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    अमेरिकी टैरिफ: क्या सुरक्षित हैं भारतीय डेरी और पोल्ट्री? विशेषज्ञों ने समझाया पूरा गणित

    Updated: Sat, 02 Aug 2025 11:10 PM (IST)

    विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका द्वारा भारतीय सामान पर 25% टैरिफ लगाने से पोल्ट्री और डेयरी क्षेत्र को कोई खतरा नहीं है क्योंकि भारत इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भर है। डेयरी सेक्टर कृषि को सपोर्ट करता है जबकि पोल्ट्री सेक्टर में मक्की की खपत अधिक है। हालांकि भारत को पोल्ट्री के लिए विटामिन आयात करने पड़ते हैं।

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    अमेरिकी टैरिफ से डेरी और पोल्ट्री को खतरा नहीं। फाइल फोटो

    इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। अमेरिका की ओर से भारतीय सामान पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने पर पोल्ट्री और डेरी क्षेत्र को जिस खतरे की बात उठाई जा रही है, ऐसा नहीं है। ऐसा विशेषज्ञों का मानना है। उनका कहना है कि इन दोनों सेक्टर में भारत आत्मनिर्भर है लेकिन अमेरिका दबाव बनाकर मक्का और सोयाबीन में जीएम फसलों के लिए भारत को अपने दरवाजे खोलने के लिए मजबूर करना चाहता है।

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    सुरुचि कंसलटेंट्स के चीफ थिकिंग अफसर कुलदीप शर्मा का कहना है कि जब भी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स की बात आती है तो डेरी का नाम अवश्य आता है कि इस सेक्टर को बड़ा खतरा है। मेरा मानना है कि भारत का यह सेक्टर जितना आत्मनिर्भर है, उतना कोई सेक्टर नहीं है।

    इसका बड़ा कारण यह है कि ये सेक्टर कृषि को सबसे ज्यादा स्पोर्ट करता है और हर किसान के घर में दुधारू पशु हैं जो उसके लिए व्यवसाय नहीं है बल्कि उसकी दिनचर्या का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि देश के आठ करोड़ किसान 30 करोड़ दुधारू पशु पालते हैं जिनसे रोजाना 65 से 70 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है।

    यह किसानों के लिए एक तरह की कैश क्राप है। उन्होंने कहा कि यह किसानों के लिए कितना बड़ा स्पोर्ट सिस्टम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस घर में दुधारू पशु हैं, वहां के किसान सबसे कम आत्महत्या जैसा रास्ता अपनाते हैं।

    दूसरी ओर पोल्ट्री की अपनी खपत ही देश में बहुत ज्यादा होने के कारण इस सेक्टर को भी ज्यादा खतरा नहीं है। वैंकेटश्वरा हैचरी के महाप्रबंधक डा हर्ष कुमार शेट्टी का कहना है कि पोल्ट्री सेक्टर भी किसानों का बड़ा स्पोर्ट सिस्टम है।

    मक्की की सबसे ज्यादा खपत पोल्ट्री की फीड बनाने में की जाती है हालांकि पिछले साल जब भारत सरकार ने मक्की से इथनाल बनाने की बात की तो इसके रेट बहुत बढ़ गए। सरकार ने इथनाल कंपनियों को चावल की टूटन उपलब्ध करवा दी ताकि वे अपनी जरूरत पूरी कर सकें।

    डा. शेट्टी का कहना है कि देश में 48 करोड़ चिकन की रोजाना खपत है लेकिन हमारी दिक्कत यह है कि अमेरिका लैग पीस नहीं खाते इसलिए वह उनके लिए वेस्ट मैटिरियल है जो वे दूसरे देशों को भेज सकते हैं। अगर वह इसे भारत भेजते हैं तो यह मात्र 56 रुपए में पड़ता है इसलिए इसे रोकने के लिए सौ फीसदी टेरिफ लगाने की जरूरत है तब यह हमारे बराबर आएगा।

    हमारी दिक्कत केवल इतनी है कि भारत में कोई भी कंपनी पोल्ट्री के लिए आवश्यक विटामिन नहीं बनाती, ये अमेरिका आदि से ही आते हैं लेकिन शेष जेनेटिकल मेटिरियल में भारत आत्म निर्भर है। हमें दूसरे देश की तरफ देखने की जरूरत नहीं है।