फिरोजपुर के आलेवाला गांव में बाढ़ के बाद लौटे ग्रामीणों के घरों में भरा कीचड़, 1100 एकड़ फसलें मिट्टी में मिलीं; भविष्य के लिए परेशान किसान
फिरोजपुर के आलेवाला गांव में बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है। 29 दिन बाद घर लौटे ग्रामीणों को मिट्टी और कीचड़ से भरे घर मिले। 1100 एकड़ से अधिक फसलें बर्बाद हो गईं जिससे किसानों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। ग्रामीण सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं ताकि वे अपने उजड़े हुए घरों को फिर से बना सकें और अपनी जिंदगी को पटरी पर ला सकें।

कपिल सेठी, सोनू अटवाल, फिरोजपुर। जिले की तहसील जीरा के गांव आलेवाला में आई भीषण बाढ़ ने ग्रामीणों की जिंदगी को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया है। करीब 1350 की आबादी वाला यह गांव चारों ओर से पानी से घिर गया था। अब जबकि पानी का स्तर कम हो चुका है व ग्रामीण अपने उजड़े घरों में लौटने लगे हैं।
लेकिन लौटकर उन्हें अपने ही घरों में तबाही और खंडहरों का दर्दनाक मंजर देखने को मिल रहा है। बाढ़ के कारण लगभग 1,100 एकड़ खेती योग्य जमीन पूरी तरह जलमग्न होने के चलते फसलें बर्बाद हो गई। जिन खेतों से कभी अनाज की खुशबू आती थी, वहां अब सिर्फ कीचड़ और बर्बादी है। बाढ़ के पानी ने न सिर्फ फसलें निगल लीं, बल्कि घरों की नींव, छतें और लोगों की उम्मीदें भी बहा दीं।
गांव का लगभग हर घर किसी न किसी रूप में नुकसान झेल रहा है। गांव आलेवाला की यह त्रासदी केवल एक प्राकृतिक आपदा की कहानी नहीं, बल्कि इंसानी हिम्मत और संघर्ष का प्रतीक भी है। यहां के लोग अपनी टूटी छतों और डूबे खेतों के बीच नए सवेरे की तलाश कर रहे हैं, उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार और समाज की मदद से उनका उजड़ा संसार फिर से बस सकेगा।
घर लौटे तो टूटी छतें, पानी से भरी नींव मिली
गांव निवासी जरनैल सिंह ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहते हैं पानी उतरने के पूरे 29 दिन बाद हम घर लौटे व घर का दरवाजा खोला तो सामने मिट्टी और गारे का ढेर था। अलमारी खोलने पर बड़ा सांप निकल आया। तीन दिन से लगातार सफाई कर रहे हैं, लेकिन घर अभी भी रहने लायक नहीं है। नींव तक पानी भर गया है और छत के कई हिस्से टूट गए हैं। जो थोड़ा-बहुत सामान था, सब खराब हो गया। हमारे पास अपनी जमीन नहीं थी, यह घर भी मामा ने दिया था, अब वह भी बर्बाद हो चुका है।
जमीन ही सहारा थी, अब वह भी डूब गई
गांव के रहने वाले गुलजार सिंह ने कहा कि हमारे घर की छत पूरी तरह गिर चुकी है। जमीन ही हमारा सहारा थी, वह भी नष्ट हो गई। फर्नीचर और वाहन का सामान टूटकर खराब हो गया। अब हमारे पास कुछ नहीं बचा। समझ नहीं आता कि फिर से शुरुआत कैसे करें। गुलज़ार सिंह की यह कहानी पूरे गांव की हालत बयान करती है। कई परिवारों की फसलें पूरी तरह चौपट हो चुकी हैं, जिनसे उनकी सालभर की रोजी-रोटी चलती थी। खेतों में जमा गारा और पानी ने अगली बुवाई की उम्मीदें भी तोड़ दी हैं।
कुदरत ने भविष्य भी डुबो दिया
गांव के बुजुर्ग मलूक सिंह आंखों में आंसू लिए बताते हैं कि कुदरत की इस मार ने गरीब परिवारों का सब कुछ छीन लिया। बाढ़ ने न केवल हमारी फसलें और घर उजाड़े हैं, बल्कि हमारा भविष्य भी डुबो दिया है। हमें तुरंत आर्थिक मदद और पुनर्वास की जरूरत है, नहीं तो हमारा जीवन फिर से पटरी पर नहीं आ पाएगा।
उम्मीदों के साथ संघर्ष जारी
आलेवाला गांव के लोग अभी भी कीचड़ से जूझते हुए अपने घरों को रहने लायक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। महिलाएं टूटी छतों के नीचे गारे को साफ करने में लगी हैं, जबकि पुरुष घरों की दीवारों को सहारा देने के लिए नई लकड़ियां और ईंटें जुटा रहे हैं। कई परिवार पास के रिश्तेदारों के घरों में शरण लिए हुए हैं, जबकि कुछ टेंट और अस्थायी झोपड़ियों में रह रहे हैं। सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर कुछ राहत सामग्री गांव तक पहुंची है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह मदद पर्याप्त नहीं है।
गांव के किसानों को अगली फसल के लिए बीज, खाद और आर्थिक सहायता की सख्त जरूरत है। घरों की मरम्मत और मवेशियों के लिए चारे की भी बड़ी समस्या बनी हुई है। गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि इस बाढ़ ने सिर्फ फसलें और घर ही नहीं, बल्कि उनकी उम्मीदें भी बहा दी हैं। फिर भी ग्रामीण हार मानने को तैयार नहीं। वे एकजुट होकर अपने गांव को फिर से बसाने में जुट गए हैं।
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