Year Ender 2025: बाढ़ के कहर से फसलें बर्बाद, CM बनने के लिए 500 करोड़ का सूटकेस; इस साल पंजाब में और क्या हुआ?
यह लेख पंजाबी मुहावरों के माध्यम से पंजाब के 2025 के प्रमुख राजनीतिक चेहरों और घटनाओं की समीक्षा करता है। इसमें मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व, सुखब ...और पढ़ें

पंजाब में इस साल कई बड़ी घटनाएं हुई (फोटो: जागरण)
डिजिटल डेस्क, चंडीगढ़। पंजाबी जुबान की ताकत उसका अंदाज है, जहां लंबी व्याख्या की जरूरत नहीं पड़ती। एक सटीक मुहावरा या लोकगीत की दो लाइनें ही पूरी कहानी कह देती हैं। शायद यही वजह है कि पंजाबियों ने रोजमर्रा की बातचीत से लेकर टीवी सीरियल, फिल्मों और कामेडी शो तक अलग पहचान बनाई है।
हंसी के बीच तंज व सच्चाई और सच्चाई में छिपा संदेश, यह पंजाबी भाषा की असली खूबी है। बीता साल भी कुछ ऐसा ही रहा। राजनीति में बयान गूंजते रहे, सत्ता में फैसलों ने रिकार्ड बनाए, जांच व विवाद सुर्खियों में छाए रहे और खेल के मैदान पर बल्ले-बल्ले होती रही।
हर घटना अपने साथ एक किस्सा लेकर आई। इसी रंग और रिवायत को आगे बढ़ाते हुए इस विशेष पैकेज में हम बीते साल के चर्चित चेहरों को पंजाबी मुहावरों और लोकपंक्तियों के जरिए पेश कर रहे हैं। यहां हर शख्सियत का पूरा साल एक लाइन में सिमटता नजर आएगा
भगवंत मान
ज्यों-ज्यों भिज्जे कंबली, त्यों-त्यों भारी होवे सियासत में भगवंत मान का सफर रिकॉर्डों से भरा रहा है। इस साल भी चाहे गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहीदी पर्व मनाना हो या बाढ़ में परिस्थितियों को मैनेज करना, उन्होंने एक कुशल नेतृत्व का परिचय दिया।

इसके अलावा चुनाव में जहां-जहां मान ने प्रचार किया, जीत हासिल करके ही लौटे। हालांकि कई बार वे विवादित बयानों में फंसे और विरोधियों के निशाने पर भी आ गए। विरोधियों ने उन्हें दबाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह जिस तरह से चुनौतियों से निकले हैं, उसे देख सभी उनकी सराहना जरूर कर रहे हैं। उनके लिए तो यही लाइन फिट बैठती है- ज्यों-ज्यों भिज्जे कंबली, त्यों-त्यों भारी होवे। अर्थात- जैसे जैसे अनुभव बढ़ता है, आदमी की काबिलियत भी बढ़ती जाती है।
सुखबीर सिंह बादल
पाणी रिड़क के मक्खन कड्डना पैणा... स. प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद शिरोमणि अकाली दल कठिन दौर में फंस गया। बेअदबी जैसे पंथक मुद्दों पर जनता की नाराजगी, भाजपा से पुराना रिश्ता टूटना और विधानसभा चुनाव में करारी हार ने पार्टी को झकझोर कर रख दिया। नेताओं के लगातार पार्टी छोड़ने से हालात बिगड़ते गए। ऐसे समय में सुखबीर को सिंह साहिबान की ओर से ‘तनखाइया’ करार दिया गया।

इसके बावजूद सुखबीर ने धैर्य नहीं खोया। राज्य में आई बाढ़ को लेकर उन्होंने जिस तरह से लोगों की मदद की, उसकी विरोधियों ने भी सराहना की। इसके बाद पहले तरनतारन में, फिर ब्लाक समिति और जिला परिषद चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन भी अच्छा देखने को मिला। हालांकि अभी सुखबीर को और मेहनत करनी होगी। उनके लिए तो यही कहेंगे- पाणी रिड़क के मक्खन कड्डना पैणा...
राजा वड़िंग
पंजाब में कांग्रेस की राजनीति में प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग की भूमिका हलचल पैदा करने वाली रही है। वे जब खुलकर बोलते हैं, सियासी गलियारों में तूफान आ जाता है। उनकी छवि ऐसे नेता की बन चुकी है, जिनके शब्द अकसर खुद उन्हीं पर उलटे पड़ जाते हैं।
बयान, तीखे तंज और आक्रामक अंदाज उन्हें लगातार सुर्खियों में बनाए रखते हैं। हाल ही में दिवंगत नेता बूटा सिंह को लेकर दिए गए बयान के कारण भी उन्हें सार्वजनिक तौर पर असहज स्थिति का सामना करना पड़ा।

