महाभारत के 'भीम' प्रवीण आखिरी बार 2015 में आए थे तरनतारन स्थित पैतृक गांव सरहाली, यहीं दंगल में हिस्सा लेकर पाई प्रसिद्धि
महाभारत के भीम प्रवीण के निधन से गांव में शोक की लहर है। बीएसएफ में लंबी सेवाएं देने वाले प्रवीण सोबती को दुनिया भर में महाभारत के प्रवीण के नाम से जाना जाता है। बीएसएफ से बतौर डिप्टी कमांडेंट सेवामुक्ति के बाद उन्होंने महाभारत में भीम की भूमिका निभाई थी।

तरनतारन [धर्मबीर सिंह मल्हार]। 6 दिसंबर 1947 को कुलवंत राय के घर में पैदा हुए प्रवीण सोबती किसी पहचान के मौहथाज नहीं रहे। बीएसएफ में लंबी सेवाएं देने वाले प्रवीण सोबती को दुनिया भर में महाभारत के प्रवीण के नाम से जाना जाता है। 74 वर्षीय प्रवीण सोबती गांव में पहले कुश्ती दंगल में भाग लेते थे। बाद में डिस्कस थ्रो और हैमर थ्रो से जुड़कर उन्होंने एशियन खेलों (1968 मैक्सीको, 1972 न्यूनिक ओलंपिक) में भाग लेकर दो स्वर्ण, एक चांदी और एक कांस्य पदक प्राप्त किए थे। बीएसएफ से बतौर डिप्टी कमांडेंट सेवामुक्ति के बाद उन्होंने महाभारत में भीम की भूमिका निभाई थी। अर्जुन अवार्ड व महाराजा रंजीत सिंह अवार्ड प्राप्त करने वाले प्रवीण आज इस दुनिया से रुखस्त हो गए है। उनके देहांत की खबर सुनते ही पैतृक गांव सरहाली में शोक की लहर पैदा हो गई। उनका निधन दिल्ली में स्थित घर में हार्ट अटैक से हुआ।
विधानसभा हलका पट्टी के कस्बा सरहाली में प्रवीण सोबती के पिता कुलवंत राय (रिटायर्ड सब-इंस्पेक्टर पंजाब पुलिस) के नाम पर 20 एकड़ जमीन होती थी। प्रवीण सोबती उर्फ भीम के दो भाई और एक बहन है। खेलों से जुड़कर उन्होंने जहां दुनिया भर में अपना नाम कमाया, वहीं महाभारत में भीम की भूमिका निभाकर उनको ऐसी पहचान मिली कि प्रवीण सोबती के नाम पर कम और भीम के नाम से अधिक जाने जाते थे। प्रवीण सोबती उर्फ भीम के परिवारिक मित्र मास्टर शुबेग सिंह ने दैनिक जागरण को बताया कि करीब 42 वर्ष पहले उनका परिवार गांव छोड़कर दिल्ली जा बसा था। बाद में प्रवीण ने फोन पर तो ग्रामीणों से संपर्क रखा, परंतु महाभारत में भीम के तौर पर प्रचलित होने के बाद गांव की गेड़ी बहुत कम लगाई। हालांकि वर्ष 2015 में करवाए गए खेल टूर्नामेंट में प्रवीण ने शिरकत की थी।
अर्जुन व महाराजा रंजीत सिंह अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका
अमृतसर के खालसा कालेज में पढ़ाई करते रहे प्रवीण सोबती उर्फ भीम बाबत जानकारी देते धरमिंदर सिंह रटौल ने बताया कि भीम का नाम कालेज के होनहार छात्रों की कतार में रहे। बारहवीं तक की पढ़ाई उन्होंने खालसा कालेज अमृतसर से की। पढ़ाई के दौरान वे अच्छे एथलीटों में जाने जाते थे। उनका रिकार्ड कोई नहीं तोड़ पाया था। वर्ष 1965 में भारत की तरफ से हैमर थ्रो में सोवित संग रूस के विरुद्ध स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। धरमिंदर सिंह रटौल बताते है कि 1965 से लेकर 1980 तक डिस्कस थ्रो में प्रवीण सोबती पूरे देश में चर्चा का केंद्र रहे। छह फुट सात इंच की हाइट वाले प्रवीण सोबती को अर्जुन अवार्ड और महाराजा रंजीत सिंह अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
भाजपा के सदस्य भी रह चुके
देश में जब अटल बिहारी वाजपेई की अगुआई वाली भाजपा की सरकार थी तो रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह राज्य सभा सदस्य थे। जबकि प्रवीण सोबती भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य रह चुके है।
प्रवीण की मौत से गांव को काफी दुख पहंचा
गांव के सरपंच अमोलक सिंह, पंच राजदीप सिंह, तरसेम सिंह, बलविंदर अत्रो, दया सिंह, कैलाश देवगन, डा. कुलदीप सिंह, पूर्व सरपंच शुबेग सिंह, परमात्मा सिंह ने बताया कि प्रवीण की मौत से गांव को काफी दुख पहुंचा है। उनकी वजह से गांव का नाम देश भर में जाना जाता था।
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