कभी दूध बेचते और घोड़ा गाड़ी चलाते थे लंगाह, आज 100 करोड़ के मालिक
दुष्कर्म के आरोप से घिरे पूर्व मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह राजनीति में आने से पहले दूध बेचते थे और घोड़ा गाड़ी चलाते थे। आज वह 100 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं।
गुरदासपुर, [सुनील थानेवालिया]। शिरोमणि अकाली दल के कद्दावर नेता रहे सुच्चा सिंह लंगाह पर केस दर्ज होने के बाद पंजाब की राजनीति में हड़कंप मच गया है। लंगाह 1980 में राजनीति में कदम रखने से पहले वह दूध बेचने व घोड़ा गाड़ी चलाने का काम करते थे। आज वह 100 करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक हैं। शिअद में शामिल होने के साथ ही उन पर मारपीट के अलावा धार्मिक भावनाएं आहत करने के केस दर्ज होने लगे।
लंगाह पर दुष्कर्म का केस दर्ज होने के बाद गुरदासपुर उपचुनाव में भी सभी मुद्दों को छोड़कर सारा फोकस उन पर आ गया है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इस मामले को लेकर अकाली दल-भाजपा गठबंधन पर निशाना साध रही है। दूसरी ओर शिअद ने भी उनको पार्टी सदस्यता से निकालकर उनसे सारे नाते तोड़ लिए हैं।
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राजनीति में आने के बाद कई मौकों पर सिख पंथ, धार्मिक मर्यादा व अच्छे आचरण संबंधी उन्होंने भाषण भी दिए। इसी कारण जल्द ही एसजीपीसी मेंबर बन गए और बाद में अकाली दल की कोर कमेटी के सदस्य भी। 1997 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद लोक निर्माण मंत्री और 2007 में खेतीबाड़ी मंत्री बने तो शिअद की पहली कतार वाले नेताओं में उनकी जगह बन गई।
दूध बेचने वाले से लेकर दो बार के कैबिनेट मंत्री व धर्म प्रचारक बने लंगाह की दागदार जिंदगी भी किसी से छुपी नहीं रही। राजनीतिक सफर शुरू करने से पहले पुलिस रिकॉर्ड में दस नंबरी थे। पहली बार विधायक बने तब भी अपराधियों की सूची में शामिल थे। उसके बावजूद उनको कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
तीन एकड़ जमीन के मालिक थे
अपनी सियासी पारी के कारण वह कुछ ही सालों में सौ करोड़ से अधिक के मालिक बन गए। विरासत में उनको सिर्फ तीन एकड़ जमीन मिली थी। पर मंत्री बनने के बाद करोड़ों के मालिक बनते गए। विरोधी पार्टियों ने कई बार उन पर गैर कानूनी कब्जे करने व तस्करों से मिलीभगत के आरोप भी लगाए। 2002 में कैप्टन सरकार आने पर विजिलेंस ने केस भी दर्ज किया गया, लेकिन कभी सख्त कार्रवाई नहीं हो पाई।
भ्रष्टाचार मामले में तीन साल की सजा, बाद में बरी
उन पर लगे केस भी धीरे-धीरे खत्म हो गए। करीब 13 साल तक चले विजिलेंस के केस में 2015 को मोहाली की अदालत ने लंगाह को तीन साल की सजा सुनाई और एक करोड़ 10 लाख का जुर्माना भी किया। इसके अतिरिक्त 80 करोड़ की संपति को कुर्क भी कर लिया। अकाली लीडरशिप ने सजा वाले दिन ही शाम को जुर्माने की रकम जमा करवा कर लंगाह को जेल जाने से बचाया। 2015 में सुप्रीम कोर्ट से बरी होने के बाद वह इस साल विधानसभा चुनाव लड़ पाए, लेकिन हार गए।
उपचुनाव में आया नया मोड़
उपचुनाव भाजपा व अकाली दल के लिए इज्जत का सवाल बना हुआ है। कुछ दिन पहले बड़ी चुनावी रैली में सुखबीर बादल के नेतृत्व में पंजाब भर की अकाली लीडरशिप पर खुद सुच्चा सिंह लंगाह कांग्रेस को ललकारते नजर आ रहे थे। रैली के तीन दिन बाद ही अकाली दल के जिला प्रधान लंगाह के खिलाफ दर्ज हुए दुराचार के मामले ने उनके सारे समीकरण बिगाड़ कर रख दिए।
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अकाली लीडरशिप के लिए निकलना मुश्किल हो गया है। जो बाहर निकल रहे है, उनके लिए लोगों के सवालें के जवाब देना मुश्किल हो रहा है, जबकि भाजपा पहले ही अकाली दल के वोट बैंक के सहारे जीत के सपने देख रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस खेमे में एक नया उत्साह नजर आ रहा है।

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