कुल मिलाकर इस साल राजा वड़िंग की राजनीति भी सीधी नहीं, बल्कि उतार-चढ़ाव, मसलों (विवाद) और चर्चा से भरी रही है, जहां हर बयान नई कहानी गढ़ देता है। ऐसे में उनके लिए तो यही कहावत है- हत्थ पाउंदे ही मसला खड़ा।
डॉ नवजोत कौर
सद्दी न बुलाई, मैं लाड़े दी ताई राजनीति में लंबे समय से खामोशी ओढ़े नवजोत सिंह सिद्धू उस दौर में पहुंच चुके थे, जहां न भाजपा में उनकी कद्र रही और न ही कांग्रेस में उन्हें अपेक्षित भूमिका मिली। हालांकि साल के अंत में अचानक डॉ. नवजोत कौर के ‘500 करोड़ की अटैची’ वाले बयान ने राजनीतिक माहौल में जैसे धमाका कर दिया।
जिस वक्त लगा था कि सिद्धू परिवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं ठहाकों की धूल में दब चुकी हैं, उसी समय यह बयान चर्चा का केंद्र बन गया। अब विशेषज्ञ विश्लेषण में जुटे हैं और आम लोग कयास लगा रहे हैं कि यह सिर्फ बयान था या मियां-बीवी की किसी नई सियासी जुगलबंदी की आहट। इस दौरान पुराने कांग्रेसी नेताओं ने यह कहकर पल्ला छुड़ाया कि इनकी तो यही बात होती है- सद्दी न बुलाई, मैं लाड़े दी ताई ।
संजीव अरोड़ा-राजिंदर गुप्ता
‘नाले पुण्य नाले फलियां’ पंजाबी की यह कहावत आम आदमी पार्टी की पंजाब में अपनाई गई रणनीति पर बिल्कुल सटीक बैठती है। उद्योगों और उद्यमियों की हर समस्या को समझने और सुलझाने की जिम्मेदारी पार्टी ने सीधे ही उन्हीं की कम्युनिटी के लोगों को सौंप दी है। राज्य के उद्योग मंत्री संजीव अरोड़ा आज इसी भूमिका में नजर आते हैं।
नीतियां बन रही हैं, फैसले लिए जा रहे हैं और फोकस उद्योग जगत की जरूरतों पर रखा जा रहा है, वह भी ऐसे लोगों के जरिए, जो खुद इस क्षेत्र से आते हैं। इससे एक ओर उद्योग क्षेत्र को राहत और भरोसा मिल रहा है, तो दूसरी ओर पार्टी को ‘व्यावहारिक’ और ‘समाधान-उन्मुख’ राजनीति का श्रेय। यही वह स्थिति है जिसे कहा जाता है- ‘नाले पुण्य नाले फलियां’, यानी समस्याओं का समाधान कर राजनीतिक पुण्य भी और उससे उपजने वाला लाभ भी।
बिक्रम सिंह मजीठिया
पंजाब की राजनीति में बिक्रम सिंह मजीठिया का नाम लंबे समय से चर्चा और विवाद का केंद्र बना हुआ है। वे इस समय जेल में बंद हैं। उन पर लगे गंभीर आरोपों के चलते मुश्किलें लगातार बढ़ी हैं और अब तक उन्हें जमानत नहीं मिल पाई है।
चंडीगढ़ की अदालतों से राहत की उम्मीद लगाए बैठे मजीठिया के मामले ने अकाली राजनीति को भी असहज किया है। उनकी पत्नी विधायक गुनीव कौर मजीठिया लगातार कानूनी और राजनीतिक स्तर पर प्रयास कर रही हैं, लेकिन फिलहाल हालात जस के तस हैं।

