पंजाबी मां बोली का लाडला शायर शिव कुमार बटालवी... ऐसा रहा पटवारी से क्लर्क और फिर बिरहा का सुल्तान बनने का सफर
शिव कुमार बटालवी ने अपनी किसी भी किताब पर खुद को बटालवी नहीं लिखा। दो तीन हाथ लिखित कविताओं से ही शिव बटालवी के रूप में हस्ताक्षर मिलते हैं। मगर परिस्थिति तो देखें कि शिव कुमार के नाम से बटालवी पक्के तौर पर जुड़ गया।

बटाला/गुरदासपुर, जागरण संवाददाता। शनिवार को पंजाबी मां बोली के लाडले शायर और बिरहा के सुल्तान शिव कुमार बटालवी की 50वीं बरसी है। साल 1973 में आज के दिन ही यह लाडला शायर अपने कहे हुए बोलों को सत्य करते हुए दुनिया को अलविदा कह गया था। शिव कुमार बटालवी के चले जाने से कभी न पूरा होने वाला घाटा हुआ था और उस घाटे की भरपाई आज तक भी नहीं हो सकी।
शिव का जन्म भले ही बटाला में नहीं हुआ था, मगर उनका बटाला से संबंध कुछ ऐसा बना जैसे यह मेल जन्मो-जमांतरा का हो। बड़ा पिंड लोटिया का यह लड़का किसी दिन शिव बटालवी बनकर पूरी दुनिया में अपना और मां बोली पंजाबी का कद इतना ऊंचा करेगा, यह उस समय किसी ने भी नहीं सोचा होगा।
शिव कुमार बटालवी पंजाबी शायरी का वह उच्च मुकाम है, जिसने बहुत ही कम सालों के जीवन और साहित्य में वह कुछ कर दिखाया जो किसी को भी नसीब नहीं होता है। अपने जीवन के दौरान शिव ने पंजाबी शायरी में वह खूबसूरती रचना दी, जिन्हें उससे सैंकड़ो वर्ष पहले हुए किस्से कवियों या सूफी शायरों की शायरी में ढूंढना पड़ता था।
सांझे पंजाब में हुआ था शिव का जन्म
शिव कुमार बटालवी का जन्म 23 जुलाई 1936 को भारत-पाक विभाजन से पहले के सांझे पंजाब के जिला गुरदासपुर की तहसील शक्करगढ़ के गांव बड़ा पिंड लोटिया (अब पाकिस्तान) में पिता पंडित कृष्ण गोपाल के घर मां शांति देवी की कोख से हुआ था। शिव कुमार रावी किनारे जन्मा, बटाले बड़ा हुआ, कादियां और नाभा में कुछ साल पढ़ा।
पहले पटवारी तो बाद में क्लर्क बने
अरर्लीभन्न (गुरदासपुर) में पटवार, प्रेम नगर बटाला और चंडीगढ़ की स्टेट बैंक आफ इंडिया ब्रांच की क्लर्की उसका जीवन व्यवहार कभी न बन सका। वह ऐसा अघोषित शहनशाह था, जिसकी सलतनत उसके जीवनकाल में अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से पार ही थी, मगर मौत के बाद और भी फैल गई। धरती की कोई भी बेड़ियां उसके पैरों को अपनी बेड़ी में नहीं बांध सकी। वह रिश्तों, नातों और संबंधों से वाकिफ थे।
नाम के पीछे बटालवी क्यों लगा
कहते हैं कि शिव कुमार बटालवी ने अपनी किसी भी किताब पर खुद को बटालवी नहीं लिखा। दो तीन हाथ लिखित कविताओं से ही शिव बटालवी के रूप में हस्ताक्षर मिलते हैं। मगर परिस्थिति तो देखें कि शिव कुमार के नाम से बटालवी पक्के तौर पर जुड़ गया। शिव कुमार बटालवी रावी किनारे बसे शक्करगढ़ तहसील के गांव बड़ा पिंड लोहटिया में जन्मा। आजादी के कुछ वर्ष पहले वह सियालकोटिया रहा और 1947 के बाद परिवार के साथ बटाले आ जाने से शेष जीवन बटालवी बन गया। गांधी चौंक बटाले से डेरा बाबा नानक की ओर जाते दाईं तरफ प्रेम नगर मोहल्ले में उसका निवास आज भी हर किसी को उसके वहां पर होने का भ्रम डालता है।
किसी गुट, धर्म, राजनीति से ऊपर थे शिव कुमार बटालवी
अपने पिता गोपाल कृष्ण के परंपरा अनुसार, शिव कुमार बटालवी पटवारी भर्ती हो गया और उसकी पहली नियुक्ति कलानौर के गांव अर्लीभन्न में हुई। शिव भले पटवारी बन गया था, मगर वह उसके मन में कुछ और ही था। शिव कुमार पंजाबी जुबान का महबूब शायर था। वे किसी गुट, धर्म, राजनीति या गुट से बहुत ऊपर था। कहते हैं कि शिव ने उतनी रातें अपने घर में नहीं बिताई होंगी, जितनी उसने अपने मित्र प्यारों के अंग-संग रहकर गुजारी हैं।
शिव की मीठी आवाज
कहते हैं कि शिव जब स्टेज पर अपनी मीठी आवाज से अपने बिरहा के गीतों को गाता तो उसकी यह आवाज किसी बंबीहे से कम नहीं थी। वह अपनी शायरी व मीठी आवाज से श्रोताओं को मंत्रमुगध कर देता था। शिव कुमार बटालवी को लोग बिरहा का शायर कहते हैं, क्योंकि उसने बिरहा का जिक्र बार-बार किया है। शिव कुमार को 27 साल की आयु में ही भारतीय साहित्य अकेडमी पुरुस्कार से नवाजा गया। उसकी जितनी आयु के किसी भी लिखारी को अब तक यह सम्मान हासिल नहीं हुआ है।
दोनों तरफ के पंजाब से मिला प्यार
बटालवी पंजाब के विभाजन के बाद भी दोनों पंजाबों का सांझा ही रहा। वह पंजाबी मां बोली का वह लाडला बेटा था, जिसने मां बोली के आलोप होते जा रहे शब्दों को अपनी शायरी में संभाला। उसके वचन में सिर्फ पंजाब नहीं, बल्कि समूह कायनात के दर्शन होते हैं। शिव कुमार बटालवी को जो प्यार पूरी दुनिया में मिला है, वह उसको अपने बटाला शहर में नहीं मिल सका। शिव बटालवी ने यह बात अपने जीवनकाल के दौरान भी महसूस कर ली थी। हालांकि, यह बात सत्य है कि बटाला सहित दुनिया भर में रहते हर पंजाबी को अपने शायर शिव कुमार बटालवी पर हमेशा गर्व रहेगा।
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