पंजाब में बढ़ी गाय के गोबर से निर्मित गोकाष्ठ की मांग, पूजा-पाठ के साथ अंतिम संस्कार में हो रहा प्रयोग
भारतीय संस्कृति में गाय को पूजनीय माना जाता है और इसे माता कहते हैं। गोमाता के गोबर का पहले से ही धार्मिक महत्व है। अब फरीदकोट की एक गोशाला ने इससे गोकाष्ठ बनाने की पहल की है। लोग इसे धार्मिक त्योहारों और श्मशानघाट में प्रयोग कर रहे हैं।

प्रदीप कुमार सिंह, फरीदकोट। पंजाब में पूजा-पाठ से लेकर अंतिम संस्कार तक गोकाष्ठ (गाय के गोबर से निर्मित लकड़ी) की डिमांड है। गोमाता के गोबर से बनी इस लकड़ी की पवित्रता पर किसी को संदेह नहीं है। लकड़ी से सस्ता पड़ने के कारण खाना बनाने के लिए भी बहुत सारे लोग इसका प्रयोग रहे हैं। लकड़ी का विकल्प बन रही गोकाष्ठ, आर्थिक संकट से जूझ रही गोशालाओं के लिए बड़ी मददगार होगी। गोकाष्ठ का उपयोग बढ़ने से पेड़ों की लकड़ी का कम उपयोग होगा, जिससे पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा।
एक शव के अंतिम संस्कार में 4-5 क्विंटल लकड़ी का उपयोग होता है, गोकाष्ठ में यह कार्य लगभग तीन से साढ़े तीन क्विंटल में हो जाता है। ऐसे में एक अंतिम संस्कार के एवज में लगने वाली पेड़ की लकड़ी को बचाया जा सकता है, पहले से ही पेड़ों की कमी से जूझ रहे पंजाब को इसका बड़ा लाभ मिलेगा।
फरीदकोट की गोशाला में मशीन से गोकाष्ठ बनाते हुए श्रमिक।
रामबाग श्मशानघाट कमेटी की देखरेख करने वाली सहारा सर्विस सोसायटी के प्रधान अशोक भटनागर ने बताया कि वह अंतिम संस्कार के लिए बगल में स्थित आंदियाना गेट गोशाला से 500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से गोकाष्ठ खरीद रहे हैं। उन्होंने बताया कि लोगों ने गाय के धार्मिक महत्व को देखते हुए अंतिम संस्कार के लिए स्वत: गोकाष्ठ का प्रयोग अपनाया है।
आंदियाना गोशाला कमेटी के वरिष्ठ पदाधिकारी डा. चंद्रशेखर कक्कड़ ने बताया कि गाय के गोबर का धार्मिक महत्व है। लोग शुभ कार्य, लोहड़ी पर्व, खाना पकाने व लंगर में प्रयोग करने के लिए गोकाष्ठ को ले जा रहे हैं, अंतिम संस्कार में गोकाष्ठ का प्रयोग बढ़ रहा है। जरूरत है कि लोग ज्यादा से ज्यादा इसे प्रचलन में लाएं। इससे गोशाला की आमदन तो बढ़ेगी, साथ में पर्यावरण शुद्धता में भी यह अहम साबित होगा।
गोकाष्ठ से गोशाला की आय बढ़ी
प्राचीन काल से ही गाय भारत की अर्थव्यवस्था का आधार रही है। इसीलिए गाय को माता कहा गया है। देशी गाय का दूध अमृत के समान होता है। इसमें कई रोगों के उपचार करने की क्षमता होती है। गो-मूत्र भी औषधियों का भंडार माना गया है। गाय का महत्व अधिक से अधिक समझ में आए, इसके आंदियाना गेट गोशाला गाय के गोबर से गोकाष्ठ बना रही है। दाह संस्कार में लकड़ी के स्थान पर गोकाष्ठके उपयोग से गो माता से प्राप्त गोबर की उपयोगिता और बढ़ी है। गोशाला की आमदन में बढ़ोतरी अलग से हुई है।
सेवईं की तरह बनती है गोकाष्ठ
डा. चंद्रशेखर ने बताया कि गोकाष्ठ को बनाने के लिए मशीन में दो से तीन दिन पुराना गोबर डाला जाता है और उससे गोबर की लकड़ी बाहर निकलती है। इसे धूप में सुखाने के बाद इस्तेमाल किया जा सकता है। इस लकड़ी का इस्तेमाल हवन, पूजा, जलावन और श्मशानघाटों में किया जा रहा है। मशीन की कीमत करीब 65 हजार रुपये है। इसे चालाने के लिए दो से तीन व्यक्तियों की जरूरत पड़ती है। यह मशीन सेवई बनाने वाली मशीन की तकनीक यूज कर बनाई गई है।
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