'वाहेगुरु जी दा खालसा, वाहेगुरु जी दी फतेह', किसान भाइयां तो विनती किती जांदी ए कि पराली न जलाएं, जागरूक हो रहा पंजाब
गुरदासपुर जिला प्रशासन पराली जलाने के मामलों को शून्य पर लाने के लिए प्रयासरत है। गुरुद्वारा साहिबान से किसानों को पराली न जलाने की अपील की जा रही है। कृषि विभाग जागरूकता शिविरों के माध्यम से पराली जलाने के नुकसान बता रहा है। किसानों को अनुदान पर मशीनें उपलब्ध करवाई जा रही हैं ताकि वे फसल अवशेषों का उचित निपटान कर सकें।

जागरण संवाददाता, गुरदासपुर। "वाहेगुरु जी दा खालसा, वाहेगुरु जी दी फतेह", किसान भाइयां तो विनती किती जांदी ए कि पराली न जलाएं। गुरुद्वारा साहिबान से लाउड स्पीकरों पर सुबह-शाम यह आवाज सुनाई दे रही है। यानी पंजाब अब पर्यावरण को बचाने के लिए जागरूक हो रहा है। प्रशासन के साथ-साथ ग्रामीण भी पराली प्रबंधन के लिए आगे आ रहे हैं।
प्रशासन इस बार फसली अवशेषों को आग लगाने के मामलों को जीरो पर पहुंचाने का प्रयास कर रहा है। गुरुद्वारा साहिबान से लाउड स्पीकरों पर किसानों को पराली को आग न लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। कृषि विभाग की तरफ से लगातार गांवों में जागरुकता कैंप लगाए जा रहे हैं।
प्रशासन ने पराली की आग को रोकने के लिए विशेष रूप से 'पराली सुरक्षा बल' का गठन किया है। इसके अलावा गांवों को अलग-अलग जोन में बांटकर नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं और हर 20 गांव के बाद एक क्लस्टर बनाया गया है। टीमों में सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के साथ-साथ सरपंच, पंच और नंबरदार भी शामिल किए गए हैं।
जागरूकता शिविर के दौरान किसानों को धान की पराली न जलाने के लिए प्रेरित करते हुए बताया जा रहा है कि धान की पराली जलाने से पर्यावरण बुरी तरह प्रदूषित होता है और इससे बीमारियां बढ़ती हैं, जिसका बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। बच्चों के स्वस्थ भविष्य और बुजुर्गों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए पराली नहीं जलानी चाहिए।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस संबंध में सख्त आदेश जारी कर रखे हैं कि फसली अवशेषों को जलाना बंद किया जाए। फसली अवशेषों को जलाना किसी भी तरह से फायदेमंद नहीं है, क्योंकि इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है और भूमि के उपजाऊ तत्व भी नष्ट होते हैं।
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