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    40 दिन दिन में होने वाला कार्य चार साल बाद भी लंबित, चंडीगढ़ इस्टेट ऑफिस की कार्यप्रणाली पर कमीशन सख्त

    Updated: Sat, 27 Sep 2025 01:32 PM (IST)

    चंडीगढ़ में राइट टू सर्विस कमीशन ने संपत्ति हस्तांतरण के लंबित मामलों पर सख्ती दिखाई है। एक मामले में सहायक इस्टेट ऑफिसर को अनावश्यक देरी के लिए चेतावनी दी गई है। मामला सेक्टर-9डी स्थित एक मकान की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी के हस्तांतरण से संबंधित है जिसमें आवेदकों ने 2021 में आवेदन किया था। कमीशन ने जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।

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    मकान नंबर की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी की ट्रांसफर के मामले में राइट टू सर्विस कमीशन ने दिखाई सख्ती।

    जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। लंबे समय से लंबित प्राॅपर्टी ट्रांसफर मामले में राइट टू सर्विस कमीशन ने सख्ती दिखाई है। नियमों के तहत यह सेवा अधिकतम 40 कार्य दिवसों में पूरी हो जानी चाहिए थी, लेकिन चार साल बाद भी मामला लंबित रहा। कमीशन ने पाया कि तत्कालीन सहायक इस्टेट ऑफिसर (एईओ) हरजीत सिंह संधू ने फाइल पर कार्यवाही करने में अनावश्यक देरी की और अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के कामकाज पर भी निगरानी रखने में विफल रहे। इसके चलते सेवा समय पर प्रदान नहीं हो सकी।

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    कमीशन के चीफ कमिश्नर डाॅ. महावीर सिंह ने हरजीत सिंह संधू को लिखित चेतावनी दी है। इस्टेट ऑफिस को निर्देश दिया है कि जिम्मेदार अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई की जाए और भविष्य में इस प्रकार की लापरवाही दोबारा न हो। इस आदेश की प्रति पंजाब सरकार के मुख्य सचिव, चंडीगढ़ के इस्टेट ऑफिसर तथा संबंधित पक्षकारों को भेज दी गई है।

    मकान की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी की ट्रांसफर का मामला

    मामला सेक्टर-9डी स्थित मकान नंबर 305 (आरपी 2365) की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी की ट्रांसफर का है। दीपिका दुग्गल और उनकी बेटी गुनीता ग्रोवर ने 27 जनवरी 2021 को आवेदन दायर किया था। आवेदन के अनुसार, दीपिका दुग्गल ने अपनी बेटी के नाम 50 प्रतिशत हिस्सेदारी फैमिली ट्रांसफर डीड से ट्रांसफर की थी। कमीशन ने पाया कि एस्टेट ऑफिस के अधिकारियों ने मामले में बार-बार दस्तावेज़ और स्पष्टीकरण मांगे, जबकि सभी आवश्यक दस्तावेज़ समय पर उपलब्ध कराए गए थे।

    सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि मकान की मूल फाइल दिसंबर 2015 में सीबीआई ने जब्त कर ली थी और बाद में वह फाइल विशेष सीबीआई जज की अदालत में साक्ष्य के तौर पर जमा कर दी गई। कमीशन ने सवाल उठाया कि आवेदन 2021 में दायर होने के बावजूद, सीबीआई से रिकार्ड वापस मांगने में 10 महीने क्यों लगा दिए गए और यह जानकारी समय पर आवेदक को क्यों नहीं दी गई।