15 घंटे नाव में, 18 पहाड़ों की चढ़ाई और खाली पेट 45 KM पैदल चलना, पनामा के जंगल से आसान नहीं था अमेरिका का सफर
अमेरिका से निर्वासित होकर लौटे भारतीयों ने अपनी यात्रा की भयावह कहानी सुनाई है। इनमें से एक हरविंदर सिंह ने बताया कि कैसे उन्हें कतर ब्राजील पेरू कोलंबिया पनामा निकारागुआ और मैक्सिको होते हुए अमेरिका ले जाया गया। इस सफर में उन्हें कई बड़ी मुश्किलों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा। समुद्र में नाव पलटने और पनामा के जंगल में लोगों को मरता हुए भी देखना पड़ा।

पीटीआई, होशियारपुर। बीते बुधवार दोपहर करीब 1 बजकर 55 मिनट पर अमेरिका का सैन्य विमान सी-17 ग्लोबमास्टर अमृतसर के श्री गुरु रामदास जी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से सटे भारतीय वायुसेना के एयरबेस पर उतरा। इस विमान में 104 अप्रवासी भारतीय थे।
इस बीच कड़ी सुरक्षा और वेरिफिकेशन के बाद बुधवार रात को अमृतसर हवाई अड्डे से सभी निर्वासितों को पुलिस वाहनों द्वारा उनके मूल स्थानों पर छोड़ा गया। इनमें होशियारपुर के हरविंदर भी शामिल थे। जिन्होंने अमेरिका पहुंचने के सफर को समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ साझा किया।
होशियारपुर के टाहली गांव के रहने वाले हरविंदर सिंह ने अमेरिका तक पहुंचने के सफर के बारे में बताते हुए कहा कि पिछले साल वह अगस्त में अमेरिका चले गए थे। उन्हें कतर, ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, पनामा, निकारागुआ और फिर मैक्सिको ले जाया गया था। इस सफर में उन्हें कई बड़ी मुश्किलों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
फोटो कैप्शन: अमेरिका के इसी सैन्य विमान नें आए थे भारतीय
समुद्र में नाव पलटने की कहानी...
उन्होंने बताया कि एक नाव में कई लोगों को ले जाया जा रहा था। इस बीच समुद्र में नाव पलटने वाली थी। लेकिन हम किसी तरह बच गए। उन्होंने कहा कि उन्होंने एक व्यक्ति को पनामा के जंगल में मरते हुए और एक को समुद्र में डूबते हुए भी देखा।
सिंह ने कहा कि उनके ट्रैवल एजेंट ने उनसे वादा किया था कि उन्हें पहले यूरोप और फिर मैक्सिको के रास्ते से ले जाया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हरविंदर ने बताया कि अमेरिका की अपनी यात्रा के लिए उन्होंने 42 लाख रुपये खर्च किए थे।
खाने में क्या मिलता था?
सिंह ने बताया कि खाने के लिए कभी-कभी हमें चावल मिलते थे। कभी-कभी, हमें खाने के लिए कुछ नहीं मिलता था। हमें कभी-कभार बिस्कुट भी मिलते थे। पंजाब से निर्वासित एक अन्य व्यक्ति ने अमेरिका ले जाने के लिए इस्तेमाल किए गए 'डंकी मार्ग' के बारे में भी बताया था।
रास्ते में हमारे 35 हजार रुपये के कपड़े चोरी हो गए थे। हमें पहले इटली और फिर लैटिन अमेरिका ले जाया गया। हमने 15 घंटे लंबी नाव की सवारी की और करीब 40-45 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। हमने 17-18 ऊंची पहाड़ियां पार कीं। अगर कोई फिसल जाता, तो उसके बचने की कोई संभावना नहीं होती। अगर कोई घायल हो जाता था, तो उसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। हमने अपने इस सफर में लाशें देखीं।
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