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    Gurpurab 2021: करतारपुर साहिब जाने से पहले सुल्तानपुर लोधी में 15 वर्ष रहे थे गुरु नानक, यहीं किया था मूल मंत्र का उच्चारण

    By Pankaj DwivediEdited By:
    Updated: Thu, 18 Nov 2021 01:59 PM (IST)

    गुरु नानक देव जी ने 14 साल की आयु में बहन बेबे नानकी के पास सुल्तानपुर लोधी पहुंचकर उसे अपनी कर्म स्थली बनाया था। उन्होंने पवित्र काली बेई में डुबकी लगाकर तीन दिन बाद गुरुद्वारा संत घाट में मूल मंत्र का उचारण कर गुरु ग्रंथ साहिब की बुनियाद डाली थी।

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    कपूरथला के 14 साल 9 महीने 13 दिन तक प्रभु भक्ति में लीन रहे। सांकेतिक चित्र।

    हरनेक सिंह जैनपुरी, सुल्तानपुर लोधी। 1469 ई. को ननकाणा साहिब (अब पाकिस्तान) में जन्म लेने वाले सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव जी ने बचपन से ही जनेऊ पहनने से इंकार कर महिलाओं को बराबरी दिलाने की आवाज उठाई थी। उन्होंने 14 साल की आयु में अपनी बहन बेबे नानकी के पास पहुंच कर सुल्तानपुर लोधी को अपनी कर्म स्थली बनाया। गुरु नानक देव जी ने ही पवित्र काली बेई में डुबकी लगाकर तीन दिन बाद गुरुद्वारा संत घाट में प्रगट कर मूल मंत्र का उचारण कर गुरु ग्रंथ साहिब की बुनियाद डाली थी। उन्होंने आज के गुरुद्वारा बेर साहिब के स्थान पर बेरी का वृक्ष लगाया था, जो आज भी मीठे फल दे रहा है। इस बेरी का प्रसाद हासिल करने को संगत झोली फैलाए रहती हैं। यहां पर गुरु जी 14 साल 9 महीने 13 दिन तक प्रभु भक्ति में लीन रहे। इसी धरती से उन्होंने विश्व कलयाण के लिए यात्राओं (उदासियों) का आगाज किया था।

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    यहीं से गुरु नानक देव जी की बरात बटाला (गुरदासपुर) के लिए रवाना हुई। वहां उनकी माता सुलखणी से शादी हुई। इसके बाद घर गुरुद्वारा गुरु का बाग में दो बेटों श्री चंद व लक्ष्मी दास ने जन्म लिया। यहीं पर गुरु जी ने नवाब दौलत खां के मोदी खाना में तेरा-13 तोल कर गरीबों की झोलियां भरी थी।

    सुल्तानपुर लोधी में गुरुद्वारा संत घाट के पास बन रही मूल मंत्र इमारत।

    22 वर्ष की आयु तक की चार यात्राएं

    लगभग 17 साल सुल्तानपुर लोधी में निवास दौरान गुरु जी ने 22 साल तक की आयु तक 4 उदासियां कर विश्व को एक पिता ऐकस के हम बारिक का संदेश दिया। इन उदासियों की शुरुआत भी सुल्तानपुर लोधी की धरती से ही की गई। अपने जीवन के अंतिम 18 साल गुरु नानक देव जी पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब में रह कर अपने हाथों से खेती कर किरत करने, बांट कर छकने व नाम जपने का पैगाम दिया। गुरु जी ने चार में से दो उदासियां करतारपुर साहिब से की और 1539 में गुरु आगंद देव जी को गुरु की गद्दी सौंप कर ज्योति जोत समा गए।

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