उनकी गैर हाजिरी के चलते मजीठा में उनकी राजनीतिक जमीन पर आम आदमी पार्टी ने कब्जा कर लिया है। ऐसे में मोहम्मद सदीक और रणजीत कौर का मशहूर गीत- चौकीदार गया दस्स के नी, चंडीगढ़ों ना जमानत होई मजीठिया की मौजूदा स्थिति पर बिल्कुल सटीक बैठता है।
हरमनप्रीत कौर
हरमनप्रीत कौर चक दे फट्टे...कभी पूअर कजिन्स आफ मिलियन डालर बेबीज कही जाने वाली भारतीय महिला क्रिकेट टीम अब 'मिलियन डालर बाल्स' बन चुकी है।वूमेन आईपीएल से मिली ऊर्जा और आत्मविश्वास ने टीम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
कप्तान हरमनप्रीत कौर की अगुआई में भारतीय कुड़ियों ने इस बार ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसी दिग्गज टीमों को मात देते हुए दुनिया को चौंका दिया। महिला क्रिकेट विश्व कप 2025 में मिली यह ऐतिहासिक जीत कई मायनों में 1983 में कपिल देव की टीम की विश्व विजय की याद दिलाती है।

माना जा रहा है कि यह कामयाबी भारतीय महिला क्रिकेट के भविष्य की नई इबारत लिखेगी। ऐसे में हरमनप्रीत कौर के लिए यह लाइन बिल्कुल सटीक बैठती है- चक दे फट्टे... नप ती गिल्ली !
डीआइजी हरचरन सिंह भुल्लर
भावें सौ मन साबण लग्गे डीआइजी हरचरन सिंह भुल्लर को भ्रष्टाचार के मामले में निलंबित किया गया। भुल्लर का नाम सुर्खियों में आया तो यह राजफाश हुआ कि उन्होंने कथित तौर पर करोड़ों रुपये एकत्रित किए थे। यह वही स्थिति है, जहां समझ ही नहीं आता कि कब और कैसे जनता से निचोड़ा गया पैसा सत्ता और सिस्टम के पास पहुंच जाता है।

आरोपों का बोझ बढ़ता गया और उसी भुल्लर की मुश्किलें भी गहराती चली गईं। हालांकि इस दौरान भुल्लर ने कई बार खुद को निर्दोष बताया, लेकिन महकमे में चर्चा तो यही है कि काले कां न हुंदे वग्गे, भावें सौ मन साबण लग्गे। अर्थात एक बार जब नाम भ्रष्टाचार से जुड़ गया तो दाग मिटाने मुश्किल हैं।
रमन अरोड़ा और पठानमाजरा
घपले के मामले में घिरे रमन अरोड़ा सियासी गलियारों में तंज और चर्चाओं के केंद्र में रहे। यही हाल विधायक पठानमाजरा का रहा। कभी सत्ता के गलियारों में प्रभावशाली माने जाने वाले दोनों नेता आज आरोपों और जांच एजेंसियों के घेरे में हैं। आम लोग सवाल कर रहे हैं कि ईमानदारी की बात करने वाले खुद घपले के आरोपों में कैसे उलझ गए।

हालांकि फंसने के बाद दोनों ही नेताओं ने अपनी सरकार पर सवाल खड़े किए, लेकिन लोगों का कहना है कि अगर ऐसा था तो पहले ही पार्टी छोड़ देते। यह तो वहीं बात हो गई- अप्प कुचज्जी, वेहड़े नूं दोष।
ग्रेनेड हमले
प्रदेश में इस वर्ष कई थानों और नेताओं के घरों पर ग्रेनेड हमले हुए। यही वो पल था जब लोगों ने महसूस किया कि सुरक्षा में लापरवाही कितनी खतरनाक हो सकती है। साल के अंत तक यह सिलसिला स्कूल-कालेज तक पहुंच गया।

इससे पुलिस की काफी किरकिरी हुई और इंटरनेट पर मीम्स की बाढ़ सी आ गई। पुलिस भी हरकत में आई और फिर एक-एक करके अपराधियों को पकड़ने का सिलसिला शुरू हुआ। कई जगह एनकाउंटर भी हुए और कई अपराधी पकड़े भी गए। ऐसे में अपराधियों की यह हालत देखकर तो यही कहावत सिद्ध होती है कि जदों गिदड़ दी मौत आउंदी है तां ओह शहर वल्ल भज्जदा है।
अकाली दल पुनर्सुजीत
2025 में शिरोमणि अकाली दल में बड़ी उथल-पुथल हुई। पंथ की अगुआई के लिए श्री अकाल तख्त के पूर्व जथेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह आगे आए। नई पार्टी का गठन हुआ। नाम दिया गया शिरोमणि अकाली दल पुनर्सुजीत का। ज्ञानी जी की कार पर दबा-दब करने सेता सवार हो गए, जोकि सुखबीर बादल को पसंद नहीं करते थे।
पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा, एसजीपीसी की पूर्व प्रधान बीबी जगीर कौर, पूर्व मंत्री सुरजीत सिंह रखड़ा, पूर्व विधायक गुरपरताप सिंहवडाला। इनमें सबसे प्रमुख चेहरा था मनप्रीत अयाली का।

