दिए तैयार किए फर्जी बिल और सरकार से लिया रिफंड

    जांच में सामने आया कि उक्त आरोपितों ने फर्जी फर्में बना रखी हैं। इन फर्मों के नाम का इस्तेमाल करके आरोपितों ने कागजों में एक-दूसरी फर्म को सामान दिया और उसके फर्जी बिल तैयार किए। वास्तविक रूप से आपूर्ति की ही नहीं गई। जिन वस्तुओं के फर्जी बिल बनाए गए उनमें से ज्यादातर पर 18 प्रतिशत टैक्स स्लैब था।

    आरोपितों ने फर्जी आइटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) बनाई और फिर इसे अन्य फर्मों को दे दिया। असल में इसका नकद भुगतान किया ही नहीं गया। नियमों के अनुसार जीएसटी विभाग (GST Department) अब लाभार्थी फर्मों के खिलाफ भी कार्रवाई शुरू कर सकता है।

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