अमृतसर के गांव में है मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की समाधि, अब विकसित करने की योजना
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल के अमृतसर आगमन पर जस्तरवाल स्थित श्रवण कुमार की समाधि के संरक्षण का मामला उठाया गया। मेघवाल ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से इस समाधि की रिपोर्ट मांगी है। मेघवाल ने कहा कि स्थल को विकसित करने की रूपरेखा तय की जाएगी।

जागरण संवाददाता, अमृतसर: श्रवण कुमार की मातृ-पितृ भक्ति समाज के लिए प्रेरणा स्रोत है। त्रेता युग के श्रवण कुमार की कहानी से संभवत: कोई विरला ही अनभिज्ञ होगा। अमृतसर के गांव जस्तरवाल में श्रवण कुमार की समाधि है। इस समाधि का निर्माण कब हुआ, यह किसी को पता नहीं है। समाधि पोखर के किनारे बनाई गई थी। इस पर पंजाबी भाषा में श्रवण कुमार के विषय में जानकारी अंकित है। हालांकि, रखरखाव न होने की वजह से इसके आसपास घास व झाड़ियां आदि उग चुकी हैं।
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल ने पुरातत्व विभाग से मांगी रिपोर्ट
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल के अमृतसर आगमन पर जस्तरवाल स्थित श्रवण कुमार की समाधि के संरक्षण का मामला उठाया गया। मेघवाल ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से इस समाधि की रिपोर्ट मांगी है। दैनिक जागरण से बातचीत में अर्जुन मेघवाल ने कहा कि गांव जस्तरवाल का इतिहास में बहुत महत्व है। पुरातत्व सर्वे विभाग से रिपोर्ट मिलने पर इस धार्मिक महत्ता वाले स्थल को विकसित करने की रूपरेखा तय की जाएगी।
समाधि को लेकर विरोधाभास भी
समाधि को लेकर विरोधाभास भी है। माना जाता है कि गांव जस्तरवाल, जिसे कभी दशरथवाल कहा जाता था, में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी के पिता राजा दशरथ के तीर से अनजाने में श्रवण कुमार की मृत्यु हुई थी। हालांकि, उत्तर प्रदेश के उन्नाव में भी श्रवण कुमार की समाधि है। इसलिए इस पर सवाल बरकरार है कि असल में श्रवण कुमार की समाधि कौन सी है।
गांव के लोगों का दावा है कि इसी समाधि स्थल पर राजा दशरथ के बाण से श्रवण कुमार की मृत्यु हुई थी। राजा दशरथ को जब अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने कांवड़ में बैठे श्रवण के नेत्रहीन माता-पिता को पानी पिलाया और पश्चाताप किया। दशरथ को पुत्र वियोग का श्राप देकर श्रवण के माता-पिता भी मृत्यु की आगोश में समा गए थे। श्री रामचंद्र जी को इसी श्राप की वजह से चौदह वर्ष तक वन गमन करना पड़ा था।
गांववासी सर्बजीत सिंह का कहना है कि हमारा विश्वास है कि यह स्थल श्रवण की समाधि है। समाधि की दीवार पर श्रवण कुमार की कहानी लिखी गई है। दीवारों पर राजा दशरथ के बाण से मृत्यु की आगोश में समा रहे श्रवण व उनके माता-पिता की तस्वीरें उकेरी गई हैं। कुछ इतिहासकारों का मत है कि असल में जिस स्थान पर श्रवण कुमार ने प्राण त्यागे थे, वह उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गांव सरवन है।
वर्ष 1850 में प्रकाशित हुए ब्रिटिश गजेटियर में भी उन्नाव में ही श्रवण की समाधि का उल्लेख किया गया था। दूसरी तरफ यह भी संभावित है कि श्रवण कुमार के किसी परिचित अथवा उपासक ने उन्नाव से उनकी अस्थियां गांव जस्तरवाल में स्थापित कर समाधि बनाई हो। शोधकर्ता सुरिंदर कोछड़ का कहना है कि दोनों स्थलों के बारे में अनुमान लगाया जा रहा है। यह शोध का विषय है कि श्रवण कुमार की वास्तविक समाधि कहां है।
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