गुरदासपुर में 400 शिक्षकों की लगी पराली रोकने की ड्यूटी, अध्यापक संघ ने नाराज होकर जताई शिक्षा पर असर की चिंता
गुरदासपुर में पंजाब सरकार के शिक्षा मंत्री के वादों के बावजूद जिला प्रशासन ने 400 शिक्षकों को पराली जलाने से रोकने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। शिक्षकों को 26 सितंबर से 30 नवंबर तक ड्यूटी पर रहना होगा जिससे शिक्षा प्रभावित होगी। अध्यापक संघ इस फैसले से नाराज हैं उनका कहना है कि इससे छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ेगा।

जागरण संवाददाता, गुरदासपुर। पंजाब के मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री द्वारा शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त रखने के बार-बार दिए गए आश्वासनों के बावजूद गुरदासपुर प्रशासन ने जिले के लगभग 400 शिक्षकों को पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त कर दिया है।
इस कदम से अध्यापकों में गहरा रोष पाया जा रहा है, जो खुद को सरकार के वादों और प्रशासन की कार्रवाई के बीच फंसा हुआ पा रहे हैं। शिक्षकों की यह ड्यूटी 26 सितंबर से शुरू हो चुकी है, जो 30 नवंबर तक चलेगी। इस दो महीने से अधिक की अवधि में शिक्षकों को अपने-अपने क्षेत्रों में पराली जलाने की घटनाओं पर नजर रखनी होगी और उनकी रिपोर्ट करनी होगी।
साझा अध्यापक मोर्चा के सह-संयोजक अमनबीर सिंह गोराया का कहना है कि अध्यापकों को पढ़ाने के लिए वेतन मिलता है। अगर सरकार उन्हें उनकी मुख्य ड्यूटी से हटा देती है, तो हम बच्चों का सिलेबस कैसे पूरा कर पाएंगे। नतीजतन अगर परीक्षा परिणाम संतोषजनक नहीं होते हैं, तो इसका खामियाजा भी उन्हें ही भुगतना होगा।
इस स्थिति में केवल उन्हें ही नहीं, बल्कि बच्चों को भी नुकसान उठाना होगा। उन्होंने बताया कि प्रशासन द्वारा शिक्षकों से मौखिक रूप से गलती करने वाले किसानों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए भी कहा गया है। शिक्षक प्रभजीत सिंह का कहना है कि अगर वे आग की घटनाओं की रिपोर्ट करते हैं, तो किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी।
अगर वह रिपोर्ट नहीं करते तो सरकार उन्हें नोटिस भेज देगी। इन अतिरिक्त ड्यूटियों में शिक्षकों का महत्वपूर्ण शिक्षण समय बर्बाद होता है। अध्यापक यूनियनों का कहना है कि दो महीने से अधिक समय तक स्कूल से अनुपस्थित रहने का सीधा असर छात्रों की पढ़ाई और फिर परीक्षा परिणामों पर पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि अगर टीचर दो महीने से अधिक समय तक स्कूल से अनुपस्थित रहते हैं, तो परिणाम निश्चित रूप से खराब होंगे। फिर सरकार इसकी जिम्मेदार भी टीचरों पर डालेगी। उनका कहना है कि अध्यापकों की ड्यूटी किसानों को पराली जलाने के नुकसान के बारे में जागरूक करने और वैकल्पिक तरीके अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने पर लगाई जा सकती है, वह भी स्कूल के समय के बाद।
इससे न तो शिक्षण कार्य प्रभावित होगा और न ही पर्यावरण संरक्षण का काम। डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के प्रवक्ता हरजिंदर सिंह वाडाला बांगर का कहना है कि मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री अपने ही वादों को भूल गए हैं कि अध्यापकों से गैर शैक्षणिक काम नहीं लिए जाएंगे।
वहीं डीसी दलविंदरजीत सिंह का कहना है कि केवल शिक्षकों को ही नहीं, बल्कि अन्य सरकारी विभागों के कर्मचारियों को भी इस तरह की ड्यूटी पर लगाया गया है। शिक्षकों को इलाके की अच्छी जानकारी होती है और इसलिए वे इस समस्या को रोकने में बेहतर काम कर सकते हैं। इस समस्या से मिलजुल कर ही लड़ा जा सकता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।