नारा तो था पंथ को नई राह दिखाने का। लेकिन नम्बर की ठंड शुरू होने के साथ ही पुनर्सुजीत गाड़ी भी ठंडी पड़ने लगी। धुंध पड़ते ही पुनर्सुजीत की राह और भी धुंधली हो गई। अब यही है कि अगे रख जाने !
अनिल जोशी
अनिल जोशी पहले भाजपा में थे तो पार्टी नेताओं के गुण गाते नहीं थकते थे। बाद में पार्टी में बनता सम्मान न देने की बात कहकर शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए तो बादल परिवार की पंजाब को देन के बारे में कसीदे पढ़ते रहे।

अब जब वे कांग्रेस में आ गए हैं तो कांग्रेस की वाहवाही कर रहे हैं। कांग्रेस में पहले से ही उनके प्रतिद्वंद्वी बैठे हैं। अगर 2027 में उन्हें सीट न मिली तो क्या वह किसी और पार्टी में भी जा सकते हैं। सियासी गलियारों में तो यही चर्चा है कि जोशी जी की वही बात है- जित्थे देखां तवा-परात, उत्थे गावां सारी रात।
भाजपा
भाजपाघर दा जोगी जोगड़ा, बाहरला जोगी सिद्धपंजाब में भाजपा की राजनीति इन दिनों इसी कहावत के इर्द-गिर्द नजर आती है। पार्टी राज्य में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश में है, लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या भाजपा को केंद्र पर भरोसा है?

पुराने नेताओं की मेहनत के बावजूद नेतृत्व की जिम्मेदारी बार-बार बाहर से आए चेहरों को सौंपी जा रही है। इसके अलावा केंद्र सरकार के फैसले भी पार्टी के लिए एक कदम आगे, दो कदम पीछे... वाले साबित हो रहे हैं। ऐसे में कई बार तो कार्यकर्ता भी कह देते हैं कि यहां तो घर दा जोगी जोगड़ा, बाहरला जोगी सिद्ध है।
सिखण दी कोई
बीते साल प्रदेश में कई ऐसे घटनाक्रम हुए, जो हमें कुछ न कुछ सीख दे गए। चाहे बाढ़ के समय हमारे ग्रामीणों के धैर्य की बात करें, चाहे आपरेशन सिंदूर के समय हमारे जवानों के जज्बे की, सबकुछ हमें कुछ न कुछ सिखा गया। ऐसे में हम कह सकते हैं कि सिखण दी न कोई उम्र न कैलेंडर...।
मुंह मोड़ते दरियावां दे
अगस्त महीने में कई जिले बाढ़ की चपेट में आ गए। हजारों एकड़ में खड़ी फसलें बह गईं, कई गांवों में घरों को भारी नुकसान पहुंचा और सैकड़ों परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा। हालांकि इस दौरान पंजाबियों ने धैर्य का परिचय दिया और प्रभावित इलाकों में सेवा में जुट गए।

