Kartik Purnima 2023: सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व, धार्मिक कार्य करना बेहद शुभ; जानिए पूजा की विधि
Kartik Purnima 2023 कार्तिक पूर्णिमा का सनातन धर्म में बड़ा महत्व है। लोग इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके कई धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान दीपदान हवन यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप नष्ट होता है और अगले जन्म में स्वर्ग की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन अन्न धन और वस्त्र आदि का दान करने से लाभ मिलता है।

संवाद सहयोगी, गुरदासपुर। सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान, दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। लोग इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके कई धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीपदान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप नष्ट होता है और अगले जन्म में स्वर्ग की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन अन्न, धन और वस्त्र आदि का दान करने से कई गुना अधिक लाभ मिलता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन माता तुलसी जी की पूजा का खास महत्व
मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को माता तुलसी जी का विवाह भगवान के शालिग्राम से हुआ था और पूर्णिमा तिथि को तुलसी जी का वैकुण्ठ में आगमन हुआ था। यही कारण है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन माता तुलसी जी की पूजा का खास महत्व है। कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही तुलसी जी का पृथ्वी पर भी आगमन हुआ था।
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इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर, दिन सोमवार को पड़ रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर को दोपहर 3 बजकर 53 मिनट से अगले दिन 27 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 45 मिनट तक है। अतः उदया तिथि होने के कारण कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर को मनाई जाएगी। कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त सुबह 4 बजकर 53 मिनट से 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के दौरान धार्मिक कार्य और अनुष्ठान करना बेहद शुभ माना जाता है। कार्तिक माह के दौरान स्नान करना 100 अश्वमेध यज्ञ करने के बराबर माना गया है। इस दौरान किए गए धार्मिक कार्य भक्तों के जीवन में खुशियां और सुख-समृद्धि लाते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन धर्म, कर्म और मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है।
पूर्णिमा की पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत हो जाएं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करें, अगर ऐसा संभव न हो तो, घर में ही गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में ही सूर्य देव को अर्घ्य भी दें।
इस दिन तुलसी के पौधे की जड़ों में गाय का दूध अर्पित करें, दीप प्रज्वलित करें, धूप दिखाएं, भोग लगाएं और आरती उतारें। कार्तिक पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण भगवान (विष्णु जी) की पूजा का विशेष महत्व है। इसके लिए ईशान-कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में एक चौकी स्थापित कर लें और चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं।
केले के पत्तों का लगाएं मंडप
इस चौकी के ऊपर केले के पत्तों का मंडप लगाएं। अब चौकी पर अक्षत रखकर भगवान विष्णु, भगवान गणेश, माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर गंगाजल छिड़कें। अब कलश की स्थापना के लिए मूर्ति के समक्ष चावल रखें या अष्टदल बनाएं और उस पर कलश रखकर उस पर मौली बांध दें। अब कलश में गंगा जल, शुद्ध जल, सुपारी, सिक्का, हल्दी, कुमकुम आदि डाल दें और इसके मुख पर आम के पत्ते रख दें।
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आम के पत्तों और नारियल पर भी मौली बांधकर रखें। सबसे पहले मंत्रों का जाप करते हुए आचमन करें। अब घी के दीपक को प्रज्वलित करें और हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें और फिर वह पुष्प भगवान जी के चरणों में अर्पित कर दें। अंत में अक्षत और पुष्प लेकर भगवान जी से पूजा में हुई किसी भी गलती के लिए क्षमा मांगे और अक्षत और पुष्प को भगवान के चरणों में छोड़ दें। इस तरह से आपकी कार्तिक पूर्णिमा की पूजा संपन्न हो जाएगी।
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