75 साल बाद मिले बंटवारे में बिछड़े चाचा-भतीजा, दोनों हुए भावुक; करतारपुर कारिडोर से पाकिस्तान पहुंच साथ बिताए 7 घंटे
जालंधर के हाजीपुर निवासी सरवन सिंह अपनी बेटी रछपाल कौर सहित डेरा बाबा नानक के रास्ते पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के लिए रवाना हुए थे। गुरुद्वारा साहिब के प्रबंधकों ने दोनों का हार पहनाकर स्वागत किया। वहां दोनों ने एक साथ करीब सात घंटे बिताए।

जागरण टीम, डेरा बाबा नानक (गुरदासपुर), भोगपुर (जालंधर): देश के बंटवारे के दौरान कत्लेआम में परिवार के 22 सदस्यों को खो चुके 92 साल के सरवन सिंह 75 साल बाद सोमवार को अपने भतीजे मोहन सिंह से पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब में मिले। सरवन सिंह अपने 81 साल के भतीजे मोहन सिंह जिसे अब अफजल खलक से जाना जाता है, से मिलकर बेहद प्रसन्न हुए।
जालंधर के हाजीपुर निवासी सरवन सिंह अपनी बेटी रछपाल कौर सहित डेरा बाबा नानक के रास्ते पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के लिए रवाना हुए थे। गुरुद्वारा साहिब के प्रबंधकों ने दोनों का हार पहनाकर स्वागत किया। वहां दोनों ने एक साथ करीब सात घंटे बिताए।
सरवन सिंह ने बताया कि 1947 को जहां देश को आजादी मिली थी वहीं, भारत-पाक के दो टुकड़े हो गए थे। इस दौरान वे पाकिस्तान के गांव चक्क में रहते थे। बंटवारे के दौरान फैली नफरत में उनके परिवार के 22 सदस्यों का कत्ल हो गया था। इसके अलावा परिवार के 23 सदस्य लापता हो गए थे। इनमें उनका छह साल का भतीजा मोहन सिंह भी शामिल था।
रछपाल कौर ने बताया कि पाकिस्तान में रहते मोहन सिंह का पालन पोषण मुसलमान परिवार ने किया। इसके चलते आज उनका नाम अफजल खलक पड़ चुका है। रछपाल ने बताया कि उनके पिता व चचेरे भाई मोहन सिंह ने आपस में खूब बातें कीं। उन्होंने गुरुद्वारा साहिब में नतमस्तक होने के बाद साथ बैठकर लंगर भी खाया।
वरदान साबित हो रहा करतारपुर कारिडोर: सरवन सिंह
बुजुर्ग सरवन सिंह ने बताया कि उन्हें अपने बिछड़े हुए भतीजे से मिलकर बहुत सुकून मिला। सरवन सिंह ने कहा कि करतारपुर कारिडोर भारत पाक बंटवारे के दौरान बिछड़े परिवारों के लिए वरदान साबित हो रहा है। उन्होंने भारत व पाकिस्तान सरकार से मांग की है कि जो परिवार दोनों देशों में बंटवारे के दौरान अलग-अलग हो गए थे उन्हें गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब में अधिक दिन ठहरने की अनुमति दी जाए।
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