जवानों के साथ यहां के लोगों ने साबित किया कि कैसे पंजाबी किसी मुसीबत में पीछे नहीं हटते और उसका डटकर सामना करते हैं। दानवीरों की इस धरती पर लोगों ने सहयोग के रूप में इतना राशन-पानी दिया कि प्रभावित लोगों को किसी चीज की कमी नहीं रह गई। इसे यूं भी कहा गया कि कैसे पंजाबियों ने अपने जोश से दरियाओं के मुंह तक मोड़ दिए।
सीख - आपदा के बाद राहत से ज्यादा अहम है आपदा से पहले तैयारी। समय रहते बनाई गई योजना न केवल फसलों और संपत्ति को बचा सकती है, बल्कि जान-माल के नुकसान को भी टाल सकती है।
अक्ल तां ठोकरां खा के आउंदी ए
फरवरी में अमेरिका से तीन विमानों में 333 भारतीय डिपोर्ट कर वापस भेजे गए। इन लोगों में सबसे अधिक 126 लोग पंजाब के थे। ये डंकी रूट से अमेरिका में घुसने की योजना बनाकर गए थे। किसी ने एजेंटों को 50 लाख रुपये दिए, किसी ने जमीन बेच दी और किसी ने लाखों का कर्ज लिया।
डिपोर्ट होकर वापस घर पहुंचे तो सब खत्म हो गया था। जिंदगी भर की परिवार की पूंजी बर्बाद कर दी, जान का जोखिम भी उठाया लेकिन हाथ कुछ नहीं आया। अमेरिका के इस कदम के बाद कई दूसरे देश भी अवैध प्रवासियों पर सख्त हो गए।
इधर डिपोर्ट होकर लौटे कई युवाओं ने अपना बिजनेस शुरू किया और आज कुछ हद तक संभल भी चुके हैं। इससे पता चलता है कि अकल तां बादाम खा के नहीं ठोकरां खा के आउंदी ए।
सीख - इस घटना ने युवाओं को सबक सिखाया कि सफलता के लिए सही राह चुनें। पढ़ाई करें, मेहनत कर वीजा लेकर विदेश जाएं।
तुरेया... तो आपड़ेया।
इस साल किसान आंदोलन फिर सुर्खियों में रहा। देश भर के कई हिस्सों में राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर धरने लगे। हालांकि पंजाब सरकार ने पहले के मुकाबले कड़ा और स्पष्ट रुख अपनाया। नतीजतन आंदोलन लंबा खिंचने के बजाय तय समय में समाप्त हुआ और प्रदेश में जगह-जगह धरनों की जो बाढ़ सी आ गई थी, उस पर भी रोक लगी।
पहले सालों से किसी ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। अगर उठाया गया होता तो यह धरने बार-बार न लगते। इस पर यही पंक्ति फबती है- तुरेया... तो आपड़ेया।
सीख - सरकार और आंदोलनकारी संगठनों के बीच संवाद जरूरी है, लेकिन कानून व्यवस्था और जनजीवन ठप करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। समय पर सही निर्णय व सख्त अमल से न सिर्फ हालात नियंत्रण में रहते हैं, बल्कि आंदोलन भी अराजकता की ओर जाने से बचते हैं।
मिट्टी पंजाब दी... बहादुरी हर जवान दी।
मई महीने में 1971 के युद्ध के बाद पहली बार पंजाब ने युद्ध जैसे हालातों का सीधा सामना किया। आपरेशन सिंदूर के चलते सीमा से सटे क्षेत्रों में तनाव जरूर रहा, लेकिन इन हालातों में जो सबसे बड़ी तस्वीर उभरी, वह थी जनता, सेना और सुरक्षा बलों की एकजुटता।
लोग सीमा सुरक्षा बल और भारतीय सेना के साथ मजबूती से खड़े नजर आए। अफवाहों और डर के माहौल में भी लोगों ने संयम रखा। बच्चे देश की सुरक्षा में जुटे जवानों तक चाय-पानी पहुंचाते दिखे।
54 साल बाद लोगों ने फिर से ब्लैकआउट देखा और जंग का सायरन सुना। पंजाबियों के जज्बे और बहादुरी को देखकर हर कोई सलाम कर रहा था। यहां तो यही कहना था कि मिट्टी पंजाब दी... बहादुरी हर जवान दी।
सीख - यह बताता है कि जनता का सहयोग सबसे बड़ी ताकत है। तनाव के बीच भी संयम और भरोसे ने यह संदेश दिया कि देश की सुरक्षा केवल हथियारों से नहीं, बल्कि हौसले से भी मजबूत होती है।
पै गया कुर्सी दा फेर।
इस साल पंजाब विजिलेंस ब्यूरो में ऐसा राजनीतिक और प्रशासनिक ड्रामा हुआ कि पूरा राज्य उसकी खबरों से चकित रह गया। साल की शुरुआत में 17 फरवरी 2025 को जी नागेश्वर राव को चीफ बनाया। इससे पहले यह पद वरिंदर कुमार के पास था, जिन्हें मुख्य निदेशक के पद से हटाकर प्रदेश के डीजीपी कार्यालय में रिपोर्ट करने का आदेश दिया गया।
26 मार्च को लगभग 37 दिनों के बाद ही एसपीएस परमार को जिम्मेदारी दी गई। 25 अप्रैल को एसपीएस परमार व विजिलेंस ब्यूरो के एआइजी स्वर्णदीप सिंह तथा एसएसपी हरप्रीत सिंह को निलंबित कर दिया, ये कार्रवाई ड्राइविंग लाइसेंस घोटाले से जुड़े आरोपों के कारण की गई। इसके बाद प्रवीण कुमार सिन्हा को लगाया गया। ऐसे में तो यही चर्चा में रहा कि विजिलेंस च पै गया कुर्सी दा फेर।

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