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    बचपन से ही श्रीकृष्ण भक्ति में रम गया मीराबाई का मन

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 02 Nov 2019 11:44 PM (IST)

    गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में गोशाला मैनेजिग कमेटी की ओर से रासलीला करवाई जा रही है।

    बचपन से ही श्रीकृष्ण भक्ति में रम गया मीराबाई का मन

    जागरण संवाददाता, अबोहर : गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में गोशाला मैनेजिग कमेटी की ओर से रासलीला करवाई जा रही है। शुक्रवार की रात श्रीधाम वृंदावन के कलाकारों ने भक्त मीरा बाई की भक्ति का शानदार मंचन किया। एसके बांसल, रमेश भोला, वाटर एवं सीवरेज विभाग के एक्सईएन जुगल किशोर गर्ग, नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष शिवराज गोयल, चांद सेतिया तथा रोशन लाल आरे वाले मुख्य अतिथि थे।

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    कलाकारों ने रासलीला का मंचन करते दिखाया कि राजस्थान के जोधपुर के राठौड़ रतन सिंह की इकलौती पुत्री मीराबाई का मन बचपन से ही कृष्ण-भक्ति में रम गया था। मीराबाई के बालमन से ही कृष्ण की छवि बसी थी, इसलिए यौवन से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना। उनका कृष्ण प्रेम बचपन की एक घटना की वजह से अपने चरम पर पहुंचा था। बाल्यकाल में एक दिन उनके पड़ोस में किसी धनवान व्यक्ति के यहां बारात आई थी। सभी स्त्रियां छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। मीराबाई भी बारात देखने के लिए छत पर आ गईं। बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है। इस पर मीराबाई की माता ने उपहास में ही भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ इशारा करते हुए कह दिया कि यही तुम्हारे दूल्हा हैं। यह बात मीराबाई के बालमन में एक गांठ की तरह समा गई और वे कृष्ण को ही अपना पति समझने लगीं। विवाह योग्य होने पर मीराबाई के घर वाले उनका विवाह करना चाहते थे, लेकिन मीराबाई श्रीकृष्ण को पति मानने के कारण किसी और से विवाह नहीं करना चाहती थी। मीराबाई की इच्छा के विरुद्ध जाकर उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ कर दिया गया। विवाह के कुछ साल बाद ही मीराबाई के पति भोजराज की मृत्यु हो गई। पति की मौत के बाद मीरा को भी भोजराज के साथ सती करने का प्रयास किया गया, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। इसके बाद मीरा वृंदावन और फिर द्वारिका चली गई। वहां जाकर मीरा ने कृष्ण भक्ति की और जोगन बनकर साधु-संतों के साथ रहने लगीं। मीरा मंदिरों में जाकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने घंटो तक नाचती रहती थीं। मीराबाई की कृष्ण भक्ति उनके पति के परिवार को अच्छा नहीं लगा। उनके परिजनों ने मीरा को कई बार विष देकर मारने की भी कोशिश की। लेकिन श्रीकृष्ण की कृपा से मीराबाई को कुछ नहीं हुआ। सभी मुख्य अतिथियों को स्मृति चिन्ह व दोशाला पहना कर सम्मानित किया गया।