नए कृषि कानूनों पर प्रो. ग्रेवाल की टिप्पणी, संभव है फसल विविधीकरण, युवाओं के लिए लाभकारी
पंजाब तकनीकी यूनिवर्सिटी के पूर्व निदेशक प्रो. अमरजीत सिंह ग्रेवाल का कहना है कि नए कृषि कानून किसान हित में हैं। डॉ. मनमोहन सिंह व मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने भी ऐसी नीतियों की वकालत की थी। यह कानून युवाओं के लिए लाभकारी होंगे।
जेएनएन, जालंधर। कृषि सुधार कानूनों पर जमकर राजनीति हो रही है। भाजपा जहां इसे किसान हित में बता रही है, वहीं कांग्रेस, अकाली दल, आप व अन्य विपक्षी दल इसे किसानों पर मार बता रहे हैं। इन कानूनों पर पंजाब तकनीकी यूनिवर्सिटी के पूर्व निदेशक प्रो. अमरजीत सिंह ग्रेवाल क्या कहते हैं आइए उन्हीं के श्रीमुख से जानते हैं।
बकौल प्रो. ग्रेवाल कृषि सुधार कानूनों का विरोध कर रहे किसानों की सबसे बड़ी आशंका न्यूनतम समर्थन मूल्य के खत्म होने को लेकर है, जबकि मैं समझता हूं कि इसकी संभावना बहुत कम है क्योंकि भारत सरकार ने अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली को चलाना है। यह सिस्टम छोटा सिस्टम नहीं है। इसके लिए लाखों टन अनाज की जरूरत है। वह कहां से आएगा? इसलिए उसको न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदना सरकार की मजबूरी है और रहेगी।
पंजाब के आर्थिक माहिर ही धान की फसल पर सवाल उठाते हुए फसल विविधिकरण की वकालत करते रहे हैैं। अब जब नए कानूनों से यह संभव है तो अब इसका विरोध करना सही नहीं है। अगर अन्य फसलों पर भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद सुनिश्चित कर दी जाए तो किसानों की आशंका दूर हो जाएगी। किसानों का विरोध इस वजह से है क्योंकि उन्हें जागरूक ही नहीं किया गया। इसके पीछे कारण राजनीतिक हैं या अक्षमता, मैं यह नहीं कह सकता। मुझे लगता है कि अगर नए कानून फसली विविधता लाने में सफल हो जाते हैं तो इससे अच्छी बात नहीं हो सकती।
जब डॉ. मनमोहन सिंह कांग्रेस के कार्यकाल में सभी सेक्टर्स में उदारवादी नीतियां लाए थे तब इनका उन्होंने स्वागत किया था और अब खेती में यही उदारवादी नीतियां आ रही हैं तो कांग्रेस विरोध क्यों कर रही है? खुद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह आहलुवालिया की अगुवाई में एक एक्सपर्ट ग्रुप का गठन किया था। उन्होंने भी अपनी रिपोर्ट में खेती में नई उदारवादी नीतियों और नए खेती कानूनों की वकालत की है।
एक ओर पंजाब में निजी निवेश को बढ़ावा देने वाली कंपनियों के न आने पर हम बात करते हैं और अब उनके लिए मैदान तैयार किया गया है तो हम विरोध कर रहे हैं। जैसा कि कहा जा रहा है कि बड़ी कंपनियां किसानों की जमीन पर कब्जा कर लेंगी, मुझे ऐसा नहीं लगता। असल में नई नीतियों को समझने, इन्हें लागू करने के लिए शिक्षा के सिस्टम को सही करना होगा।
किसानों का संघर्ष उन्हें जिंदा होने का अहसास तो दिला सकता है लेकिन उन्हें किसी ओर नहीं ले जा सकता। अब तक की नीतियों के कारण किसानों की आत्महत्याएं सबसे ज्यादा हुई हैं और अब तो इनमें हमारे युवा भी शामिल हो गए हैं, इसलिए अपने युवाओं को बचाने की आज सबसे बड़ी जरूरत है। ये तीन बिल उसमें सहायक हो सकते हैं। युवा ऐसी फसलों की ओर जा सकते हैं जो प्रोसेस की जा सकें और उन्हें कहीं भी बेचा जा सके।