Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आजादी की दास्तां: छात्रों के विद्रोह ने पैदा की आजादी की लड़ाई के लिए नई पौध, अमृतसर खालसा कालेज का प्रबंधन हाथ में लेने के लिए लड़ी लंबी लड़ाई

    By DeepikaEdited By:
    Updated: Wed, 10 Aug 2022 08:37 AM (IST)

    खालसा कालेज अमृतसर का प्रबंधन 1908 से डिप्टी कमिश्नर के हाथ में था। विद्यार्थियों ने इसका प्रबंधन सिख संस्थाओं को सौंपने के लिए आंदोलन शुरू किया। सरदार हरबंस सिंह अटारी ने प्रबंधक कमेटी से इस्तीफा देकर इसे और हवा दी।

    Hero Image
    विद्यार्थियों के विद्रोह ने आजादी की लड़ाई के लिए नई पौध तैयार की। (जागरण)

    नितिन उपमन्यु, जालंधर: महान दार्शनिक खलील जिब्रान ने कहा था, 'स्वतंत्रता के बिना जीवन आत्माविहीन शरीर के सामान है। स्वतंत्रता के लिए कोई भी क्रांति युवाओं के बिना संभव नहीं।' भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास भी इस बात की गवाही भरता है। असहयोग आंदोलन (1920) से भारत छोड़ो आंदोलन (1942) तक और इसके बाद भी विद्यार्थियों ने क्रांति की मशाल को जलाए रखने में अहम योगदान दिया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अमृतसर के खालसा कालेज, जालंधर के डीएवी कालेज और रावलपिंडी (अब पाकिस्तान में) के फोरमैन क्रिश्चियन कालेज के अलावा कई सरकारी व सरकार से सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों ने असहयोग आंदोलन के दौरान कक्षाओं का बहिष्कार कर दिया। शिक्षण संस्थानों के राष्ट्रीयकरण तक हड़ताल की गई। खालसा कालेज अमृतसर का प्रबंधन 1908 से डिप्टी कमिश्नर के हाथ में था। विद्यार्थियों ने इसका प्रबंधन सिख संस्थाओं को सौंपने के लिए आंदोलन शुरू किया। सरदार हरबंस सिंह अटारी ने प्रबंधक कमेटी से इस्तीफा देकर इसे और हवा दी।

    मास्टर सुंदर सिंह ने खालसा कालेज के प्रबंधन पर एक लेख लिखा, जिसमें कालेज पर सरकारी नियंत्रण के औचित्य पर सवाल उठाया। गवर्निग काउंसिल ने भी सरकारी सहायता के तौर पर ग्रांट लेने के विरुद्ध प्रस्ताव पास कर दिया। इसके बाद सरकार का कालेज की गतिविधियों पर नियंत्रण रखने का कोई अधिकार नहीं रह जाता था। ऐसे में डिप्टी कमिश्नर के पास कालेज की प्रबंधक कमेटी का अध्यक्ष बने रहने का आधार भी छिन गया। इस तरह 1920 में कालेज का प्रबंधन सिख संस्थाओं के हाथों में सौंप दिया गया।

    इस आंदोलन ने अंग्रेजों के अंदर यह भय पैदा कर दिया कि इसकी सफलता का संदेश देश के कोने-कोने में छात्र आंदोलनों को हवा दे सकता है। उनकी यह आशंका सही भी साबित हुई। पंजाब से लेकर बंगाल तक विद्यार्थी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। भारत के स्वतंत्रता के इतिहास में अमृतसर के खालसा कालेज का अहम योगदान है। कई प्रमुख सेनानी, सैन्य जनरल, लेखक व विद्वान इसी कालेज ने दिए हैं। विद्यार्थियों के इस विद्रोह ने आजादी की लड़ाई के लिए नई पौध तैयार की, जिसने भारत छोड़ो आंदोलन व इसके बाद चले संघर्ष को अंजाम तक पहुंचाया।

    इनमें मास्टर तारा सिंह, बलदेव सिंह, तेजा सिंह और कर्म सिंह जैसे प्रमुख नाम हैं। 1942 में अमृतसर के खालसा कालेज, हिंदू कालेज, लाहौर के डीएवी कालेज, दयाल सिंह कालेज और सिख नेशनल कालेज सहित पंजाब के सभी प्रमुख कालेज कई दिनों तक बंद रहे। स्वतंत्रता आंदोलन में विद्यार्थियों की ऐसी भागीदारी देख कर महात्मा गांधी ने कहा था, 'विद्यार्थियों का संघर्ष ऐसी साधना है, जो सुनहरे कल के लिए मजबूत नींव का काम करेगी।

    यह भी पढ़ेंः- Jalandhar Weather Update : जालंधर में आज छाए रहेंगे हल्के बादल, उमस व गर्मी बढ़ाएगी लोगों की परेशानी