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    China Taiwan Clash: जालंधर में पंखों की सप्लाई हो रही प्रभावित, समय से नहीं पहुंच रहीं मशीनें

    By DeepikaEdited By:
    Updated: Sat, 27 Aug 2022 08:52 AM (IST)

    China Taiwan Clash चीन-ताइवान के बीच चल रही खींचतान का असर बैडमिंटन उद्योग पर पड़ने लगा है। 5 वर्षों से पंखों की सप्लाई चीन और रैकेट बनाने वाली मशीनों की सप्लाई ताइवान से हो रही है। जालंधर में मुर्गे के पंखों से भी शटल काक बनाई जा रही है।

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    China Taiwan Clash: चीन-ताइवान के बीच खींचतान का भारतीय शटल काक उद्योग पर पड़ा बुरा प्रभाव। (सांकेतिक)

    मनोज त्रिपाठी, जालंधर। China Taiwan Clash: चीन व ताइवान के बीच दो महीनों से चल रही खींचतान का असर देश के बैडमिंटन उद्योग पर भी पड़ने लगा है। चीन से आने वाले पंख की सप्लाई न के बराबर हो गई है। मशीनों की सप्लाई भी समय से नहीं हो पा रही है। इससे शटल काक के डिब्बों का रेट 200 रुपये तक बढ़ गया है।

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    आजादी के बाद जालंधर में स्थापित हुए खेल उद्योग ने बैडमिंटन व शटल काक के निर्माण में दुनिया को पीछे छोड़ दिया था। वर्ष 1950 से 2000 तक जालंधर के बैडमिंटन उद्योग का जलवा रहा। उस समय जालंधर में बैडमिंटन व शटल काक का निर्माण करने वाली 170 कंपनियां थीं। यहां रोजाना पांच हजार से ज्यादा बैडमिंटन के रैकेट बनते थे। साथ ही, संगठित रूप से काम कर रहे शटल काक उद्योग में आठ हजार से ज्यादा चिड़िया (शटल काक) का निर्माण होता था। इस समय करीब 70 प्रतिशत उत्पादन कम हो गया है। रोजाना करीब 1500 रैकेट और 2400 शटल काक का निर्माण हो रहा है।

    पहले बनते थे लकड़ी के रैकेट

    पहले लकड़ी के रैकेट बनते थे। वर्ष 1970 के बाद स्टील के रैकेट बनने शुरू हुए। उसके बाद वर्ष 1980 में दो पीस में बनने वाले रैकेटों के स्थान पर सिंगल पीस रैकेट बनने लगे। इन्हें बनाने के लिए ताइवान से मशीनें मंगवाई जाती थीं। इन्हीं मशीनों के दम पर जालंधर ने अलग पहचान बनाई थी। वर्ष 1990 में पहले चीन और फिर ताइवान ने कार्बन ग्रेफाइट के रैकेट बनाने वाली तकनीक विकसित कर अपनी धाक जमा ली।

    बर्ड फ्लू फैलने के बाद पंख मंगवाने पर लगा प्रतिबंध

    वर्ष 2000 में बर्ड फ्लू फैलने के बाद सरकार ने शटल काक के निर्माण के लिए पंख मंगवाने पर प्रतिबंध लगा दिया, जो अब भी जारी है। इस प्रतिबंध से जालंधर की 150 से ज्यादा कंपनियां बंद हो गईं या दूसरे कारोबार पर शिफ्ट हो गईं। उद्योगपतियों ने चोरी-छिपे बांग्लादेश के रास्ते चीन से पंख मंगवाना शुरू किया। इससे जालंधर का शटल काक उद्योग एक बार फिर जिंदा हो गया।

    पांच वर्षों से पंखों की सप्लाई चीन से और रैकेट बनाने वाली मशीनों की सप्लाई ताइवान से हो रही है। मुर्गे के पंखों की कीमत 650 रुपये प्रति किलो पहुंची। जालंधर में मुर्गे के पंखों से भी शटल काक बनाई जा रही है। इनके पंख से बनने वाली शटल काक बच्चे व अप्रशिक्षित खिलाड़ी प्रयोग करते हैं। अधिक मांग होने के चलते मुर्गे के पंखों की कीमत 650 रुपये किलो तक पहुंच गई है। इसका डिब्बा 100 से लेकर 150 रुपये तक में उपलब्ध होता है।

    बत्तख व गूज के पंख आते हैं चीन से

    चीन से बत्तख व गूज पक्षी के पंखों की सप्लाई होती है। चीन में बतख व गूज को उसी प्रकार का खाना दिया जाता है, जिससे उनके पंख ज्यादा विकसित हों। गूज के पंखों की मांग ज्यादा है। इससे बनने वाली शटल काक ज्यादा चलती है। चीन से पंखों की कटिंग करके सप्लाई की जाती है। इससे पंखों को छांटना नहीं पड़ता है। जालंधर में इन्हें केवल धागे से बांधकर व पेस्ट लगाने के अलावा रबर की काक में फिट करके शटल तैयार कर दी जाती है।

    प्रतिबंध खत्म करे सरकार : सुमित

    फिलिप्स इंटरनेशनल स्पो‌र्ट्स के एमडी सुमित शर्मा कहते हैं कि सरकार को बर्ड फ्लू के बाद लगाए गए प्रतिबंध को समाप्त करना चाहिए। उसके बाद डक व गूज फेदर (पंख) का उद्योग हमारे यहां भी विकसित हो सकता है।

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