बटाला शहर में प्रवेश के थे 12 गेट, अब चार बचे
बारी दोआब (माझा) का केंद्र शहर बटाला शुरू से ही बहुत खास रहा है।

संजय तिवारी, बटाला
बारी दोआब (माझा) का केंद्र शहर बटाला शुरू से ही बहुत खास रहा है। शुरुआती समय से बटाला शहर एक मजबूत चारदीवार से घिरा हुआ था, जिसने पूरे शहर को एक किला बना दिया था। बटाला शहर में प्रवेश के लिए 12 दरवाजे थे। इन गेटों के नाम खजुरी गेट( इस गेट को महाराजा शेर सिंह दरवाजा भी कहा जाता था), पुरियां मोरी गेट, पहाड़ी गेट, कपूरी गेट, मियां गेट(इस दरवाजे को नसीरुल हक दरवाजा भी कहा जाता था), अचली गेट, हाथी गेट, (इस गेट को फिल्ली गेट भी कहा जाता था), काजी मोरी गेट, ठठियारी गेट, भंडारी गेट, ओहरी गेट और तेली गेट (अब इसे शेरा वाला दरवाजा और नेहरू गेट भी कहा जाता है)। वर्तमान में केवल 12 दरवाजों में से तेली गेट, खजूरी गेट, अचली गेट और भंडारी गेट ही बचे हैं। आठ दरवाजे खत्म हो चुके हैं।
बाबा बंदा सिंह बहादुर ने सबसे पहले 1711 में बटाला की किले बंद शहर की दीवार के साथ माथा लगाया और हाथी गेट, अचली गेट के माध्यम से प्रवेश करके बटाला शहर के ऊपर खालसा का झंडा फहराया था। इसके बाद 1715 में एक बार फिर बटाला शहर की दीवारों ने बंदा सिंह के रास्ते को रोकने की कोशिश की, लेकिन इस बार भी बंदा सिंह ही विजेता रहा। 1881 में ब्रिटिश शासन के दौरान शहर की दीवारों की आखिरी बार मरम्मत की गई थी। बाबा बंदा सिंह बहादुर के हमलों के कारण शहर के दो मुख्य द्वार फिल्ली दरवाजा(हाथी गेट) और अचली गेट टूट गए थे। बाबा बंदा सिंह की शहादत के कई साल बाद मुगल हुकमरान मुहम्मद शाह के शासनकाल के दौरान बटाला शहर के चारों ओर एक नई दीवार बनाई गई और क्षतिग्रस्त दरवाजों की मरम्मत करवाई। बाद में जस्सा सिंह रामगढि़या और रानी सदा कौर ने भी शहर की दीवार की मरम्मत कराकर और मजबूती की। 1881 में ब्रिटिश शासन के दौरान शहर की दीवारो की आखिरी बार मरम्मत की गई थी। चारदीवारी के भीतर थे सभी बाजार
1947 से पहले बटाला शहर में कई कोट भी थे। इनमें से कोट महेशा, कोट मियां साहिब, कोट फजलुद्दीन, कोट जैमल सिंह, कोट निहाल चंद, कोट योधा राय और कोट आंवलां आदि प्रमुख थे। शहर के सभी बाजार और मंडी भी चारदीवारी के भीतर थे। बटाला शहर के प्रमुख बाजारों में चक्करी बाजार, बाजार-ए- कालियां (बांसां वाला बाजार), काजी हट्टी, मधानवीं बाजार, बाजार-ए-सराफां, टिब्बा बाजार, बाजार-ए-ओहरी चौक शामिल थे। दीवार के भीतरी शहर को दो मुख्य बाजारों, चक्करी और कालियां में विभाजित किया गया था। चक्करी बाजार उत्तर-पश्चिमी तेली गेट ( शेरा वाला गेट) से शुरू होकर शहर के सबसे ऊंचे हिस्से टिब्बे से होते हुए शहर के पूर्व-दक्षिण की ओर हाथी गेट (फिल्ली दरवाजा ) तक जाता था। यह बाजार ने शहर को दो भागों में बांटता था। शहर की उत्तरी दिशा खजूरी गेट से शुरू होकर बाजार-ए-कालियां (बांसां वाला बाजार) पूर्व-दक्षिण की ओर खुलने वाले अचली गेट तक जाता था। शहर के पुराने बाजार
खजूरी गेट से अचली गेट तक जाते बाजार-ए-कालियां (बांसां वाला बाजार) की तरफ से बाहरी दीवार तक धीर मोहल्ला, पुरियां मोहल्ला, सेखड़ियां मोहल्ला, पाढियां मोहल्ला, कोट महेशा, कुचा दीन मोहम्मद, कोट मियां साहिब और मियां मोहल्ला पड़ते थे। चक्करी बाजार और बाजार-ए-कालियां के बीच वाले इलाके में पुराना किला (जिसको किला मंडी कहा जाता है), मधानवीं मोहल्ला, काजी हट्टी, जामी मस्जिद, शाह इस्माइली का खानगाह, मोहल्ला बेड़ियां, मोहल्ला सोनिया, खंडा खोला, मोहल्ला-ए-मुफतियां और समाध और कोट जैमल सिंह पड़ते थे। शहर का एक तिहाई हिस्सा सबसे बड़ा था, जो शहर के आधे हिस्से को कवर करता था। यह शेरा वाले दरवाजे से हाथी गेट तक गुजरते चक्करी बाजार के पश्चिम वाले हिस्से का इलाका था। इस हिस्से में मोहल्ला-ए-हमीदियां, मोहल्ला-ए-जुलकियां, ओहरी मोहल्ला, भंडारी मोहल्ला, मोहल्ला मिसरां, मोहल्ला-ए-शेख-अल-माशीख, मोहल्ला-ए-बुखारियां, मोहल्ला-ए-खतीबा, मोहल्ला-ए-मुलतानियां, टाकियां मीरां शाह, मोहल्ला-ए-कदां, कोट निहाल चंद, कोट योधा राय और कोट आंवलां शामिल थे।
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